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बच्चों के प्यारे चाचा नेहरू

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चाचा नेहरू बच्चों को सचमुच प्यार करते थे। उनके साथ खेलते थे। जहां भी उन्हें कोई प्यारा-सा बच्चा दिखाई देता उसे उठा लेते थे। एक दिन वे जब ऑफिस से घर लौट रहे थे तो देखा लॉन में बहुत सी मजदूर औरतें काम कर रही है। उन्हीं में से किसी का बच्चा एक पेड़ के नीचे लेटा हुआ रो रहा था।

 


पंडितजी उसके पास गए, उसे गोद में लेकर पुचकारा और उछाला। प्यार की थपकी पा कर बच्चा चुप हो गया। पंडितजी ने उसे उसकी मां को देते हुए कहा,-'बच्चे को इस तरह अकेले नहीं छोड़ना चाहिए।'

एक और घटना- उन दिनों इंडोनेशिया की आजादी की लड़ाई दिल्ली की सड़कों पर लड़ी जा रही थी। उसी समय प्रेसीडेंट श्योकरणों दिल्ली आए हुए थे। कांस्टीच्यूशन क्लब में उनका भाषण था तब यह क्लब कर्जन रोड पर था। उन दिनों आतंकवाद का कोई डर नहीं था।

सभा के समाप्त होने पर राष्ट्रपति श्योकरणों, पंडितजी दौर हम सब साथ-साथ बाहर आए। सहसा एक बालिका बाहर से भागती हुई आई और उसके पंडितजी की ऊंगली पकड़ ली। पंडितजी उसे प्यार से थपथपाते हुए वैसे ही आगे बढ़ते चले गए। रात का समय था। सबने समझा कि यह लड़की हमारे देश के या इंडोनेशिया के किसी बड़े नेता की लड़की है। लेकिन वह लड़की जैसे आई थी वैसे ही भागती हुई बाहर चली गई।

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जब वह पास से गुजरी तो सब यह देखकर चकित रह गए कि उसके कपड़े फटे और बाल उलझे हुए थे और वह निहायत भद्दी दिखाई दे रही थी। वह किसी गरीब मजदूर की बेटी थी। क्या इन घटनाओं से यह नहीं पता लगता कि न तो पंडितजी के प्यार की कोई धार थी, न कोई छोटे-बड़े का भेदभाव था।

इसीलिए बच्चे भी उन्हें बहुत प्यार करते थे। केवल इसीलिए नहीं कि पंडितजी उनको बहुत प्यार करते थे। बल्कि इसलिए भी कि वे करिश्मों वाले आदमी थे। और बच्चों में एक सहज प्रवृत्ति होती है कि वे करिश्मे वाले आदमी को बहुत प्यार करते हैं। प्यार सबसे बड़ा करिश्मा है। लेकिन इससे भी बड़ा एक और करिश्मा है कोई जादू भरी बात कहना। चाचनेहरइसमेमाहिथे

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