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बदला रंग नारों का

हमें फॉलो करें बदला रंग नारों का
रायपुर। पहले नारों से पार्टी की विचारधारा झलकती थी, लेकिन अब विचारधारा का स्थान तात्कालिक जरूरत और राजनीतिक नफा-नुकसान ने ले लिया है। इसका सबसे बड़ा नमूना मायावती की बहुजन समाज पार्टी है। 1995 तक बसपा के कार्यकर्ता गला फाड़-फाड़कर नारा लगाते रहे- 'तिलक-तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार', लेकिन 2007 आते-आते तक नारा कुछ यूँ हो गया- 'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है' और वहीं बसपा कार्यकर्ता नारा उछालने लगे- 'ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा।' जाहिर है नारे वैसे ही गढ़े जाते हैं,जैसे राजनीतिक समीकरण होते हैं।

हम शुरुआत कर रहे हैं आजादी से। आजादी के तत्काल बाद कम्युनिस्टों ने नारा उछाला- 'देश की जनता भूखी है, ये आजादी अधूरी है।' हालात के मुताबिक देश के कई इलाकों में ये नारा खूब पसंद किया गया। 1967 में जब पहली बार देश का राजनीतिक दृश्य बदला और दस राज्यों मं गैर-कांग्रेसी सरकारें बनीं तो समाजवादी कार्यकर्ताओं ने नारा बुलंद किया- 'मधु लिमये बोल रहा है, इंदिरा शासन डोल रहा है।' इसके ठीक बाद लाल बहादुर शास्त्री का दिया नारा- 'जय जवान, जय किसान' भी खूब लोकप्रिय हुआ। आपातकाल और संपूर्ण क्रांति का दौर आया। तब जेपी समर्थकों ने नारा गढ़ा- 'संपूर्ण क्रांति अब नारा है, भावी इतिहास हमारा है।' समाजवादियों का नारा था कि 'अंधकार में तीन प्रकाश, गाँधी लोहिया जयप्रकाश।' 1977 में कांग्रेस बुरी तरह हार गई। तब कांग्रेसियों का नारा था- 'देखो भाई मोरारजी का खेल, दस रुपया हो गया कड़वा तेल।' 1978 में इदिरा गाँधी अपनी किस्मत आजमाने चिकमंगलूर पहुँची। तब नारा उछला- 'सौ लंगूर, चिकमंगलूर-चिकमंगलूर।'

एक नारे के जवाब में दूसरा नारा उछालना भी राजनीतिक पार्टियों का पुराना शगल रहा है। मसलन नारे लगाते थे- 'भारत का एक नाथ- विश्वनाथ, विश्वनाथ।' कांग्रेसी जवाबी नारा लगाते थे- 'चक्र नहीं ये चक्का है, वीपी सिंह उचक्का है।' कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ समाजवादी पार्टी ने नारा तैयार किया- 'चलेगी साइकल उड़ेगा धूल, न रहेगा पंजा न रहेगा फूल।' भाजपा में मुरली मनोहर जोशी जब पार्टी अध्यक्ष बने तब- 'भाजपा माँ की तनी धरोहर, अटल-आडवाणी-मुरली मनोहर।' नारे की गूंज सुनाई पड़ी थी। नारों की बात हो और लालू याद न आएँ ये कैसे हो सकता है। 'जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा सत्ता में लालू।'

नारे हर पल तैयार रहते हैं। जैसे जिंदाबाद और संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं। देश में भाजपा के नेतृत्व में पहली बार राजग की सरकार बनी तो भाजपाई नारे लगाते थे- 'अटल, आडवाणी कमल निशान- माँग रहा है हिंदुस्तान।' 'हर समस्या का हल, खिलता हुआ कमल' ने खासी लोकप्रियता हासिल कर ली थी। 'अबकी बारी, अटल बिहारी' नारा भी काफी लोकप्रिय हुआ था।

पिछले विधानसभा चुनाव में भी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा ने एक-दूसरे के जवाब में नारे बुलंद किए। भाजपाइयों के नारे थे- 'आग लगी है आग, भाग ये जोगी भाग।' 'भय, भूख, भ्रष्टाचार, खत्म करो कांग्रेस सरकार। इस चुनाव में भी कांग्रेसियों ने नारा दिया है- पी गए डामर खा गए रोड, उखड़ी सड़कें धूल-धूसरित लोग।' 'छग के लुटेरे, भाजपा के चेहरे।' आने समय में और कई तरह के लोकप्रिय नारे बुलंद हो सकते हैं। (नईदुनिया)

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