अपने आज को यूँ नष्ट न करें
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डॉ. विजय अग्रवाल अचानक नींद खुलने पर जब मैंने घड़ी की ओर देखा तो उसका छोटा काँटा दो पर और बड़ा काँटा पाँच पर था। यानी रात के लगभग ढाई बज रहे थे और मेरे ऊपर वाले तल पर बने कमरों में धमा-चौकड़ी मची हुई थी। सोना असंभव हो गया था। मैंने जब ऊपर जाकर देखा तो पाया कि बीस-बाईस साल के पाँच-छः लड़के आपस में बैठे बेतहाशा बातें किए जा रहे हैं और टेबल पर खाली और कुछ अधभरे गिलास रखे हुए हैं। कमरा जिस दुर्गंध से भरा हुआ था, वह गंध किसकी हो सकती है, आपको समझने में दिक्कत नहीं हो रही होगी। निश्चित रूप से ऐसे में उन लड़कों के साथ एक सही संवाद स्थापित करना लगभग मुश्किल था और वही हुआ। थोड़ी सी बहसा-बहसी हुई, लेकिन सौभाग्य से हल्ला-गुल्ला बंद हो गया।
एक बहुत खूबसूरत कहावत है कि काश, जवानी समझ पाती और काश बुढ़ापा कर पाता। जब हम करने के लायक होते हैं, तब समझ नहीं होती।
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एक बहुत खूबसूरत कहावत है कि काश, जवानी समझ पाती और काश बुढ़ापा कर पाता। जब हम करने के लायक होते हैं, तब समझ नहीं होती। नतीजा यह होता है कि हमारी क्षमताएँ और हमारा समय रात के ढाई बजे तक हुड़दंग मचाने या प्याला-निवाला के साथ गुजारने में खत्म हो जाता है और जब तक समझ आती है, तब तक दुर्भाग्य से बुढ़ापा भी आ चुका होता है।
अब समझ तो आ गई है, लेकिन करने लायक कुछ भी नहीं रह गया है। यही वह घटना है, जो मैं बताना चाह रहा था। जब आप यह समझ लेते हैं कि कल आप वहीं होंगे, जहाँ आपसे बड़ी उम्र का व्यक्ति है, तो आप अपने वर्तमान को अधिक से अधिक सक्रिय करने की कोशिश करने लगते हैं।
मैं जिस मकान के पहले तल पर रहता हूँ, उसके ठीक ऊपर वाले अंतिम तल पर होटल मैनेजमेंट का कोर्स करने वाले कुछ लड़के और कुछ लड़के इंजीनियरिंग करने वाले रहते हैं। पिछले तीन सालों में लड़कों के लगभग तीन बैच तो आए ही और चले भी गए। सबसे अफसोसजनक बात तो यह है कि इन तीनों बैच के लड़कों की यह संस्कृति मुझे लगभग-लगभग एक जैसी ही लगी।
कभी-कभी तो मैं यह सोचने को भी बाध्य हुआ कि क्या बिना इस शोरगुल के, क्या बिना शराब के प्यालों के और क्या बिना हुल्लड़ के ये दोनों कोर्स किए ही नहीं जा सकते।
लेकिन मैं यहाँ थोड़ी विनम्रता के साथ यह भी कहना चाहूँगा कि सभी ऐसे नहीं होते। हो सकता है कि यह मेरा ही दुर्भाग्य रहा हो कि पिछले तीन सालों से मेरा साबका थोड़े-बहुत अंतर से लगभग ऐसे ही लड़कों के साथ पड़ रहा हो।
दोस्तो, हर वह शख्स जो आज व्यक्ति बन चुका है, उसी दौर से गुजरता है जिस दौर से आप गुजर रहे हैं। इसका कोई भी विकल्प प्रकृति ने हमें नहीं दिया है। उम्र की यात्रा को कोई भी छलाँग लगाकर पार नहीं कर सकता। इसे तो एक-एक इंच चलकर ही पूरा करना होताहै। जहाँ आप हैं, वहाँ हम थे और जहाँ हम हैं वहाँ आप रहेंगे, इस तथ्य को सभी युवा साथियों को बहुत अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। मुझे लगता है कि यदि आप इसे एक बार समझ लेते हैं तो आपके जीवन में दो बहुत जबर्दस्त और बहुत जरूरी और महत्वपूर्ण घटनाएँ घट सकती हैं। पहली घटना तो यह होगी कि आपके मन में अपने से बड़ों के प्रति स्वाभाविक रूप से एक सम्मान का भाव आ जाएगा। मत भूलिए कि सम्मान के इस भाव का आना कम बड़ी बात नहीं है। यहाँ मैं आपको आपकी जिंदगी की सफलता का एक बहुत बड़ा रहस्य बताने जा रहा हूँ। आप चाहे शारीरिक रूप से कितने भी स्वस्थ और शक्तिशाली हो जाएँ, ज्ञान की दृष्टि से कितने भी बड़े ज्ञानी हो जाएँ तथा क्षमता और योग्यता की दृष्टि से चाहे आप कितने भी अधिक दक्ष और योग्य हो जाएँ, लेकिन इन सबका लाभ आपको जिंदगी में तब तक मिल पाना संदेहास्पद रहेगा, जब तक कि आपको अपने से किसी बड़े का सहयोग और सहारा न मिले। आप इस भ्रम में बिलकुल भी न रहें कि यदि आप में योग्यता है तो सफलता मिलनी निश्चित है।
यह तो निश्चित है कि यदि आप योग्य नहीं हैं, तो सफलता नहीं मिलेगी, लेकिन यह निश्चित नहीं है कि यदि आप योग्य हैं तो सफलता मिलेगी ही।
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यह तो निश्चित है कि यदि आप योग्य नहीं हैं, तो सफलता नहीं मिलेगी, लेकिन यह निश्चित नहीं है कि यदि आप योग्य हैं तो सफलता मिलेगी ही। ऐसी स्थिति में यदि आपके मन में अपनों से बड़ों के प्रति सम्मान का भाव यदि संस्कार के रूप में मौजूद हो जाता है तो इसका मतलब यह हुआ कि आपने अपनी जिंदगी में अपनों से बड़े लोगों का सहारा और सहयोग पाने की संभावनाओं के द्वार उन्मुक्त कर दिए हैं।
आपको इस बात का अच्छी तरह ज्ञान हो जाता है कि यदि मुझे वहाँ तक पहुँचना है तो मुझे आज यहाँ ऐसा करना ही पड़ेगा। मजेदार बात यह है कि जैसे ही आपको इस बात का एहसास होता है वैसे ही आपकी अपनी जिंदगी की गतिविधियाँ बहुत तेजी के साथ बदलने लगती हैं।
आप धीरे-धीरे अपने को वहाँ से हटाने लगते हैं, जो आपकी जिंदगी में आपकी मदद नहीं कर सकते हैं। इसके ठीक विपरीत आप धीरे-धीरे अपने आपको उन सबसे जोड़ने लगते हैं, जो आपकी जिंदगी को ऊपर पहुँचाने के लिए सीढ़ियों का काम करेंगे।
क्या इससे आपको ऐसा नहीं लगता कि ऐसा करने से आपकी जिंदगी की सारी गतिविधियाँ और सारा क्रम बदल जाएगा? मेरे युवा मित्रो, सचमुच मुझे ऐसे युवाओं को देखकर बहुत अधिक पीड़ा होती है, जो अपने आज को यूँ ही नष्ट कर रहे हैं। यह पीड़ा इसलिए नहीं होती क्योंकि वे अपने आज को ही नष्ट कर रहे हैं, बल्कि इससे भी अधिक यह इसलिए होती है क्योंकि वे आज को नष्ट करके अपने आने वाले कल को भी नष्ट कर रहे हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि वे अपने भविष्य को और इस प्रकार अपनी जिंदगी को ही नष्ट कर रहे हैं।
यह पीड़ा इसलिए नहीं होती क्योंकि वे अपने आज को ही नष्ट कर रहे हैं, बल्कि इससे भी अधिक यह इसलिए होती है क्योंकि वे आज को नष्ट करके अपने आने वाले कल को भी नष्ट कर रहे हैं।
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किसी भी एक जिंदगी का नष्ट होना महज एक जिंदगी का ही नष्ट होना नहीं होता, बल्कि समाज की उस उपलब्धि का भी नष्ट हो जाना होता है, जो उसे उस जिंदगी से मिल सकता था। इसलिए मैं अपने सभी युवा साथियों से यह अनुरोध करना चाहूँगा कि वे अपनी गतिविधियों को और अपनी जिंदगी को केवल अपने तक सीमित करके न देखें।
वे इस समाज का, वे इस देश का, वे इस विश्व का बल्कि यहाँ तक कि वे इस संपूर्ण ब्रह्मांड का एक बहुत ही महत्वपूर्ण और अभिन्ना हिस्सा हैं। इसलिए आप जो कुछ भी करते हैं, उसका प्रभाव केवल आप पर ही नहीं बल्कि फैलकर कहीं न कहीं संपूर्ण ब्रह्मांड के किसी न किसी बिंदु पर भी पड़ता है। मुझे लगता है कि जब आप इस व्यापक दृष्टिकोण को अपने अंतर्मन में उतार लेंगे तो निश्चित रूप से आपके जीवन की गुणवत्ता धीरे-धीरे बदलने लगेगी।
(लेखक पत्र सूचना कार्यालय भोपाल के प्रभारी हैं।)