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प्रथम संस्कार : स्नान संस्कार

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हमें फॉलो करें स्नान संस्कार
स्नान संस्कार प्रथम संस्कार है... क्योंकि इसके बिना दूसरे संस्कार नहीं लिए जा सकते।

स्नान संस्कार एक ऐसा संस्कार है, जो हमें आदि पाप के दाग एवं व्यक्तिगत दूसरे पापों से शुद्ध करता है... ईश्वर के बेटे... येसु ख्रीस्त के भाई और उसकी कलीसिया के सदस्य बनाता है।

स्वयं येसु ख्रीस्त ने कहा था कि यह संस्कार मुक्ति के लिए अति आवश्यक है, 'जब तक मनुष्य जल और पवित्र आत्मा से नहीं जन्मता, वह स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।' (योहन 3:5)

और ख्रीस्त ने अपने प्रेरितों से कहा, 'संसार के कोने-कोने में जाकर प्रत्येक प्राणी को सुसमाचार सुनाओ, जो विश्वास करके बपतिस्मा ग्रहण करेगा, वह मुक्ति पाएगा। जो विश्वास नहीं करता, उसे दंड की आज्ञा मिलेगी।' (मार. 16:16)

स्वभाविक नियम से जब हम मनुष्यता से जन्मते हैं तो हम मानव समाज में होते हैं।

अलौकिक नियम जल और पवित्र आत्मा से जन्मते हैं तो हम अलौकिक समाज (काथलिक कलीसिया) में पैदा होते हैं। इसमें हमारा जन्म और जीवन जो हम एक सदस्य होकर उससे प्राप्त करते हैं, इसका प्रत्येक अंग, वैसा ही वास्तविक है, जैसा हमारा मानव जन्म और जीवन। यह हमें मानव स्वभाव के भागीदार बनाता है बपतिस्मा हमें दैविक स्वभाव का भागीदार बनाता है।

प्रत्येक संस्कार ख्रीस्त के द्वारा स्थापित किया गया था... बाहरी चिह्न निहित होते और कृपा देता है। ख्रीस्त ने सुस्पष्ट शब्दों में स्नान संस्कार की स्थापना की जब उसने कहा, 'स्वर्ग में और पृथ्वी पर सारा अधिकार मुझे मिला है, इसलिए जाओ सब जातियों को शिष्य बनाओ, उनको पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम में बपस्तिमा दो और जो-जो आज्ञाएँ मैंने तुम्हें दी हैं, उन सबका पालन करना उन्हें लिखलाओ। और सुनो, संसार के अंत तक मैं सब दिन तुम्हारे साथ हूँ।' (मत्ती 28:19-20)

प्रेरितों के बपतिस्मा देने के दिन से ही पवित्रात्मा उन पर उतर आया, निकोदेमुस को कहे गए ख्रीस्त के शब्द उन्हें याद आए, 'यदि कोई जल और आत्मा से जन्म नहीं लेता, तो वह ईश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।' (योहन 3:5)

शिशु बपतिस्मा सामान्य बात थी, क्योंकि उनका यह तर्क था कि प्रत्येक जो इस संसार में आता है, अपनी आत्मा में आदि पाप का दाग लेकर जन्मता और हर एक को उससे छुटकारे का अधिकार है।

जब पानी का बपस्तिमा... जो कि सामान्य तरीका है... नैतिकता या शारीरिकता से असंभव होता है तो ऐसी स्थिति में अनन्त जीवन प्राप्त करने हेतु इच्छा का बपतिस्मा या रक्त का बपतिस्मा प्राप्त किया जा सकता है।

जल का बपतिस्मा- स्नान संस्कार पाने वाले व्यक्ति के कपाल पर पानी डालते हुए दिया जाता है और पानी डालते हुए यह कहा जाता है, 'मैं तुम्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम में बपतिस्मा देता हूँ।' (मत्ती 28:19)

इच्छा का बपतिस्मा का अर्थ है, वे प्रत्येक जिनकी हार्दिक इच्छा होती है कि जो कुछ ईश्वर चाहता है, वह करें और पाप का पूर्ण प्रायश्चित हो- वे स्वर्ग पा सकते हैं। कलीसिया 'डुबाने' या 'छिड़कने' के बजाय 'डालना' क्यों कहती है?

क्योंकि शुरुआत के दिनों से ऐसा ही होता था और बहुत अधिक व्यवहारिक था!... क्योंकि शिशुओं या जो अस्तपतालों या जेलों में होते थे, उन्हें डुबाना असंभव होता था।

रक्त का बपतिस्मा या उनके द्वारा लिया जाता है जो ख्रीस्त के लिए मरते या दुःख भोगते हैं... और जिन्हें पानी का बपतिस्मा नहीं दिया जा सकता।

स्नान संस्कार देने वाला साधारणतया एक पुरोहित होता है... परन्तु आवश्यकता के समय जैसे मृत्यु के खतरे में कोई भी साधारण बुद्धि वाला बपतिस्मा दे सकता है और जो बपतिस्मा देता है, वह बपतिस्मा लेने वाले के सिर पर यह साधारण पानी डाले- 'मैं तुम्हें पिता, पुत्र पवित्रात्मा के नाम में बपतिस्मा देता हूँ।' (मत्ती 28:19)

बपतिस्मा के लिए कितने उत्तरदाताओं (धर्म माता-पिता) की आवश्यकता है?

एक ही आवश्यक है... काथलिक धर्म का मानने वाला हो और उसी लिंग का हो।

क्यों बपतिस्मा का नाम जरूरी है? नाम से अधिक इसमें बहुत कुछ है। अपनी पहचान क्यों खोना? सिर्फ तुम्हारे नाम को जानकर सबों को यह मालूम होना है कि तुम ख्रीस्तीय हो। अभिन्न रहने की हिम्मत है।

हम सिक्खों को उनके नाम से जानते हैं, मुसलमानों को उनके नाम के तो ख्रीस्तीयों को उनके नाम से जानने में क्या बुराई है? जबकि उपनाम आसानी से बदले जा सकते हैं... बपतिस्मा के नाम को ऐसा नहीं होना चाहिए। उन्हें ख्रीस्तीय होना चाहिए।

इतना सब के बावजूद, बपतिस्मा के समय ख्रीस्तीय नाम क्यों दिया जाता है? यह इसलिए कि हम बपतिस्मा वालों को कलीसिया, संत की देखभाल और सुरक्षा में रखना चाहती है, जिससे कि उनका एक खास मित्र स्वर्ग में हो जो हमारे लिए प्रार्थना करे और हमारी देखभाल करे।

एक नाम भी ख्रीस्त का साक्ष्य देता है, इसलिए उनके लिए इतनी शर्म क्यों।

अपने बपतिस्मा के नाम पर गर्व करो... तुम्हारे संरक्षक संत के सद्गुणों पर चलो... और उससे सलाह एवं आशीष माँगो।

रोमन साम्राज्य के पतन के बाद, सिकामोरी का एक खूँखार नवयुवक, मूर्ति पूजक सेनानायक ने, सभी प्रतिद्वंद्वियों को हराकर सभी फ्रैंकों को एक राज्य में मिला दिया। तब एक बरगंडी की राजकुमारी क्लोटिल्दा की सुंदरता सुन उसने अपने मित्र आउरेलियन के हाथ संदेश एवं सोने की अँगूठी भेजी। बहुत पत्र व्यवहारों एवं संदेशों के पश्चात सन्‌ 43 में उनकी शादी हो गई।

शादी के एक वर्ष बाद एक बालक ने जन्म लिया। क्लोटिल्दा उसे एक ख्रीस्तीय बनाने के लिए बपतिस्मा दिलाना चाहती थी। महान धार्मिक विधि-समारोह में उसे बपतिस्मा दिया गया, इसके बाद क्लोटिल्दा राजा पर प्रभाव डालना चाहती थी। इसके थोड़े ही समय बाद वह लड़का मर गया। क्लोविस ने अपनी पत्नी पर दोष लगाया। 'मेरे ईश्वर नाराज हैं, क्योंकि तुमने उसे बपतिस्मा दिया और तुम्हारा ईश्वर उसे बचा न सका।'

परन्तु क्लोटिल्दा ने जवाब दिया, 'मैं अपने पुत्र को प्यार करती थी और जानती हूँ कि उसके बपतिस्मा के बाद वह ईश्वर की उपस्थिति में प्रसन्न है। मैं ईश्वर को धन्यवाद देती हूँ कि मेरा पुत्र स्वर्ग में है।'

क्लोविस पत्नी से प्यार करता था और जब उसे दूसरा पुत्र हुआ तो उसने उसे अपनी पत्नी की इच्छा पर छोड़ दिया। उसे भी बपतिस्मा दिया गया। यह बच्चा भयंकर बीमार पड़ा और क्लोविस ने सारा दोष ख्रीस्तीय ईश्वर पर डाला, परन्तु क्लोटिल्दा रात-दिन प्रार्थना करती गई और बालक चंगा हो गया।

इसके तुरंत बाद क्लोविस को जर्मन जाति, अलेमानी के साथ युद्ध लड़ना पड़ा। उसके सैनिक हारते गए और परिस्थिति बड़ी ही नाजुक हो गई। उसने प्रार्थना की 'हे क्लोटिल्दा के ईश्वर, मुझे विजय दो और मैं तुमसे यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं बपतिस्मा लूँगा।' कुछ दिनों के युद्ध के पश्चात बाजी पलट गई और उसके सैनिकों ने अलेमानियों को परास्त कर दिया।

क्लोविस ने अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की और उसकी पत्नी क्लोटिल्दा ने प्रशिक्षण में उसकी सहायता की। जब उसने हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त के क्रूस पर ठोंके जाने की बात सुनी तो चिल्ला उठा, 'ओह! यदि मैं अपने फ्रेंकों के साथ वहाँ होता।'

उसने अपने युद्ध के साथियों को इस विषय में कहा और उसके साथ बहुत से लोग ख्रीस्तीय बनने को तैयार हो गए।

और तब 496 के ख्रीस्त जयंती पर्व पर रेम्स के पास, उसके साथ तीन हजार व्यक्तियों ने बपतिस्मा लिया। पवित्र बिशप संत रेमी राजा और उसकी प्रजा को हारों से सजी गलियों से गिरजाघर में ले जाया गया।

स्नान संस्कार प्राप्त करने के बाद राजा क्लोविस ने सभी युद्ध बंदियों को मुक्त कर दिया, जिन्हें वह पिछले युद्ध में ले आया था।

वह अपनी बाकी जिंदगी विश्वासी काथलिक बना रहा। कलीसिया की रक्षा करता रहा और उसके विकास कार्यों में मदद करता रहा। उसके शासनकाल में ही फ्रांस का उदय हुआ।

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