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युवा कवि अशोक चक्रधर से खास मुलाकात

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- भीकशर्मगायत्रशर्म

हँसना जितना आसान है, हँसाना उतना ही मुश्किल। हमारे आसपास तनाव देने वाले तो हजारों लोग मिल जाते हैं परंतु तनाव कम करने वाले बहुत कम लेकिन हमारे आज के मेहमान तो अपनी हँसी के कारण जाने जाते हैं।

अपनी रचनाओं के माध्यम सउदास चेहरों पर मुस्कराहट लाने वाले कवि अशोक चक्रधर एक ऐसी ही शख्सियत हैं, जिनकी उपस्थिति ही हमारे अंदर हास्य पैदा कर गम भुलाने को मजबूर कर देती है। आइए करते हैं एक खास मुलाकात कवि अशोक चक्रधर के साथ-

प्रश्न : आपका बचपन कहाँ बीता?
उत्तर : मेरा बचपन जहाँ बीता वो था ब्रज का क्षेत्र। मेरा जन्मस्थान खुर्जा है। खुर्जा से इलियाज आने के लिए इलाहाबाद बीच में पड़ता था इसलिए जहाँ-जहाँ चीजें पड़ती गईं, वहाँ-वहाँ हम पड़ते गए।

प्रश्न : आखिर क्यों आपने अपनी भावाभिव्यक्ति का माध्यम काव्य को ही चुना? क्या कारण है कि गद्य में आपकी रुचि पद्य की तुलना में कम रही?
उत्तर : ऐसा नहीं है कि मैंने गद्य रचनाएँ नहीं की। गद्य विधा को भी अपनाते हुए मैंने कई कहानियाँ, संस्मरण आदि लिखे। हाँ, मैं इस बात से सहमत हूँ कि मैंने काव्य रचना अधिक की। इसके पीछे भी एक कारण है। चूँकि मेरे पिताजी कवि थे इसलिए हमारे घर में कवियों का आना-जाना लगा ही रहता था। बचपन से ही मेरी छंद, तुकबंदी आदि में रुचि अधिक थी। कोई भी बात यदि सरल शब्दों में कही जाए तो वो बेतुकी-सी लगती थी इसलिए उसको बेतुकी होने से बचाने के लिए तुकबंदी जरूरी थी।

  मेरा उद्देश्य हँसाना नहीं होता है, बल्कि हँसी के बहाने फँसाना होता है और फिर हँसी के बहाने समाज की उन विकृतियों को सामने लाना होता है, जो अगर सुधर जाए तो हमारा देश सुखी व खुशहाल हो जाए और हमें सचमुच की हँसी आए।      
प्रश्न : आजकल तो तुकबंदी का ही चलन है। इधर-उधर से शब्द उठाया, तुक मिलाया और कविता बन गई। आप इस बारे में क्या कहते हैं?
उत्तर : मैं तो यही कहूँगा कि आजकल के कवि तो तुक मिलाने इतनी भी जहमत नहीं करते। पहले फिल्मी गानों में भी पहले तुकबंदी होती थी परंतु अब वहाँ भी तुक मिलाने के बजाय ताल और लय पर अधिक ध्यान दिया जाता है। शब्द तो जैसे गौण हो गए हैं। अब तो केवल म्यूजिक पर जोर दिया जाता है।

प्रश्न : आप क्या मानते हैं कि एक अच्छा कवि होने के लिए व्याकरण का ज्ञान होना ज्यादा जरूरी है या फिर एक अच्छी सोच होना चाहिए?
उत्तर : मेरे अनुसार व्याकरण के ज्ञान के बजाय कवि में अंत:करण का ज्ञान होना चाहिए। यदि आप किसी के हृदय में नहीं उतर सकते, किसी के मन में उठती तरंगों, हृदय की हलचलों आदि को नहीं जान सकते, तो आप कभी अच्छे साहित्यकार नहीं हो सकते हैं। व्याकरण तो बहुत ऊपर की चीज है।

प्रश्न : अकसर यह सुनने में आता है कि व्यक्ति के जीवन में कोई ऐसी घटना घटती है, जो उसे दर्द दे जाती है, ऐसा व्यक्ति कवि बन जाता है या फिर किसी को जीवन में बहुत अधिक खुशी मिल जाती है और वो कवि बन जाता है। आपके कवि बनने का राज क्या है?
उत्तर : यह बात सत्य है कि कहीं न कहीं दर्द आपको हँसी के कारण देता है। जब कोई चीज कसकती या चुभती है तभी कविता उपजती है। मुझे तो मेरी माँ पर होने वाले अत्याचारों ने पहली कविता लिखने की प्रेरणा दी। एक संयुक्त परिवार में मेरी माँ के साथ जो कुछ हुआ, उसने मुझे प्रेरित किया कविता लिखने को। एक बार गाँव में भूचाल आया और हमारा घर गिर गया। घर के सामने वाला ताऊजी का घर बच गया। ताऊजी बड़ी ही शान से हमारे टूटे घर की तरफ देखकर दाढ़ी बना रहे थे तब मैंने अपने दोस्त को बुलाकर जो कहा वो भी कविता ही है -

' आ मेरे प्यारे भूचा
ताऊजी के कट जाएँ गाल।'

प्रश्न : आपके अनुसार हास्य क्या है? हास्य और व्यंग्य में मूलभूत अंतर क्या होता है?
उत्तर : हास्य है निर्मल आनंद का वो क्षण जो आपके शरीर में एक ऐसी भौतिक-रासायनिक प्रतिक्रिया पैदा करता है, जिससे आपकी देह पूरी आनंदित हो जाती है। उसमें सोच बहुत ज्यादा इन्वाल्व नहीं होती है वो निर्मल व्यंग्य होता है। यदि हम व्यंग्य की बात करें तो व्यंग्य करुणाजन्य होता है। उसके पीछे दुःख की कोई न कोई वजह जरूर होती है। हास्य अकारण कहीं भी आ सकता है लेकिन व्यंग्य के पीछे कोई कारण होना चाहिए और कारण के पीछे करुणा होनी चाहिए।

प्रश्न : कई बार जब आप दुःखी होते हैं या उदास होते हैं, तब लोगों को हँसाना आपके लिए कितना मुश्किल होता है?
उत्तर : देखिए, मेरा उद्देश्य हँसाना नहीं होता है, बल्कि हँसी के बहाने फँसाना होता है और फिर हँसी के बहाने समाज की उन विकृतियों को सामने लाना होता है, जो अगर सुधर जाए तो हमारा देश सुखी व खुशहाल हो जाए और हमें सचमुच की हँसी आए। मुझे हँसी पैदा करनी पड़ती है। मैं दूसरे लाफ्टर कलाकारों की तरह कोई जन्मजात हँसोड़ नहीं हूँ। हाँ, कविता प्रस्तुतिकरण का मेरा ढंग ऐसा होता है कि गंभीर से गंभीर कविता में भी लोग हँस पड़ते हैं। मैं तो हमेशा यही चाहता हूँ, हम सभी हमेशा हँसें।

प्रश्न : आपके व्यक्तित्व पर शरद जोशीजी का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर : मैं शरद जोशीजी को बहुत पसंद करता हूँ क्योंकि उनका आना कविता में वाचिक परंपरा की शुरुआत थी। वो बहुत ही सरल हृदय इनसान थे। उनकी पसंदगी व नापसंदगी के बड़े कोमल तंतु हुआ करते थे। हम लोगों ने बहुत समय एक साथ गुजारा। अकसर कवि सम्मेलनों में हम दोनों साथ-साथ होते थे

प्रश्न : आपकी पसंदीदा कविता की कोई पंक्तियाँ?
उत्तर : ये घर है दर्द का, परदे हटा के देख
गम है हँसी के अंदर, परदे हटा के देखो
लहरों के झाग ही तो पर्दे बने हुए हैं
गहरा बड़ा समंदर पर्दे हटा के देख

ऐ चक्रधर, ये माना, हैं खामियाँ सभी में
कुछ तो मिलेगा बेहतर, परदे हटा के देखो

प्रश्न : वेबदुनिया के पाठकों के लिए आपका कोई संदेश?
उत्तर : वेबदुनिया एक ऐसा सपना लेकर अवतरित हुआ, जिसने हिंदी के आकाश को बड़ा किया। मेरा जुड़ाव इस पोर्टल से बहुत पहले से रहा है। यह हिंदी का सबसे पुराना पोर्टल है। विनयजी की टीम को मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। आशा करता हूँ कि भविष्य में आप और भी अधिक उन्नति करें तथा आपके इस पोर्टल के माध्यम से लोग हिंदी पढ़ना व लिखना सीखें।

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