रावण एक ऐसा नाम है जो कोई भी अपने बच्चे का रखना पसंद नहीं करता। रावण एक शूरवीर, ज्ञानी, प्रकाण्ड ज्योतिषी और बड़े साम्राज्य का मालिक होने के साथ-साथ दशानन याने दस दिमाग रखने वाला विद्वान था। रावण ने अपनी व अपने राक्षस रूपी परिवार, रिश्तेदार, कुटुम्बजनों के मोक्ष के लिए ही माँ सीता का हरण किया था।
प्रकाण्ड ज्योतिष होने के नाते वह समझता था कि राम के हाथों ही उद्धार संभव है। तीनों लोकों को कँपाने वाला भला साधारण इन्सान से तो नहीं मर सकता था, इसीलिए उसने सीताहरण कर अपनी मृत्यु का मार्ग प्रशस्त किया।
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उज्जैन के ज्योतिष शिरोमणि स्वर्गीय पं. सूर्यनारायण व्यास के कुण्डली संग्रह से उद्धृत रावण की कुण्डली का विश्लेषण प्रस्तुत है। रावण का जन्म लग्न सिंह है, वहीं लग्न में लग्नेश सूर्य व पंचम विद्या व अष्टम मृत्यु के भाव का स्वामी गुरु अति मित्र राशि का होकर सूर्य से युति कर रहा है।
द्वितीय भाव धन, कुटुम्ब, वाणी एवं एकादश आय भाव का स्वामी द्वितीय भाव में उच्च का है। तृतीय भाव पराक्रम, भाई, शत्रु में उच्च का शनि षष्ट नाना, मामा रोग, कर्ज व सप्तम पत्नी भाव का स्वामी बैठा है। पंचम भाव विद्या, संतान भाव में नीच का राहु विद्यमान है। मंगल उच्च का होकर षष्ट भाव में सुख, माता, भूमि, भवन व भाग्य धर्म यश का स्वामी है। तृतीयेश भाव का स्वामी स्वराशि का होकर दशम राज्य भाव में है।
केतु नीच का होकर एकादश आय भाव में है। चन्द्र स्वराशि कर्क का होकर द्वादश भाव में है। राम व रावण की राशि एक ही थी लेकिन अन्य ग्रहों की स्थिति व लग्न भिन्न था। इसी कारण दोनों में भिन्नता थी। यह है ग्रहों की स्थिति, जहाँ पराक्रमेश शुक्र ने स्वराशिस्थ होने से अपने पराक्रम के बल पर एक विशाल साम्राज्य का मालिक बनाया तो बुध ने धन-कुटुम्ब व वाणी से प्रभावी बनाया।
षष्ट नाना, मामा व पत्नी भाव का स्वामी उच्च का होने से विद्वान, समझदार पत्नी मन्दोदरी मिली। जिसने बहुत समझाया कि सीता को मुक्त कर दो लेकिन रावण नहीं माना। मानता भी क्यों उसे मुक्ति जो पाना थी। उच्च के मंगल ने साहसी परम शत्रुहन्ता बनाया।