रायपुर। विधानसभा चुनाव के नतीजों के साथ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष धनेंद्र साहू का राजनीतिक भविष्य भी तय हो जाएगा। साय पत्थलगांव तथा साहू अभनपुर से चुनाव लड़ रहे हैं। दोनों को ही अपने प्रतिद्वंद्वी से कड़ी चुनौती मिली है।
सांसद रहते हुए साय को पत्थलगांव से चुनाव लड़ने की पार्टी ने इजाजत दी। सांसद को विधानसभा का चुनाव लड़ाने के मकसद का खुलासा पार्टी ने नहीं किया है, लेकिन बताया जा रहा है कि आदिवासियों को संतुष्ट करने की दिशा में यह एक प्रयास है। एक अन्य आदिवासी सांसद नंदकुमार साय ने भी विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी, लेकिन पार्टी ने उन्हें इजाजत नहीं दी।
भाजपा की आंतरिक राजनीति को जानने वालों को कहना है कि संगठन को विष्णु साय से कोई खतरा नहीं है। अगर वे चुनाव जीतते हैं, तो उन्हें बहुत कम में संतुष्ट किया जा सकता है। वैसे आशंका जताई जा रही है कि भाजपा को बहुमत मिलने पर एक बार फिर आदिवासी नेतृत्व की मांग जोर पकड़ सकती है, पर केंद्रीय नेतृत्व ने पहले ही डॉ. रमन सिंह को मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर दिया है, इसलिए किसी आदिवासी विधायक को उप मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। साय के अलावा चुनाव जीतने पर रामविचार नेताम या ननकीराम कंवर के नाम पर विचार किया जा सकता है।
जानकारों के अनुसार चुनाव हारने की स्थिति में साय को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। साथ ही तीन-चार महीने बाद प्रस्तावित लोकसभा चुनाव में रायगढ़ से साय के स्थान पर पार्टी किसी नए उम्मीदवार को उतार सकती है। परिणाम पर नजर रखते हुए साय ने चुनाव के दौरान अपना पूरा ध्यान क्षेत्र में केंद्रित रखा। अध्यक्ष होने के बावजूद प्रचार के लिए वे किसी अन्य क्षेत्र में नहीं गए। लगभग यही स्थिति कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष धनेंद्र साहू की है। अभनपुर से लगातार चुनाव जीत रहे साहू का नाम इस बार कांग्रेस की अंतिम सूची में था। पार्टी हाईकमान उन्हें मैदान पर उतारने के पक्ष में नहीं था, क्योंकि अध्यक्ष के नाते उन्हें चुनाव लड़ाने की जिम्मेदारी सौंपी जानी थी। साहू इसके लिए राजी नहीं हुए।
मतदान से 15-18 दिन पहले उनका नाम घोषित किया गया। इतने कम समय में वे अपना क्षेत्र पूरी तरह नहीं घूम पाए। वैसे उनका कहना है कि लगातार संपर्क में रहने की वजह से दिक्कत नहीं हुई, लेकिन उनके राजनीतिक विरोधियों ने चुनाव में कई तरह से बाधा डालने की कोशिश की है। कांग्रेस को बहुमत मिलने की स्थिति में साहू स्वाभाविक रूप से मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो जाएंगे और बहुमत नहीं मिलने से उन्हें विपक्ष का नेता बनाया जा सकता है। फिलहाल सबसे बड़ा सवाल उनकी जीत को लेकर उठाया जा रहा है।
विपरीत नतीजों के आने पर अध्यक्ष पद छोड़ने के लिए दबाव बनाया जा सकता है। टिकट कटने से नाराज कांग्रेस के अनेक दिग्गज नेता उनके चुनाव परिणाम पर पैनी नजर गड़ाए हुए हैं, ताकि मौका मिलते ही उन पर वार किया जा सके। जीत-हार की अटकलों के बीच दोनों राजनीतिक दलों के अध्यक्ष अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर गुणा-भाग करने में लगे हैं। दोनों की परिस्थितियों में उन्हें अपनी अगली रणनीति अभी से तय करने की जरूरत पड़ने लगी है। (नईदुनिया)