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ऐसे जिंदादिल थे पं. नेहरू

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- देवकीनंदन मिश्रराज

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जवाहरलाल नेहरू का व्यक्तित्व निराला था। स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी रहे नेहरूजी जब भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने तब वे लगभग 58 वर्ष के 'युवा' थे और लगभग 17 वर्षों तक उस पद पर रहे। उनकी अत्यधिक व्यस्तता तथा तनावपूर्ण राजनीतिक एवं प्रशासनिक दिनचर्या के बावजूद उनके सामान्य व्यवहार में सदा एक अनोखी जिंदादिली झलकती थी।

जनवरी 1950 में कांग्रेस का 55वाँ अधिवेशन जयपुर में होने जा रहा था। स्वतंत्र भारत का प्रथम अधिवेशन होने के कारण जितनी भारी संख्या में सामान्य कार्यकर्ता एकत्रित हुए थे, उसकी किसी को कल्पना नहीं थी। सैकड़ों लोग खुले में बर्फ-सी ठंडी रेत पर सोने को मजबूर थे। न जाने कैसे नेहरूजी को इसकी भनक लग गई। रात दस बजे अचानक वे आ धमके।

अप्रत्याशित भीड़ के कारण व्यवस्थापकों की मजबूरी बताने पर बोले- 'मैं कश्मीरी हूँ, मैं भी यहीं खुले में सोऊँगा'। फिर सुझाया कि तुरंत बल्लियाँ गाड़कर उन पर चटाइयाँ लगवाई जाएँ। रात के दो बजते-बजते पूरे मैदान पर चटाइयाँ बिछा दी गईं।

फरवरी 1950 में नेहरूजी पहली बार पिलानी आए। रेगिस्तान में हरी सब्जियाँ गाजर-मूली आदि से बनाए गए स्वागत द्वारों पर बोले- 'ये क्या बेवकूफी है!' तुरंत सारी सब्जियाँ उतारकर ग्रामीणों में बाँट दी गईं। नगर में नेहरूजी की शोभायात्रा घोड़ों पर निकली। बावजूद नेहरूजी के बार-बार अनुरोध के कि वे उनके साथ-साथ ही रहें, घनश्यामदास बिड़ला बार-बार काफी आगे निकल जाते थे।
स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी रहे नेहरूजी जब भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने तब वे लगभग 58 वर्ष के 'युवा' थे और लगभग 17 वर्षों तक उस पद पर रहे। उनकी अत्यधिक व्यस्तता तथा तनावपूर्ण राजनीतिक एवं प्रशासनिक दिनचर्या के बावजूद उनके व्यवहार सामान्य रहता था।
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अचानक नेहरूजी चिल्लाए, 'तो घनश्यामदास, फिर हॉर्स रेस ही हो जाए' और अपने घोड़े को एड़ लगाकर खूब आगे निकल गए। उसके बाद बिड़लाजी कभी उनसे आगे नहीं निकले।

इसी दौरे में पंडितजी बालिका विद्यापीठ भी गए। मैं पिलानी का एकमात्र स्टूडियो चलाता था और प्रेस फोटोग्राफरों में शामिल था। बालिकाएँ नारे लगा रही थीं। एक नारा लगा, 'भारत माता की जय'। नेहरूजी बोले, लड़कियों बताओ ये भारत माता कौन है। गुमसुम बालिकाओं ने अपनी शिक्षिकाओं की ओर देखा। 'अरे, उन्हें भी कहाँ मालूम। वास्तव में हमारा देश और उसके सारे निवासी ही भारत माता हैं।' इसके बाद यही बात नेहरूजी ने कई और जगह भी कही।

जून 1950 में दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र विद्यार्थी संगठन का प्रथम अधिवेशन आयोजित हुआ। मैं बिरला कॉलेज पिलानी के नुमाइन्दे के रूप में उसमें शामिल हुआ। अधिवेशन मौरिस ग्वायर हॉल में होना था और नेहरूजी उसका उद्‍घाटन करने वाले थे। उद्‍घाटन से ठीक पहले हॉल के लॉन में नेहरूजी के साथ सभी नुमाइन्दों का एक ग्रुप फोटो होना था।

नेहरूजी और कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी (सम्मेलन के अध्यक्ष) के लिए कुर्सियाँ खाली छोड़, हम सब लोग ग्रुप फोटो के लिए सज गए। यथासमय दोनों अतिथि आकर बैठे। नेहरूजी की कुर्सी के एकदम पीछे एक छात्रा अत्यधिक भड़काऊ मेकअप किए खड़ी थी। नेहरूजी बैठते ही उठे और उस छात्रा की ओर मुड़कर बोले, आई होप आई एम सेफ (मेरी खैर तो है) और पुनः बैठ गए। वह छात्रा ग्रुप में से भाग गई और अधिवेशन के तीनों दिन बिना किसी मेकअप के ही आई।

पचास के दशक के मध्य कानपुर के एक बड़े उद्योगपति के यहाँ एक बड़ी पार्टी में नेहरूजी गए थे। पार्टी में 'फिल्म इंडिया' के सम्पादक/मालिक बाबूराव पटेल भी सपत्नीक आए थे। गर्मी के दिन थे। पार्टी एक लॉन में थी। अचानक हवा से श्रीमती सुशीला रानी पटेल की साड़ी का पल्लू नीचे गिर गया।

नेहरूजी ने लपककर पल्लू उठाकर मुस्कराते हुए, मुस्कराती श्रीमती पटेल को दिया। बाबूराव ने फोटो ले लिया और 'फिल्म इंडिया' में 'किसकी मुस्कान ज्यादा मोहक है' शीर्षक से छाप दिया। नेहरूजी को जब वह पत्रिका दिखाकर उनके एक साथी ने पूछा कि क्या जवाब है शीर्षक का, तो नेहरूजी तपाक से बोले, 'इस नौजवान की मुस्कराहट लाजवाब है।'

ऐसे जिंदादिल थे अपने जमाने में बच्चों के प्रिय चाचा नेहरू। इसीलिए उनका जन्मदिन बाल दिवस के रूप में मनाया जाना ठीक ही है।

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