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बदल रही है नकल की तकनीक

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- राजीव शर्मा

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एक्‍जाम टाइम शुरू हो गया है और कई स्‍टूडेंट पढ़ाई पर कम और नकल के तरीकों पर भी दि‍माग दौडा़ने में ज्‍यादा व्‍यस्‍त होंगे। आइए एक नजर डालते हैं नकल के शानदार एक्‍सपेरिमेंट्स पर -

आजकल ऐसी-ऐसी घड़ियाँ भी आने लगी हैं जो 'पीडीए' का काम भी करती हैं। इनमें भी नकल का अच्छा-खासा डेटा 'छिपाया' जा सकता है। आम घड़ी की तरह दिखने वाले इन यंत्रों पर भी किसी को आसानी से शक नहीं होता। इसे कलाई में हथेली की तरफ घुमाकर हाथ उत्तर-पत्र के ऊपर रख इसका डिस्प्ले देख-देख कर आराम से 'नकल टीपते' रहिए। परीक्षा निरीक्षक यही समझते हैं कि आप लिखने में तल्लीन हैं।

बच्चों के खेलने वाले 'मैजिक पेन' भी नकल में बहुत कारगर हो रहे हैं। इनकी खासियत यह होती है कि इनसे लिखने के बाद कुछ भी नहीं दिखता। यह तभी दिखता है जब 'अल्ट्रा वॉयलेट' लाइट की रोशनी उस पर पड़ती है और इसके लिए पेन के ऊपर एक छोटे-सा बल्ब भी मौजूद होता है। विद्यार्थी अपनी डेट शीट, रोल नंबर या क्लिप बोर्ड पर इससे लिखकर निडर होकर नकल करते हैं और किसी को कोई शक भी नहीं होता क्योंकि मामला बिल्कुल 'साफ' होता है।

नकल के पुराने तरीके में फर्रे, पर्ची या 'चिट' बनाकर उन पर बारीक अक्षरों में लिखा जाता था ताकि कम जगह में नकल की ज्यादा सामग्री आ सके लेकिन अब यहां भी नकल की हाई टेक तकनीकें काम आ रही हैं।

इसके लिए विद्यार्थी अपने काम की सामग्री को कुंजी, गाइड और किताबों से काट-काट कर उनके टुकड़ों को एक खाली कागज पर चिपका लेते हैं और उसकी कई 'मिनीमाइज फोटो-कॉपी' (छोटे आकार में प्रतिलिपी) करा कर आपस में बाँट लेते हैं। फिर अपनी जरूरत के हिसाब से काट कर यहाँ-वहाँ छिपा लिया जाता है। नकल के इस तरीके में नकलची विद्यार्थियों को छोटी-छोटी चिटों पर महीन-महीन लेख में नहीं लिखना पड़ता। इससे उनका वक्त और मेहनत बच जाती है।

इस मामले में लड़कियाँ भी नहीं हैं पीछे

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नकल के मामले में लड़कियाँ भी पीछे नहीं रहतीं। लड़कियाँ भी आधुनिक तौर-तरीके अपनाने के अलावा पारंपरिक तकनीकों के जरिए अपना काम निकालती हैं। जैसे वे अपने सूट-सलवार, पैंट या स्कर्ट में अंदर की तरफ नकल की सामग्री लेकर या चिपका कर लाती हैं और जब भी नकल का मौका मिलता है, अपने सूट या स्कर्ट को ऊपर की ओर मोड़कर आराम से नकल कर लेती हैं और 'काम' हो जाने या निरीक्षक के पास आने पर कपड़े सीधे करके फिर से 'भोली-भाली' बन जाती हैं। लड़कियों में यह तरीका अधिक चलन में पाया जाता है। यहाँ तक कि नकल करते हुए पकड़े जाने पर भी उनके साथ लड़कों की तुलना में कहीं अधिक नरमी बरती जाती है।

यहाँ भी काम आती है तकनीक

अपने स्थान पर किसी और को या किसी और के स्थान पर खुद बैठकर परीक्षा देने के मामले में भी नवीन तकनीकों का सहारा लिया जाने लगा है। इसके लिए जहाँ पहले नकली पहचान-पत्र और प्रवेश-पत्र आदि तैयार करवाने के लिए स्कूल-कॉलेज के लोगों पर ही निर्भर रहना पड़ता था, वहीं अब कलर लेजर प्रिंटर जैसे उपकरणों ने यह काम भी आसान कर दिया है।

इसके अलावा काम करने-कराने वाले परीक्षार्थी आमतौर पर अपने नकली पहचान-पत्र आदि का 'लैमिनेशन' भी करवा लेते हैं। जिससे अगर कागज आदि की कहीं कोई छोटी-मोटी कमी रह भी गई होती है, तो वह भी छिप जाती है। देखने वालों को यही लगता है कि लैमिनेशन हो चुके पहचान-पत्र में कोई कैसे गड़बड़ी कर सकता है?

लेकि‍न गलत काम को कि‍तना ही दि‍माग लगाकर कि‍या जाए वो गलत ही होता है। बेहतर है कि‍ आप नकल में अकल लगाने की बजाए पढ़ाई करें।

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