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वि‍कास को पंख देगा शि‍क्षा का अधि‍कार

लोकमि‍त्र

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हमारे यहाँ अभी तक जो 100 बच्चे बेसिक शिक्षा में एडमिशन लेते हैं उनमें सिर्फ 12 बच्चे ही ग्रेजुएशन तक पहुँच पाते हैं जबकि योरप में 100 में से 50-70 बच्चे तक कॉलेज पहुँचते हैं। सरकार का आकलन है कि इस विधेयक के कानून बन जाने के बाद भारत में कॉलेज पहुँचने वाले छात्रों की संख्या 2020 तक 30 से 35 फीसदी की सीमा पार कर जाएगी।

स्कूलों को इस कानून पर खरा उतरने के लिए तीन सालों के अंदर तमाम ढाँचागत सुविधाएँ हासिल करनी होंगी। स्‍कूलों को कम से कम 50 प्रति‍शत महि‍ला शि‍क्षकों को भर्ती करना होगा। जहाँ तक सामुदायि‍क स्‍कूलों का सवाल है, तो वे अपने वि‍शेष समुदाय को 50 फीसदी सीटें दे सकते हैं। उच्‍च आय वाले देशों में जहाँ फि‍लहाल पढ़ने की उम्र समूह वाले (5 से 24 साल) 92 फीसदी लोग शि‍क्षा ग्रहण कर रहे हैं, वहीं भारत में यह आँकड़ा अभी तक सि‍र्फ 63 फीसदी है।

भारत के मुकाबले वि‍कास दर में काफी पीछे चलने वाले ब्राजील और रूस में 89 फीसदी स्‍कूल जाने की उम्र के बच्‍चे पढ़ रहे हैं। चीन में भी लगभग 70 फीसदी स्‍कूल जाने की उम्र वाले बच्‍चे स्‍कूल जा रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र के अध्‍ययन अनुमानों के मुताबि‍क 100 फीसदी शि‍क्षा का लक्ष्‍य हासि‍ल करने में भारत को 15 से 20 साल लग जाएँगे जबकि‍ हर साल शि‍क्षा के बजट में पि‍छले साल के मुकाबले 15 से 20 फीसदी की बढ़ोतरी होती रही। गौरतलब है कि‍ शि‍क्षा के लि‍ए हम अपनी तमाम सामूहि‍क प्रति‍बद्धता जताने के बावजूद अभी तक अपने कुल बजट का 5 फीसदी भी खर्च करने के लि‍ए अपने आपको तैयार नहीं कर पाए हैं।

एक तरफ शि‍क्षा के प्रति‍ हमारी शासकीय दरि‍द्रता जगजाहि‍र है, दूसरी तरफ शि‍क्षा के प्रति‍ भारतीय जनमानस की लगन और बढ़-चढ़कर शि‍क्षि‍त होने की प्रक्रि‍या में भारतीयों का उत्‍साह देखने लायक है। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि‍ पि‍छले आठ वर्षों में बाकी क्षेत्रों के खर्चों में जहाँ बढोतरी 30 से 40 फीसदी तक हुई है वहीं शि‍क्षा के खर्च का आँकड़ा 200 फीसद को पार कर गया है।

एसोचेम (औद्योगि‍क संगठन) के एक अध्‍ययन के मुताबि‍क हाल के वर्षों में पढ़ाई के खर्च में सबसे ज्‍यादा तीव्रता से बढ़ातरी हुई है और यह बढ़ोतरी सि‍र्फ तथाकथि‍त ब्‍लू चि‍प वर्ग में ही नहीं हुई बल्‍कि‍ दूसरे क्षेत्रों में यह बढ़ोतरी देखने लायक है।

एसोचेम के अध्‍ययन के मुताबि‍क औसत मध्‍यमवर्गीय परि‍वार में जहाँ सन् 2000 में एक बच्‍चे की समूची पढ़ाई का खर्चा 25, 000 रु. वार्षि‍क था, वहीं 2008 में यह बढ़कर 65,000 से 80,000 रु. वार्षि‍क हो चुका है। यह लगभग 160 से 200 फीसदी की बढ़ोतरी दर्शाता है जबकि‍ इस दौरान औसत माँ-बाप की आय में अधि‍कतम 30 से 35 फीसदी तक का ही इजाफा हुआ है। अब चूँकि‍ शि‍क्षा को मूलभूत अधि‍कार के दायरे में लाया गया है इससे उम्‍मीद की जा सकती है कि‍ जल्‍द ही शि‍क्षा भारत के लि‍ए संपूर्ण क्रांति‍ का जरि‍या साबि‍त होगी।

हाल के वर्षों में अगर दुनि‍या में एक मजबूत, प्रगति‍शील और लोकतांत्रि‍क देश के रूप में हमारी छवि‍ पुख्‍ता हुई है तो इसमें कहीं न कहीं हमारे मजबूत शैक्षि‍क आधार का भी हाथ है। इसलि‍ए उम्‍मीद की जानी चाहि‍ए कि‍ अब जबकि‍ देश के हर नौनि‍हाल को मुफ्त और अनि‍वार्य शि‍क्षा का हक हासि‍ल हो गया है, तो भारत और तेजी से आगे बढ़ेगा और दुनि‍या का सि‍रमौर बनेगा।

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