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आज के शुभ मुहूर्त

(विनायकी चतुर्थी)
  • तिथि- वैशाख शुक्ल चतुर्थी
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00
  • व्रत/मुहूर्त-विनायकी चतुर्थी
  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
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शक्ति से शक्ति की कामना का पर्व

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नूपुर दीक्षित

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शक्ति की आराधना का पर्व है नवरात्रिशक्ति के बिना शिव भी शव के समान हैं। इस शक्ति से समूचा ब्रह्मांड संचालित होता है। शक्ति की आराधना के यह नौ दिन अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण होते हैं। कहते हैं कि इन नौ दिनों में ब्रह्मांड की समूची शक्तियाँ जाग्रत हो जाती हैं। इसी शक्ति से विश्‍व का सृजन हुआ, यही शक्ति दुष्‍टों का संहार करती है और इसी शक्ति की आराधना का पर्व है नवरात्रि।

विविध परंपराएँ
नवरात्रि अर्थात महाशक्ति की आराधना का पर्व। नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ रूपों की तिथिवार पूजा-अर्चना की जाती है। देवी दुर्गा के यह नौ रूप हैं- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्‍मांडा, स्‍कंदमाता, कात्‍यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। भारत के हर प्रांत में नवरात्रि मनाने की विविध परंपराएँ हैं।

गुजरात में नवरात्रि के पूरे नौ दिन गरबों का उल्‍लास रहता है और बंगाल में षष्‍ठी से दशमी तक देवी की पूजा की जाती है। मध्‍यप्रदेश व राजस्‍थान में नवरात्रि के दौरान उपवास व देवी के मंदिरों एवं शक्तिपीठ के दर्शन का विशेष महत्‍व है। पंजाब में भी इन नौ दिनों में उपवास और जगराता कर मातारानी की आराधना की जाती है।

इन नौ दिनों तक छोटी कन्‍याओं को देवी स्‍वरूप माना जाता हैं। कन्‍याओं को भोजन करवाकर उन्‍हें दक्षिणा दी जाती है और उनके पैर पूजे जाते हैं। कन्‍याभोज और कन्‍याओं के पूजन की यह परंपरा लगभग सभी प्रांतों में देखी जा सकती है।
एक ओर तो हम कन्‍याओं को देवी मानते हैं और दुसरी ओर हम उन्‍हें जन्‍म लेने से पहले मारने की कोशिश करते हैं, पैदा होने के बाद उन्‍हें ‘पराया धन’ या ‘बोझ’ की संज्ञा दे दी जाती है।
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हमारे यहाँ हर पर्व और त्‍योहार में एक संदेश छ‍िपा होता है। नवरात्रि पर्व में भी एक संदेश समाहित है, जिसकी आज हमारे समाज को सबसे अधिक आवश्‍यकता है। नवरात्रि पर कन्‍याओं का पूजन किया जाता है और उन्‍हें देवी के समान सम्‍मान दिया जाता है। दरअसल इस पर्व में लड़कियों और स्त्रियों को समाज में सम्‍मानजनक दर्जा दिए जाने का संदेश छ‍िपा है।

एक ओर तो हम कन्‍याओं को देवी मानते हैं और दूसरी ओर हम उन्‍हें जन्‍म लेने से पहले मारने की कोशिश करते हैं। पैदा होने के बाद उन्‍हें ‘पराया धन’ या ‘बोझ’ की संज्ञा दे दी जाती है।

समाज में व्‍याप्‍त इन दोहरे मापदंडों के लिए समाज की पिछड़ी मान्‍यताओं को या सिर्फ पुरुषों को ही जिम्‍मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

शक्ति स्‍वरूपा होकर भी क्‍यों औरत अपनी शक्ति को पहचान नहीं पाती, क्‍यों स्‍वयं पर होने वाले अन्‍यायों को सहन करती है?

नवरात्रि के इस पावन पर्व पर महिलाएँ स्‍वयं की शक्ति को पहचाने और दुर्गा माँ से अन्‍याय और अनीति के खिलाफ लड़ने की सीख लें। जब दुर्गा की तरह हम अपने अस्तित्‍व को तेज तथा ओज से और मन को प्‍यार व ममता से भरने की कोशिश करेंगे तभी माँ दुर्गा की आराधना करना सार्थक होगा।

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