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डॉ. विजय अग्रवाल
एनरॉन कंपनी का नाम तो आपने सुना ही होगा। यह विश्व की दस सबसे बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों में से एक थी। भारत के महाराष्ट्र में इसे विद्युत उत्पादन का काम सौंपा गया था। लेकिन यह कंपनी किन्हीं कारणों से अपना काम नहीं कर सकी थी और बाद में इसका दिवाला निकल गया।जब दुनिया की इतनी बड़ी कंपनी का अचानक दिवाला निकला, तो सारे उद्योगपति बेहद चिंतित हो उठे। फोर्ड फाउंडेशन को यह जिम्मेदारी दी गई कि वह एनरॉन कंपनी के इस तरह के इतने थोड़े समय में ही फेल हो जाने का पता लगाए। फोर्ड फाउंडेशन ने इसका अध्ययन किया और अध्ययन करने पर लाखों डॉलर खर्च किए। अध्ययन करने के बाद कुल मिलाकर निष्कर्ष यह पाया गया कि एनरॉन कंपनी के पास दुनिया के सबसे बेहतर इंजीनियर तो थे, लेकिन उसके पास सबसे बेहतर इंसान नहीं थे। दोस्तो जिस बात को हम आप सभी आमतौर पर जानते हैं, उस बात को जानने के लिए फोर्ड फाउंडेशन ने लाखों डॉलर खर्च कर दिए। |
एनरॉन कंपनी का नाम तो आपने सुना ही होगा। यह विश्व की दस सबसे बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों में से एक थी। भारत के महाराष्ट्र में इसे विद्युत उत्पादन का काम सौंपा गया था। |
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पुरानी कहावत है कि 'मशीन महत्वपूर्ण नहीं होती, बल्कि मशीन के पीछे काम करने वाला व्यक्ति महत्वपूर्ण होता है।' जब हम इस मनुष्य की बात करते हैं तो वह एक ऐसे प्रोफेशनल मनुष्य की बात नहीं करते, जो डॉक्टर है, इंजीनियर है, वकील है या प्रबंधक है। यह सब उसकी व्यावसायिक दक्षताएँ तो हो सकती हैं, लेकिन मनुष्य होने के गुण नहीं हो सकते।
जब हम अच्छे मनुष्य की बात करते हैं, तो उसका अर्थ होता है-उनमें उन गुणों का होना, जो किसी भी काम को करने के लिए, जो किसी भी संस्थान को आगे बढ़ाने के लिए तथा जो उस व्यक्ति का एक सामाजिक नागरिक होने के नाते उसके सामाजिक योगदान के लिए जरूरी होते हैं। स्वस्थ शरीर, स्मार्टनेस और बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ कभी भी मनुष्य के गुणों को विस्थापित नहीं कर सकतीं।
एनरॉन कंपनी के साथ यही हुआ। या तो उसने अपने यहाँ ऐसे इंजीनियरों को भर्ती नहीं किया, जिनमें निष्ठा, लगनशीलता, ईमानदारी, नेतृत्व क्षमता, दूसरों से संपर्क बनाने की ललक तथा जिंदगी को 'जियो और जीने दो' के सिद्धांत पर आगे ले जाने की भावना थी।
जाहिर है कि वे सब केवल अपने बारे में सोचते होंगे। इनमें से एनरॉन के बारे में सोचने वाले बहुत कम लोग होंगे और नतीजे में एनरॉन कंपनी फेल हो गई। प्रबंधन के क्षेत्र में किए गए अध्ययन से जो निष्कर्ष निकाला गया है उसे मैं यहाँ आपके साथ शेयर करना चाहूँगा।
यह पाया गया है कि किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए तकनीकी ज्ञान का योगदान केवल 15 प्रश होता है। शेष 85 प्रश योगदान उसके अपने मानवीय गुणों का होता है। एनरॉन कंपनी के इंजीनियरों के साथ शायद यह स्थिति उलटी थी। वहाँ 85 प्रश महत्व तकनीकी गुण को दिया गया था और केवल 15 प्रश मानवीय गुणों को।
मुुझे एनरॉन कंपनी के लिए निकाला गया यह निष्कर्ष बहुत महत्वपूर्ण मालूम पड़ता है। ऐसा इसलिए क्योंकि आज ज्यादा से ज्यादा जोर तकनीकी गुणों को हासिल करने पर दिया जाने लगा है। जबसे बच्चा स्कूल में भर्ती होता है, लगातार उस पर अधिक से अधिक पढ़ाई करने का दबाव डाला जाता है। स्कूल में पढ़ाई, स्कूल से बाहर कोचिंग में पढ़ाई तथा कोचिंग से घर लौटने पर घर में पढ़ाई।
चारों ओर हर पल केवल पढ़ाई ही पढ़ाई। जाहिर है कि इसके कारण बच्चे के पास न तो समय और न ही मस्तिष्क में वह 'स्पेस' ही रह पाती है, जहाँ वहअपने अंदर बीज के रूप मे मौजूद मानवीय गुणों का विकास कर सके। चूँकि वह बच्चा है, इसलिए उसे इसकी अहमियत मालूम ही नहीं होती। धीरे-धीरे होता यह है कि जब वह कुछ करने लायक बनता है, तब तक वह सूट-बूट और टाई पहने हुए एक जीवित मशीन की तरह आकर खड़ाहो जाता है। यही उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी विडंबना होती है।
इसलिए मैं अपने सभी युवा साथियों से कहना चाहूँगा कि वे अपनी जिंदगी में कुछ वक्त ऐसा निकालें, कुछ ऐसी गतिविधियाँ करें, कोई ऐसा अच्छा काम करने की ठानें, जो उनके व्यक्तित्व को विस्तार देकर उनमें अच्छे-अच्छे मानवीय गुणों को भर सके। आप यह सोचने की भूल न करें कि आप यह सब तब करेंगे, जब कुछ बन जाएँगे। तब तक तो बहुत देरी हो चुकी होगी। आप उस समय नौकरी या अपना काम करने के सिवाए कोई दूसरा काम करने लायक नहीं रह जाएँगे। उस समय यह सब करना तो वैसा होगा, जैसे कि मकान की दीवारें खड़ी करने के बाद उसके लिए नींव खोदना। इसलिए यह आज ही होना चाहिए और अभी से ही होना चाहिए।
(लेखक पत्र सूचना कार्यालय, भोपाल के अपर महानिदेशक हैं।)