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संत पौलुस ने किया ईसाई धर्म का प्रचार

संत पौलुस का धर्म परिवर्तन

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पौलुस एक पक्का यहूदी था। शिक्षा प्राप्त करने के लिए वह येरुशलम आया हुआ था। अन्य यहूदियों की भांति वहां यह भी ख्रीस्त भक्तों पर अत्याचार किया करता था।

संत स्टीफन की मृत्यु में पौलुस का भी हाथ था। यह देखकर ख्रीस्तानुयायियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जाती है, उसने ख्रीस्तीय धर्म को जड़ से उखाड़ फेंकने का बीड़ा उठाया और तुरंत ही यहूदी अधिकारियों की आज्ञा से ख्रीस्तानुयायियों पर जिहाद बोल दिया। पौलुस का दूसरा नाम सौलुस था।

एक दिन ऐसा हुआ कि सौलुस ख्रीस्त भक्तों को नष्ट करने के लिए कई एक सिपाहियों को लेकर दमिश्क नगर की ओर जा रहा था कि सहसा राह में प्रभु येसु ने उसको दर्शन दिया और कहा, हे सौलुस! तू मुझे क्यों सता रहा है!

इस पर सौलुस ने पूछा, हे प्रभु! आप कौन हैं?

उत्तर मिला, मैं वही येसु हूं जिसे तू सता रहा है।

कांपते-कांपते सौलुस ने कहा, प्रभु! मैं क्या करूं? तुरंत ही सौलुस ने धर्म परिवर्तन किया। ख्रीस्त बैरी सौलुस अब ख्रीस्त प्रेरित पौलुस हो गया।

प्रभु के आदेशानुसार उसने दमिश्क नगर में प्रवेश कर प्रचारक अननीयस के हाथ से स्नान संस्कार ग्रहण किया और उसी दिन से धर्म प्रचार का कार्य आरंभ कर दिया। संत पौलुस ने चौदह पत्र भी लिखे जिसमें धर्म संबंधी सुंदर उपदेश मिलते हैं। पौलुस ने यहूदियों तथा अन्य जातियों को यह प्रमाणित कर दिखाया कि ख्रीस्त ही एकमात्र सत्य मुक्ति का दाता है।

कुछ समय बाद भूमध्य सागर के तटवर्ती देशों में उसने दूर-दूर अनेक स्थानों पर ख्रीस्तीय मंडलियां स्थापित कीं। तीन बड़ी-बड़ी यात्राएं करते हुए वह उपदेशों और पत्रों द्वारा संसार में धर्म प्रचार भी करता रहा। फिलिस्तीन, एशियाई कोचक, यूनान, इटली और स्पेन आदि दूरस्थ देशों ने भी इससे शिक्षा ग्रहण की।

येसु के प्रेम के कारण उसने कितने ही कष्ट सहे, कितने ही दुख उठाए, कितनी ही बार पिटा और कारागारों में बंद किया गया, किंतु वह अपने पथ पर डटा ही रहा। आखिरकार सम्राट नेरो के समय रोम में उसका सिर काटा गया। यह वास्तव में एक महान प्रेरित था, जिसने देश-देशांतरों में प्रभु का नाम फैलाया।

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