आर्थिक लाभ के आधार पर कामगार की उपयोगिता का मूल्यांकन कर अधिक काम के लिए मजबूर करना नए तरह की बँधुआ प्रथा है। अधिक कार्य करने से कार्मिकों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है
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लिए ऑफिस परिसर में बुला लिया जाएगा। यहाँ वह अपने परिवार के साथ कंपनी के जिम, रेस्तराँ, स्वीमिंग पूल, स्टोर आदिमें समय बिताएगा। 'परिवार घंटा' खत्म होने पर बीवी-बच्चे घर चले जाएँगे और कर्मचारी वापस अपनी सीट पर आकर काम में जुट जाएगा। यानी परिवार के पास घर जाने की क्या जरूरत है? कंपनी आपके परिवार को ही दफ्तर में बुला लेगी। एक-दो घंटे वहीं पारिवारिक जीवन का 'आनंद' ले लो और फिर काम पर लग जाओ। बताइए, हुई न सोने के पिंजरे वाली बँधुआ मजदूरी!