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जहाँ जड़ है, वहीं जमीन की तलाश

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रायपुर। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का राजनीतिक सफर बेहद रोचक है। शायद ही बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का राजनीतिक सफर छत्तीसगढ़ से शुरू हुआ था और वह अभी भी यहाँ जमीन की तलाश कर रही है। उत्तप्रदेश समेत अन्य कई राज्यों में अमरबेल की तरह बसपा फैल गई, मगर जहाँ जड़ है, वहीं स्थिति मजबूत नहीं हो सकी है। पार्टी के संस्थापक कांशीराम पार्टी गठन के बाद पहला चुनाव जाँजगीर लोकसभा सीट से लड़े थे।

उत्तरप्रदेश में कांग्रेस व भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियों को शिकस्त देकर सत्ता हथियाने वाली बसपा की भूमिका केंद्र की सरकार बनाने में भी रह चुकी है। बसपा की विचारधारा दलित-शोषित समाज को न्याय दिलाने के उद्देश्य से कांशीराम ने पहले कर्मचारियों का संगठन वामसेट बनाया और इसके बाद दलित-शोषित समाज संघर्ष समिति का गठन किया। इसके माध्यम से देशभर में युवाओं को जोड़कर जमीन तैयार की गई। फिर कांशीराम ने 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी का गठन कर दलित-शोषित समाज को राजनीतिक मंच दिया। इसी साल नवंबर-दिसंबर के आम चुनाव उन्होंने जाँजगीर लोकसभा क्षेत्र से पहला चुनाव लड़ा। पार्टी के पुराने कार्यकर्ता बताते हैं कि कांशीराम ने पहला चुनाव छत्तीसगढ़ से इसलिए लड़ा, ताकि यहाँ अधिक से अधिक लोगों को पार्टी की विचारधारा से जोड़ा जा सके। चुनाव में उन्हें करीब 34 हजार वोट मिले थे। देशव्यापी साइकिल यात्रा के माध्यम से भी आंदोलन को तेज किया गया।

अविभाजित मध्यप्रदेश से लेकर अब तक छत्तीसगढ़ में बसपा लोकसभा व विधानसभा चुनाव लड़ती रही है। बसपा ने 1990 के विधानसभा चुनाव में 56 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। इनमें एकमात्र पामगढ़ क्षेत्र से प्रदेश अध्यक्ष दाऊराम रत्नाकर विजयी हुए। वे यहाँ से लगातार तीन बार विधायक रह चुके हैं। 1993 में 89 सीटों पर बसपा प्रत्याशी मैदान में थे, जिनमें केवल रत्नाकर ही जोते। 1998 का चुनाव बसपा के लिए काफी अच्छा रहा। 49 प्रत्याशियों में से तीन विधायक चुने गए, जिनमें पामगढ़ से दाऊराम रत्नाकर, सीपत से इंजीनियर रामेश्वर खरे व सारंगढ़ से डॉ. छबिलाल रात्रे हैं। 2003 में बसपा मात्र दो सीट ही जीत पाई। सारंगढ़ से कामदा जोलहे और मालखरौदा से लालसाय खुंटे।

सालों बाद अब बसपा छत्तीसगढ़ में तीसरी शक्ति के रूप में उभर रही है। सोशल इंजीनियरिंग के जरिए यहाँ वर्चस्व कायम करने की जुगत में है। अभी भी कई क्षेत्रों में बसपा का जनाधार नहीं है, जबकि बसपा की नजर सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ पर रही है। कहा जाता है कि कांशीराम ने छत्तीसढ़ में पार्टी की संभावनाओं को देखते हुए ही जाँजगीर लोकसभा से पहला चुनाव लड़ा था। हालाँकि जांजगीर लोकसभा क्षेत्र पर बसपा आज तक चुनाव नहीं जीत सकी है। इस बार के विधानसभा चुनाव में भी 87 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए हैं।

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