ईसा मसीह का बेथलेहेम कैसा है?
क्रिसमस का अर्थ होता है क्राइस्ट्स मास। क्रिसमस 25 दिसंबर को ईसा मसीह के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यह ईसाइयों का महत्वपूर्ण त्योहार है।एक यहूदी बढ़ई की पत्नी मरियम (मेरी) के गर्भ से यीशु (isa masih) का जन्म बेथलेहेम में हुआ। ईसा जब बारह वर्ष के हुए, तो यरुशलम में दो दिन रुककर पुजारियों से ज्ञान चर्चा करते रहे। सत्य को खोजने की वृत्ति उनमें बचपन से ही थी।बाइबिल में उनके 13 से 29 वर्षों के बीच का कोई जिक्र नहीं मिलता। 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने यूहन्ना (जॉन) से दीक्षा ली। दीक्षा के बाद वे लोगों को शिक्षा देने लगे। 13 से 29 वर्ष के बीच और सूली पर लटका देने के बाद वे भारत में ही रहे। जम्मू कश्मीर के श्रीनगर की रौजाबल नामक इमारत में उनकी समाधि है। श्रीनगर के खानयार इलाके में एक तंग गली में स्थिति है रौजाबल। उनके एक 12 शिष्यों में से एक शिष्य थॉमस ने भी अपना पूरा जीवन भारत के केरल में ही ईसाई धर्म प्रचार कर बिताया। मेरी मेग्दालिन भी ईसा की शिष्या थीं जिन्हें उनकी पत्नी बताए जाने के पीछे विवाद हो चला है।
कैसा है बेथलेहेम (bethlehem city) : फिलिस्तीन के कब्जे में बेथलेहेम के हालात खस्ता है। फिलिस्तीन की याचिका पर यूनेस्को ने यहां के चर्च को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया है। बेथलेहेम में एक गुफा में बना ईसा मसीह का जन्म स्थान है जिसके आसपास गिरजा बना दिया गया है। इसे चर्च ऑफ नेटिविटी कहते हैं। यह स्थल घोड़ों का अस्तबल, भेड़शाला या शायद गौशाला था।बाइबल अनुसार ईसा के माता-पिता नाजारेथ में निवास करते थे, लेकिन वे बाद में बेथलेहेम आए थे। उनके परिवार के नाजारेथ लौटने से पूर्व वहीं ईसा का जन्म हुआ था। विश्व के सबसे प्राचीन ईसाई समुदायों में से एक इस शहर में निवास करता है।यूनेस्को ने कहा कि जिस स्थान पर यह चर्च है, उसे ईसाई परंपरा के अनुसार ईसा मसीह का जन्म स्थल माना जाता है। पानी के रिसाव के कारण वहां जाने वाला तीर्थ मार्ग क्षतिग्रस्त है।यहां पर सबसे पहले 339 ईस्वी में एक चर्च पूरा किया गया था और छठी शताब्दी में आग लगने के बाद जिस इमारत ने उसकी जगह ली है, उसमें मूल इमारत के फर्श पर विस्तृत पच्चीकारी को बरकरार रखा गया है।यह स्थल यरुशलम से 10 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। इसमें लातिन, ग्रीक आथरेडॉक्स, फ्रांसिस्कन और आर्मीनियन कॉन्वेंट और गिरजाघरों के साथ-साथ घंटाघर और बगीचे भी शामिल हैं।फिलिस्तीनियों ने रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में 21 राष्ट्रों वाली विश्व विरासत समिति की बैठक में तीर्थ मार्ग और चर्च को खतरे में पड़ी धरोहरों की सूची में डालने के लिए दबाव डाला था।विश्व धरोहरों की सूची का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय समुदाय को असाधारण वैश्विक महत्व की संपत्तियों के खतरे में पड़े होने के बारे में सूचित करना और सुधारात्मक कार्रवाई के लिए प्रोत्साहित करना है।यूनेस्को की विश्व विरासत समिति ने इसराइल, पलाउ, इंडोनेशिया, मोरक्को, चीन, सेनेगल और कोटे डी ल्वॉयरे के महत्वपूर्ण स्थलों को भी विश्व विरासत सूची में शामिल किया है। ईसा का नामकरण : यीशु पर लिखी किताब के लेखक स्वामी परमहंस योगानंद ने दावा किया गया है कि यीशु के जन्म के बाद उन्हें देखने बेथलेहेम पहुंचे तीन विद्वान भारतीय ही थे, जो बौद्ध थे। भारत से पहुंचे इन्हीं तीन विद्वानों ने यीशु का नाम 'ईसा' रखा था। जिसका संस्कृत में अर्थ 'भगवान' होता है।एक दूसरी मान्यता अनुसार बौद्ध मठ में उन्हें 'ईशा' नाम मिला जिसका अर्थ है, मालिक या स्वामी। हालांकि ईशा शब्द ईश्वर के लिए उपयोग में लाया जाता है। वेदों के एक उपनिषद का नाम 'ईश उपनिषद' है। 'ईश' या 'ईशान' शब्द का इस्तेमाल भगवान शंकर के लिए भी किया जाता है।कुछ विद्वान मानते हैं कि ईसा इब्रानी शब्द येशुआ का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है होता है मुक्तिदाता। और मसीह शब्द को हिंदी शब्दकोश के अनुसार अभिषिक्त मानते हैं, अर्थात यूनानी भाषा में खीस्तोस। इसीलिए पश्चिम में उन्हें यीशु ख्रीस्त कहा जाता है। कुछ विद्वानों अनुसार संस्कृत शब्द 'ईशस्' ही जीसस हो गया। यहूदी इसी को इशाक कहते हैं।-
वेबदुनिया डेस्कईसा मसीह और ईसाई धर्मईसा मसीह का भारत भ्रमण!