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छँटनी का जख्म नहीं, नियुक्ति का हौसला

मंदी के दौर में भी जारी हैं नि‍युक्ति‍याँ

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मंदी, मंदी और सिर्फ मंदी! इस एक शब्द ने पूरे जगत में कोहराम मचा दिया है। इसकी आड़ में कई लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा। इसके विपरीत कुछ संस्थान ऐसे भी हैं, जहाँ मंदी की आड़ में नौकरी से निकालने की बात तो दूर, बल्कि नई नियुक्तियाँ की गईं। एक ओर जहाँ रोजगार के अभाव में लोग दर-दर भटक रहे हैं, कई क्षेत्र ऐसे भी हैं जहाँ कर्मचारियों की अभी भी माँग बनी हुई है। दरअसल कई संस्थाओं में आज भी नियुक्ति की गुंजाइश है, पर उसके लिए जरूरी है बेहतर कर्मचारियों व प्रबंधन की।

एचआर विभाग हो मजबू

मंदी का दौर प्रारंभ होने से पहले कई कंपनियों ने अनेक लोगों को नौकरी दी और बाद में उन्हें निकाल भी दिया। इससे पता चलता है कि उन कंपनियों का एचआर विभाग सुस्त या कमजोर है। यह कहना है प्लेथिको फार्मास्यूटिकल्स लि. के सीए अशोक मिश्रा का। उनके अनुसार यदि एचआर विभाग शुरू से ही इस बात का ध्यान रखे कि कितने कर्मचारियों की आवश्यकता वास्तव में है, तो पहले अनावश्यक नियुक्तियों और फिर नौकरी से निकालने जैसी बात ही न हो। यह बात हमने समझी और नतीजतन हायर पैकेज पर भी नियुक्तियाँ की।

हर जगह हैं आवश्यकता के बोर्

मंदी की स्थिति में कर्मचारियों को नौकरी से निकालना ही समस्या का हल नहीं होगा। आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए कई और भी तरीके हैं। डायवर्सिटीक जनरल इंजीनियरिंग प्रालि के मैनेजिंग डायरेक्टर राजेन्द्र मोदी कहते हैं कि उनकी कंपनी में तो मंदी के दौर में भी नियुक्तियाँ की गईं। जब कार्य नहीं था, तब कई कर्मचारियों को आधी पगार देकर घर पर ही रहने को कह दिया और स्थिति सामान्य होने पर पुनः काम पर बुला लिया गया। आज भी कई उद्योगों के बाहर "आवश्यकता है" के बोर्ड लगे हैं। ध्यान से देखा जाए तो नौकरी और नौकरी करने वाले दोनों की कमी नहीं है। बात जहाँ तक मंदी की है तो वह पूरी तरह सही नहीं है। अगर मंदी वास्तव में होती तो हर सामान सस्ता होता।

नहीं निकाला एक भी कर्मचार

हमारी कंपनी ने किसी भी कर्मचारी को मंदी का बहाना बनाकर नौकरी से नहीं निकाला। अतिरिक्त स्टाफ को अन्य इकाई में कार्य दिया गया। यह कहना है रोजी ब्ल्यू इंडिया प्रालि के इकाई प्रमुख सुभाष माथुर का। इसके अलावा जो कर्मचारी स्वयं का कारोबार करना चाहते थे, उन्हें आर्थिक मदद भी दी गई। हर कर्मचारी और विभाग को इस तरह संभाला कि समस्या कम से कम उत्पन्ना हो। वैसे मंदी का यह सकारात्मक प्रभाव जरूर हुआ कि प्रतिभा संपन्न लोग जमे रह सके।

कर्मचारी कम करने की युक्ति काम नहीं आत

एलएनटी इंडस्ट्री के एचआर प्रमुख एमएम राव बताते हैं कि उनकी कंपनी ने मंदी के इस दौर में कर्मचारियों की छँटनी करने के बजाय और नए लोगों को काम दिया। ये नियुक्तियाँ ग्रेज्युएट और डिप्लोमा ट्रेनी इंजीनियर्स की हुई। उन्होंने कहा कि किसी को नौकरी से निकालने से मंदी से निपटने में विशेष सहयोग नहीं मिलता, बल्कि उत्पादन में और कमी आ जाती है। यदि व्यापार ब़ढ़ाना है तो कर्मचारियों को कम करने की प्रवृत्ति काम नहीं आती।

कोई नहीं चाहता किसी को निकालन

ऑल इंडिया मैन्यूफेक्चर ऑर्गेनाइजेशन की मप्र इकाई के चेयरमैन महेश मित्तल कहते हैं कि उनकी कंपनी ने तो कुल कर्मचारियों की संख्या का 8 प्रतिशत और नई नियुक्तियाँ की हैं। ये नियुक्तियाँ निम्न व मध्यमवर्गीय कर्मचारियों की हुई है। वैसे कोई भी कंपनी किसी कर्मचारी को निकालने के पक्ष में नहीं होती, क्योंकि कुशल कर्मचारियों को तलाशने में खासी मशक्कत करनी होती है। जिन्हें कंपनी की कार्यप्रणाली व तकनीक से अवगत करा दिया गया हो, ऐसे कर्मचारियों के चले जाने से परेशानी होती है।

हजारों रोजगार अभी भी हैं

मंदी का असर हर उद्योग पर नहीं दिखा। कुछ उद्योग ऐसे भी हैं जो इस बुराई से दूर रहे। पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष गौतम कोठारी कहते हैं आज भी पीथमपुर के उद्योगों में कम से कम 5 हजार कर्मचारियों की आवश्यकता है। मंदी के दौर में उन्हें ही निकाला गया, जो कार्य के प्रति ईमानदार या गंभीर नहीं थे। मंदी के दौर ने आत्म निरीक्षण का भी मौका उद्योगों को दिया।

ये हैं प्रभाव:

सबसे ज्यादा प्रभाव मोटी पगार पाने वालों पर पड़ा।

निम्न व मध्यमवर्गीय कर्मचारियों पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ा।

ऑटोमोबाइल, आयात, इंजीनियरिंग, स्टील, इलेक्ट्रॉनिक जैसे उद्योगों पर बुरा प्रभाव पड़ा।

सीमेंट, सीमेंट से जुड़े उद्योग, प्लास्टिक, फार्मास्यूटिकल जैसे उद्योगों पर विशेष प्रभाव नहीं।

पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में 5 हजार अकुशल कर्मचारियों की अभी भी आवश्यकता।

मंदी ने उद्योगों को हर परिस्थिति से लड़ना सिखाया।

मंदी ने दिया आत्ममूल्यांकन का मौका

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