सभी अभिभावक बच्चे के जन्म से पहले ही उसकी कैसी परवरिश करेंगे, उसके साथ कैसा व्यवहार करेंगे, उसे क्या सिखाएंगे, भविष्य में उसे क्या बनाएंगे- वगैरह-वगैरह सोच लेते हैं। लेकिन बाद में अक्सर यह देखने में आता है कि ज्यादातर माता-पिताओं का पूरा ध्यान तो बच्चे की सेहत व पढ़ाई पर ही टिक जाता है। वे एक बहुत महत्वपूर्ण पहलू पर बच्चे की देखभाल करना भूल ही जाते हैं या कहें कि अभिभावकों को ही पता नहीं होता कि इस पहलू पर भी बच्चे को समझाना, सिखाना व प्रशिक्षण देना जरूरी है जिससे कि आप उसे सही मायने में जीवन जीने सिखा सकें।
आमतौर पर अभिभावक बच्चे की पढ़ाई में रुचि को ही उसके जीवन में भी सफल होने का एकमात्र पैमाना मान लेते हैं, जो कि सही नहीं है। पढ़ाई, प्रमाण-पत्र व शैक्षिक उपाधि या डिग्री प्राप्त करना एक बात है और जीवन के हर उतार-चढ़ाव व हर परीक्षा को पार करके जीवन में सफल होना दूसरी बात है।
क्या आपने अपने बच्चे को कभी जीवन जीने की कला सिखाई? यदि नहीं तो अब जान लीजिए कि वे कौन सी आदतें हैं, जो कि आपको अपने बच्चे में बचपन से ही विकसित करनी चाहिए, जो बड़े होने पर उसका सहारा व ताकत बनेंगी।
1. बच्चे को जीवन में अनुशासन में रहना सिखाएं। स्कूल उसके जीवन का मात्र एक हिस्सा है। सिर्फ स्कूल से जुड़ीं गतिविधियां व लोग ही उसका पूरा जीवन नहीं हैं। जब तक वह स्कूल व कॉलेज में होता है तब तक वहां कुछ घंटे अनुशासन में रहना उसके लिए अनिवार्य होता है लेकिन उसके बाद क्या? बच्चे की दिनचर्या को भी बचपन से अनुशासन में रखें, जैसे समय पर सोना व उठना, व्यायाम करना, किताबें पढ़ना, खेलना, लोगों से मिलता-जुलना वगैरह, जिससे कि स्कूल व कॉलेज खत्म होने के बाद भी उसका अनुशासन बना रहे और दिनचर्या व्यवस्थित रखने की आदत उसे जीवनभर काम आएगी।
2. जब आपका बच्चा छोटी-छोटी पर रूठे तो तुरंत उन्हें मनाने के लिए हाजिर न हो जाएं। नहीं तो जाने-अनजाने जीवन में भी वे सभी से यही उम्मीद करेंगे कि कोई उनके लिए वही सब करेगा, जो आप खुद करते आए हैं और वैसा न होने पर वे दुखी होकर निराशा में घिर जाएंगे। आप उन्हें खुद ही चुप होने दें या उन्हें बताएं कि जब उन्हें खराब महसूस हो रहा हो, उस समय वे ऐसा क्या करें जिससे कि उनका मन बहल जाए। उन्हें खुद को जानने के लिए प्रेरित कीजिए। उन्हें खुद ही अपना मूड ठीक करना और हर स्थिति में खुश रहना आ जाएगा।
3. बच्चे को सब्र रखना सिखाएं। उसकी हर इच्छा की पूर्ति तुरंत न करें और हर बात के लिए मना भी न करें। लेकिन जो चीजें उसी समय होना अनिवार्य नहीं हों, ऐसी कुछ चीजों पर उसे इंतजार करना सिखाएं, क्योंकि जीवन में आगे भी उसकी हर जरूरत की चीज उसे उसी समय मिल जाए, ऐसा नहीं हो पाएगा। तब यही इंतजार व सब्र रखने की आदत उसके काम आएगी।
4. बच्चे में बचपन से ही छोटी-छोटी बातों पर खुद ही निर्णय लेने की आदत डालें। भविष्य में कोई और उनके लिए अच्छा सोचे, यह इस प्रतियोगिताभरे जमाने में बिलकुल भी जरूरी नहीं है। उनमें अपने बारे में स्वयं ही सोचने की आदत विकसित करें। उनसे जुड़ा हर निर्णय आप ही ले लेंगे तो उन्हें दुनियादारी की समझ कहां से आ पाएगी? वे अपने वर्तमान व भविष्य के बारे में सोचना ही नहीं सीख पाएंगे। आप उनका थोड़ा मार्गदर्शन करें और बाकी उन पर ही छोड़ दें जिससे कि कभी सही, तो कभी गलत निर्णय करते-करते अपने अनुभव से वे स्वयं ही सही सोचना सीख जाएंगे।
5. आपके बच्चे का रुझान किस ओर है, यह उसके बचपन से ही जानने की कोशिश करें। जिस भी चीज में आपके बच्चे का इंट्रेस्ट है, उसे वे चीजें करने से न रोकें। आप उसे अनुशासन में जरूर रखें और दूसरे दैनिक काम व पढ़ाई करने में संतुलन बनाए रखने के लिए उसे हर काम को एक निर्धारित समय के लिए करने की आदत डालें।
6. कोई नहीं जानता कि जो काम अभी आपका बच्चा केवल शौक के लिए कर रहा है, वही आगे जाकर उसका प्रोफेशन भी बन सकता है और हो सकता है वह उस काम में ज्यादा नाम कमाए।
7. आगे जाकर यदि उसका शौक उसका व्यवसाय न भी बना, तब भी हर किसी को अपने शौक को जिंदा रखना चाहिए व अपने शौक के लिए समय निकालना ही चाहिए, क्योंकि कई बार उम्र के बढ़ने पर और जीवन के उतार-चढ़ाव से जब आपका बच्चा कभी निराशा में घिर जाएगा तब इन्हीं शौक के साथ समय बिताने से उसे फिर आगे बढ़ने की सकारात्मक ऊर्जा मिलेगी।
8. बच्चे में उसकी उम्र के हिसाब से अपने काम खुद करने की आदत डालें जिससे कि उसमें खुद के प्रति जिम्मेदारी की भावना आएगी, क्योंकि आप जीवन में हमेशा उसके साथ नहीं होंगे उसके सभी काम व इच्छाएं पूरी करने के लिए!