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अँगरेजी के चक्कर से बच्चे लाचार

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माध्यमिक शिक्षा मंडल की कक्षा 10वीं व 12वीं के खराब परिणाम का एक बड़ा कारण सामान्य अँगरेजी भाषा के विषय में अत्यंत ही अव्यावहारिक तरीके से बदलाव करना भी रहा है। सीबीएसई के बराबर की अँगरेजी भाषा पढ़ाने के चक्कर में ऐसा सिलेबस बच्चों पर थोंप दिया, जिसको पढ़ना न तो बच्चों के बस की बात है और ना पढ़ाना शिक्षकों के। नतीजा सामने है, दसवीं में करीब 3 लाख 21 हजार 607 बच्चों को पूरक आई और लगभग इतनी ही संख्या बारहवीं के विद्यार्थियों की है।

सिलेबस तैयार करने वाले राज्य शिक्षा केंद्र के विषय विशेषज्ञों ने केरल, तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश की स्टेट बोर्ड से लेकर एनसीईआरटी, चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ इंग्लिश एंड फॉरेन लैंग्वेज व ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस तक के अंश कक्षा दसवीं व बारहवीं की अँगरेजी की किताब में शामिल कर लिए।

सूत्र बताते हैं कि ये सारे कंटेंट इंटरनेट से डाउनलोड किए हैं। मजे की बात यह है कि कॉपीराइट एक्ट से बचने के लिए राज्य शिक्षा केंद्र ने किताबों में बकायदा इन प्रकाशनों का आभार भी व्यक्त किया है।

उधर खुद अँगरेजी के शिक्षकों की मानें तो सामान्य अँगरेजी की किताब जिस तरह डिजाइन की गई है, वह सरकारी स्कूल के शिक्षकों व बच्चों के स्तर की नहीं है। ऊपर से शिक्षकों की सही ढंग से ट्रेनिंग नहीं होने व बच्चों का आधार कमजोर होने से भी बात बिगड़ गई। विषय व किताब के समन्वयक आंग्ल भाषा प्रशिक्षण संस्थान से जुड़े होने के कारण संस्थान की कार्यप्रणाली की भूमिका पर भी उँगलियाँ उठने लगी हैं।

सिलेबस पिछले साल के मुकाबले दोगुना था। ऊपर से किताबें भी काफी देरी से उपलब्ध हो सकी थीं। ऐसे में समय पर कोर्स पूरा करना ही कठिन हो गया था। परीक्षा तिथि नजदीक आते-आते जैसे-तैसे सिलेबस पूरा किया गया।

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