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कहाँ है भविष्य?

निजी संस्थानों की चकाचौंध में उलझे छात्र

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-प्रियंका पांडेय पाडलीकर
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जहाँ एक ओर तमाम विश्वविद्यालयों और बड़े संस्थानों में नया सत्र लगभग शुरू होने की कगार पर है, वहीं दूसरी ओर इन विश्वविद्यालयों में दाखिला न ले पाने वाले छात्रों के लिए संशय की अजीबोगरीब स्थिति है। इस स्थिति में दिनोंदिन खुल रहे निजी संस्थान छात्रों के विकल्प के रूप में उभर रहे हैं, वहीं कुछ तथ्य ऐसे भी हैं जिन पर ध्यान दें तो इन संस्थानों के औचित्य पर प्रश्न उठ सकते हैं?

लाखों रुपयों की फीस और डोनेशन लेने वाले ऐसे कई संस्थानों में सुविधाओं के नाम पर न तो यूजीसी और एआईसीटीई जैसी सरकारी संस्थाओं की प्रामाणिकता है। ऐसे में शिक्षा की मूलभूत आवश्यकताएँ (शिक्षक, परिसर की सुविधाएँ आदि), पारदर्शिता जैसे कई व्यवस्थाओं पर गौर करना पड़ेगा। उदाहरण के तौर पर कम्प्यूटर, एनिमेशन, वीडियो एडिटिंग जैसे कार्यक्रमों में प्रशिक्षण देने वाला एरीना संस्थान (पुराना नाम ऐपटेक) को ले सकते हैं।

मनोमणियम सुंदरम विश्वविद्यालय से अनुबंधित इस संस्थान का "बीएससी इन एनिमेशन एंड मल्टीमीडिया" का प्रचार तमाम वेबसाइट पर नजर आता है। वेबसाइट पर जहाँ हर जगह एरीना का नाम व सुविधाओं का बखान है वहीं फीस के मामले में केवल विश्वविद्यालय की फीस का अधिक उल्लेख है।

एरीना सेंटर पर कोर्स की वास्तविक फीस बताई जाती है जो कि लगभग दोगुनी से भी अधिक है। इस बारे में पूछने पर इस संस्थान की नोएडा शाखा में कार्यरत रजनी ने बताया कि "वेबसाइट और प्रॉस्पेक्टस में हम केवल विश्वविद्यालय की फीस का उल्लेख करते हैं जबकि इस कोर्स की सभी सुविधाएँ एरीना देता है और इस वजह से हम उसकी अलग से फीस लेते हैं।

इसका विवरण पुस्तिका में उल्लेख नहीं होता बल्कि संस्थान की तरफ से एक पर्ची मिल जाती है जिसमें इसका उल्लेख हो।" इसकी एक वजह तमिलनाडु सरकार द्वारा वहाँ के विश्वविद्यालयों पर डोनेशन व अतिरिक्त शुल्क पर लगाया गया प्रतिबंध है जिसके डर से विश्वविद्यालय निजी संस्थानों के साथ अनुबंध करते हैं और अपनी आमदनी बढ़ाते हैं।

तमिलनाडु सरकार के इस फैसले के अंतर्गत जो विश्वविद्यालय इस तरह की डोनेशन या अतिरिक्त धनराशि लेते हुए पकड़े जाएँगे, यूजीसी द्वारा उनकी ग्रांट खत्म कर दी जाएगी। इसमें नुकसान उन बच्चों का होगा जो ऐसे निजी संस्थानों की चकाचौंध देखकर इनमें प्रवेश लेंगे। विवरण पुस्तिका व वेबसाइट पर सौ प्रतिशत प्लेसमेंट का दावा करने वाले इन संस्थानों में पढ़ने के बाद छात्र को पता चलता है कि प्लेसमेंट के नाम पर कुछ भी वैसा नहीं है जैसा प्रवेश के दौरान बताया गया था।

यूजीसी द्वारा करवाए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि देश में 150 से भी अधिक फर्जी कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं, इसलिए यह भी जरूरी है कि किसी निजी संस्थान में प्रवेश लेने से पहले उसकी मान्यता की जानकारी ले ली जाए। ऐसे में आवश्यकता है कि यूजीसी व एआईसीटी को खत्म करके दूसरी संस्था बनाने के बजाय सरकार ऐसे संस्थानों के प्रति कड़े से कड़ा रुख अपनाए और इन संस्थाओं को और अधिक सशक्त बनाए।

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