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मनोविज्ञान के करियर में समाजसेवा भी

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-अशोक सिंह

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करियर के आधुनिक विकल्पों में मनोविज्ञान के महत्व को कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। मनोविज्ञान विषय के तहत मानव व्यवहार एवं मनोदशाओं पर आधारित अध्ययन किया जाता है, विशेष तौर से किन्हीं खास परिस्थितियों में मानव व्यवहार में आने वाले परिवर्तनों का स्पष्टीकरण मनोवैज्ञानिकों के माध्यम से ही संभव है।

एक समय था जबकि इस विषय को सैद्धांतिक एवं अकार्मिक उपयोग के तौर पर ही सीमित दृष्टिकोण से देखा जाता था लेकिन अब बदलते सामाजिक परिप्रेक्ष्य और सरोकारों के दायरे में इसका व्यावहारिक महत्व ज्यादा हो गया है। डिप्रेशन की स्थिति से उबारने, तनावपूर्ण मनोदशा से बाहर लाने, प्रोफेशनल की उत्पादकता में बढ़ोत्तरी लाने, बच्चों को पढ़ाई के बोझ के तनाव से मुक्त करने, संवेदनात्मक आघात की दशा से निजात दिलाने, ड्रग की लत से छुटकारा दिलाने, सामाजिक तनावों को कम करने इत्यादि में इन विशेषज्ञों की सराहनीय भूमिका को अब सामाजिक मान्यता प्रदान की जा चुकी है।

मनोविज्ञान को महज शैक्षिक विषय के रूप में देखा जाना शायद उचित नहीं कहा जा सकता है। यही कारण है कि सतही तौर पर मात्र एक प्रोफेशन के रूप में इसे लेने वाले युवाओं को इस क्षेत्र में अपक्षित सफलता नहीं मिल पाती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यह भी एक प्रकार से डॉक्टर की भांति प्रोफेशन है जिसमें रोगी का अध्ययन, उसके व्यवहार में बदलाव की बाबत जानकारी, सामाजिक तनाव, प्रोफेशन संबंधित कठिनाइयों इत्यादि से जुड़ी समस्त सूचनाएं एकत्रित करने के लिए पर्याप्त धैर्य और संयम का परिचय देना जरूरी होता है।

मानवीय मनोदशाओं, संवेदनाओं और तनावों के गूढ़ रहस्यों को जड़ तक जानने के लिए तत्पर व्यक्ति ही सही मायने में एक मनोवैज्ञानिक के रूप में समाज में अपना योगदान कर सकते हैं तथा सफलता की ऊँचाइयों को इस प्रोफेशन में छू सकते हैं।

मनोवैज्ञानिकों/काउंसलरों की जरूरत दिन-प्रतिदिन तेजी से बढ़ रही है। अधिकाधिक संख्या में लोग ऐसे विशेषज्ञों की परामर्श सेवाएँ लेने में विश्वास रखने लगे हैं। छात्रों के लिए शैक्षिक संस्थानों में, नौकरीशुदा लोगों के लिए उनके कार्यालयों में, रोगियों एवं डिप्रेशन से पीड़ित व्यक्तियों के लिए बड़े-बड़े अस्पतालों में, अपराधियों को सुधारने के लिए पुलिस विभागों एवं सुधार गृहों में अब बड़े पैमाने पर इनकी सेवाएं ली जा रही हैं।

यह सही है कि विकसित देशों की तुलना में अभी तीसरी दुनिया के देशों में इनकी संख्या अपेक्षाकृत कम है पर इसमें कोई शक नहीं कि आने वाले समय में इस संख्या में जबर्दस्त रूप से इजाफा होगा। विश्वविद्यालयों में मनोविज्ञान पर आधारित स्नातक, स्नातकोत्तर एवं अन्य प्रकार के उच्च अध्ययन की व्यवस्था है। आम युवाओं में इस विषय के महत्व के बारे में अधिक जागरूकता नहीं होने के कारण दाखिले हेतु ज्यादा प्रतियोगिता की स्थिति भी नहीं है।

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