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चिरंजीव: कालसर्प योग दिलाएगा उच्च पद

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पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे

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चिरंजीव की कुंडली में सूर्य जिस स्थान पर बैठा है उसके प्रभाव से धन संपदा के साथ अनेक प्रकार की संपदा का लाभ चिरंजीव को मिलता है। चिरंजीव के जन्म के समय चंद्रमा कन्या राशि पर विराजमान रहने से धार्मिक प्रवृत्ति का बनाता है एवं बुद्धि तेज गति से कार्य करती है अथवा स्‍िथर रहती है जो चिरंजीव में है।

चिरंजीव की कुंडली में पूर्ण कालसर्प योग है जो व्यक्ति को उच्च पद एवं सम्मान दिलाता है। हमेशा शिव आराधना करना चाहिए एवं कालसर्प योग की पूजा करना चाहिए एवं 'नागेंद्रहराय त्रिलोचनाय भस्माद रागाय, महेश्वर नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै न काराय नम: शिवाय' मंत्र का प्रतिदिन जाप करना चाहिए।

चिरंजीव की कुंडली में बुध एकादश भाव में रहने से बुध लाभ की अधिकता के कारण जातक को कभी धन का अभाव नहीं होने देता। इसी के साथ भौम पारिवारिक कष्ट को उत्पन्न करता है। गुरु चिरंजीव के जन्म के समय कर्क राशि पर विराजमान जिसके फलस्वरूप स्त्री पुत्रादि तथा धन से संपन्न रखता है।

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शुक्र के कारण जातक को धनागम निरंतर बना रहता है। शनि प्रथम भाव में रहने से जातक संपत्तिवान बनता है। निगाह कमजोर रहती है। चिरंजीव मा‍नसिक तनाव में रहते हैं। शनि तुला राशि का विराजमान रहने से राज्य का सुख एवं अधिकारी बनाता है।

चिरंजीव का जन्म मंगल की महादशा में हुआ जिसका भोग्यकाल 3 वर्ष 9 माह 10 दिन था। वर्तमान में 19 वर्ष के लिए शनि महादशा चल रही है जो 2/6/1993 से 2/6/2012 तक रहेगी। 1 मई से 25 जून तक भाग्य आपका साथ देगा। 1 मई तक तक किसी की सलाह पर कार्य करें, हितकर होगा।

चिरंजीव के विपक्षी को हराकर जीतने के पूर्ण योग हैं। चिरंजीव किसी भी कार्य के लिए जून से अगस्त के बीच अन्य व्यक्ति की सलाह पर बिना सोचे कार्य न करें। अगस्त से 1 अक्टूबर तक मित्रों से एवं पक्ष वालों के सहयोग से लाभान्वित होंगे। प्रतिद्वंद्वियों के लिए वर्तमान में आप सिरदर्द बने रहेंगे।

चिरंजीव को नीलम, पन्ना का संयुक्त लॉकेट धारण करना चाहिए एवं शिव, गणेश आराधना अवश्य सफलता दिलाएगी।

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