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छठ महापर्व की महातैयारी जोरों पर, जानिए छठी मैया के व्रत संबंधी 10 सवालों के 10 जवाब

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इस वर्ष 28 अक्टूबर 2022, शुक्रवार से छठ महापर्व (chhath puja 2022) की शुरुआत हो रही है। छठ सूर्य देवता के पूजन का पर्व है जो कि खासकर उत्तर भारत के राज्य पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के लोग ही मुख्य रूप से यह लोकपर्व मनाते हैं। लेकिन अब पूरे देश-विदेश में भी मनाया जाने लगा है।

कार्तिक महीने के अलावा छठ व्रत चैत्र शुक्‍ल पक्ष में चतुर्थी से लेकर सप्‍तमी तक किया जाता है। इसे आम बोलचाल में चैती छठ कहते हैं। वर्तमान समय में लोकपर्व छठ या सूर्य षष्‍ठी पूजा का फैलाव देश-विदेश के उन भागों में भी हो गया है, जहां बिहार-झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग जाकर बस गए हैं। इसके बावजूद, देश की बहुत बड़ी आबादी इस पूजा की मौलिक बातों से अनजान है। इतना ही नहीं, जिन लोगों के घर में यह व्रत होता है, उनके मन में भी इसे लेकर कई सवाल उठते हैं। 
 
आइए यहां जानते हैं छठी मैया (Chhathi Maiya) व्रत के छठ पर्व से संबंधित 10 खास सवाल और उनके जवाब- 
 
1. छठ महापर्व या सूर्यषष्‍ठी (Surya Shashthi Vrat) व्रत में किन देवी-देवताओं की पूजा की जाती है?
 
इस व्रत में सूर्य देवता की पूजा की जाती है, जो प्रत्‍यक्ष दिखते हैं और सभी प्राणियों के जीवन के आधार हैं... सूर्य के साथ-साथ षष्‍ठी देवी या छठ मैया की भी पूजा की जाती है। पौराणिक मान्‍यता के अनुसार, षष्‍ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्‍हें स्‍वस्‍थ और दीघार्यु बनाती हैं। इस अवसर पर सूर्यदेव की पत्नी उषा और प्रत्युषा को भी अर्घ्य देकर प्रसन्न किया जाता है। छठ व्रत में सूर्यदेव और षष्ठी देवी दोनों की पूजा साथ-साथ की जाती है। इस तरह ये पूजा अपने-आप में बेहद खास है। 
 
2. सूर्य से तो सभी परिचित हैं, लेकिन छठ मैया कौन-सी देवी हैं?
 
सृष्‍ट‍ि की अधिष्‍ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्‍ठी है। षष्‍ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है। पुराणों में इन देवी का एक नाम कात्‍यायनी भी है। इनकी पूजा नवरात्रि में षष्‍ठी तिथि को होती है। षष्‍ठी देवी को ही स्‍थानीय बोली में छठ मैया कहा गया है, जो नि:संतानों को संतान देती हैं और सभी बालकों की रक्षा करती हैं। 
 
3. षष्‍ठी देवी की पूजा की शुरुआत कैसे हुई? पुराण की कथा क्‍या है?
 
प्रथम मनु स्‍वायम्‍भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी, इसके कारण वह दुखी रहते थे। महर्षि कश्‍यप ने राजा से पुत्रेष्‍ट‍ि यज्ञ कराने को कहा. राजा ने यज्ञ कराया, जिसके बाद उनकी महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्‍म दिया। लेकिन दुर्योग से वह शिशु मरा पैदा हुआ था। राजा का दुख देखकर एक दिव्‍य देवी प्रकट हुईं। उन्‍होंने उस मृत बालक को जीवित कर दिया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत खुश हुए. उन्‍होंने षष्‍ठी देवी की स्‍तुति की। तभी से यह पूजा संपन्न की जा रही है। 
 
4. आध्‍यात्‍म‍िक ग्रंथों में सूर्य की पूजा का प्रसंग कहां-कहां मिलता है तथा सनातन धर्म के अनेक देवी-देवताओं के बीच सूर्य का क्‍या स्‍थान है? 
 
शास्‍त्रों में भगवान सूर्य को गुरु भी कहा गया है। पवनपुत्र हनुमान ने सूर्य से ही शिक्षा पाई थी। श्रीराम ने आदित्‍यहृदयस्‍तोत्र का पाठ कर सूर्य देवता को प्रसन्‍न करने के बाद ही रावण को अंतिम बाण मारा था और उस पर विजय पाई थी। श्री कृष्‍ण के पुत्र साम्‍ब को कुष्‍ठ रोग हो गया था, तब उन्‍होंने सूर्य की उपासना करके ही रोग से मुक्‍त‍ि पाई थी...। सूर्य की पूजा वैदिक काल से काफी पहले से होती आई है। आपको बता दें कि सूर्य की गिनती उन पांच प्रमुख देवी-देवताओं में की जाती है, जिनकी पूजा सबसे पहले करने का विधान है। पंचदेव में सूर्य के अलावा अन्‍य 4 हैं: श्री गणेश, देवी दुर्गा, शिव, विष्‍णु।
 
 
5. सूर्य की पूजा से क्‍या-क्‍या फल मिलते हैं? पुराण का क्‍या मत है? 
 
भगवान सूर्य सभी पर उपकार करने वाले, अत्‍यंत दयालु हैं। वे उपासक को आयु, आरोग्‍य, धन-धान्‍य, संतान, तेज, कांति, यश, वैभव और सौभाग्‍य देते हैं। वे सभी को चेतना देते हैं। सूर्य की उपासना करने से मनुष्‍य को सभी तरह के रोगों से छुटकारा मिल जाता है। जो सूर्य की उपासना करते हैं, वे दरिद्र, दुखी, शोकग्रस्‍त और अंधे नहीं होते। सूर्य को ब्रह्म का ही तेज बताया है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इन चारों पुरुषार्थों को देने वाले हैं, साथ ही पूरे संसार की रक्षा करने वाले हैं।
 
6. इस पूजा में लोग पवित्र नदी और तालाबों आदि के किनारे क्‍यों जमा होते हैं?
 
सूर्य की पूजा में उन्‍हें जल से अर्घ्‍य देने का विधान है। पवित्र नदियों के जल से सूर्य को अर्घ्‍य देने और स्‍नान करने का विशेष महत्‍व बताया गया है। हालांकि यह पूजा किसी भी साफ-सुथरी जगह पर की जा सकती है। 
 
7. छठ में नदी-तालाबों पर भीड़ बहुत बढ़ जाती है। भीड़ से बचते हुए व्रत करने का क्‍या तरीका हो सकता है? 
 
इस भीड़ से बचने के लिए हाल के दशकों में घर में ही छठ करने का चलन तेजी से बढ़ा है। 'मन चंगा, तो कठौती में गंगा' की कहावत यहां भी गौर करने लायक है। कई लोग घर के आंगन या छतों पर भी छठ व्रत करते हैं। व्रत करने वालों की सुविधा को ध्‍यान में रखकर ऐसा किया जाता है। 
 
8. ज्‍यादातर महिलाएं ही छठ पूजा क्‍यों करती हैं?
 
ऐसा देखा जाता है कि महिलाएं अनेक कष्‍ट सहकर पूरे परिवार के कल्‍याण की न केवल कामना करती हैं, बल्‍कि इसके लिए तरह-तरह के यत्‍न करने में पुरुषों से आगे रहती हैं। इसे महिलाओं के त्‍याग-तप की भावना से जोड़कर देखा जा सकता है। छठ पूजा कोई भी कर सकता है, चाहे वह महिला हो या पुरुष। पर इतना जरूर है कि महिलाएं संतान की कामना से या संतान के स्‍वास्‍थ्‍य और उनके दीघार्यु होने के लिए यह पूजा अधिक बढ़-चढ़कर और पूरी श्रद्धा से करती हैं। 
 
9. क्‍या इस पूजा में कोई सामाजिक संदेश भी छिपा हुआ है?
 
छठी मैया के छठ पर्व और सूर्यषष्‍ठी व्रत में लोग उगते हुए सूर्य की भी पूजा करते हैं, डूबते हुए सूर्य की भी उतनी ही श्रद्धा से पूजा करते हैं। इसमें कई तरह के संकेत छिपे हैं। ये पूरी दुनिया में भारत की आध्‍यात्‍म‍िक श्रेष्‍ठता को दिखाता है। इस पूजा में जातियों के आधार पर कहीं कोई भेदभाव नहीं है, समाज में सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है। सूर्य देवता को बांस के बने जिस सूप और डाले में रखकर प्रसाद अर्पित किया जाता है, उसे सामा‍जिक रूप से अत्‍यंत पिछड़ी जाति के लोग बनाते हैं। इससे सामाजिक संदेश एकदम स्‍पष्‍ट है। 
 
10. बिहार से छठ पूजा का विशेष संबंध क्‍यों है? चार दिनों तक चलने वाले छठ पूजा में किस दिन कौन-सा पर्व मनाया जाता है? 
 
सूर्य की पूजा के साथ-साथ षष्‍ठी देवी की पूजा की अनूठी परंपरा बिहार के इस सबसे बड़े लोकपर्व में देखी जाती है। यही बात इस पूजा के मामले में प्रदेश को खास बनाती है। बिहार में सूर्य पूजा सदियों से प्रचलित है। सूर्य पुराण में यहां के देव मंदिरों  की महिमा का वर्णन मिलता है। यहां सूर्यपुत्र कर्ण की जन्मस्थली भी है। अत: स्वाभाविक रूप से इस प्रदेश के लोगों की आस्‍था सूर्य देवता में ज्‍यादा है। 
 
4 दिनों तक चलने वाले छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को 'नहाय-खाय' के साथ होती है। इस दिन व्रत करने वाले और घर के सारे लोग चावल-दाल और कद्दू से बने व्‍यंजन प्रसाद के तौर पर ग्रहण करते हैं। वास्‍तव में ये अगले 3 दिनों तक चलने वाली पूजा की शारीरिक और मानसिक तैयारी है। दूसरे दिन, कार्तिक शुक्ल पंचमी को शाम में मुख्‍य पूजा होती है. इसे ‘खरना’ कहा जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस या गुड़ में बनी खीर चढ़ाई जाती है। कई घरों में चावल का पिट्ठा भी बनाया जाता है। 

लोग उन घरों में जाकर प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिन घरों में पूजा होती है। तीसरे दिन, कार्तिक शुक्ल षष्‍ठी की शाम को अस्‍ताचलगामी सूर्य को अर्घ्‍य दिया जाता है। व्रती के साथ-साथ सारे लोग डूबते हुए सूर्य को अर्घ्‍य देकर इस महापर्व का समापन करते हैं। 

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