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ईसाई धर्म कैसे फैला भारत में?

हमें फॉलो करें ईसाई धर्म कैसे फैला भारत में?
, शनिवार, 14 अप्रैल 2018 (16:29 IST)
ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह हैं जिनका जन्म बेथलेहम में हुआ था। भारत में ईसाइयों की संख्या लगभग 2.78 करोड़ है। कब ईसाई धर्म का भारत में प्रवेश हुआ और कैसे ईसाई धर्म भारत में फैला इस संबंध में संक्षिप्त जानकारी।
 
 
भारत में ईसा मसीह?
ईसा मसीह ने 13 साल से 29 साल उम्र के बीच तक क्या किया, यह रहस्य की बात है। बाइबल में उनके इन वर्षों के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं मिलता है। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि 13 से 29 वर्ष की उम्र और उसके बाद 33 से 112 वर्ष की उम्र तक ईसा मसीह भारत में रहे थे। माना जाता है कि इस दौरान उन्होंने भारतीय राज्य कश्मीर में बौद्ध और नाथ संप्रदाय के मठों में रहकर ध्यान साधना की थी। मान्यता है कि यहीं कश्मीर के श्रीनगर शहर के एक पुराने इलाके खानयार की एक तंग गली में 'रौजाबल' नामक पत्थर की एक इमारत में एक कब्र बनी है जहां उनका शव रखा हुआ है।
 
 
ईसाई प्रचारक सेंट थॉमस:
माना जाता है कि भारत में ईसाई धर्म की शुरुआत केरल के तटीय नगर क्रांगानोर में हुई जहां, किंवदंतियों के मुताबिक, ईसा के बारह प्रमुख शिष्यों में से एक सेंट थॉमस ईस्वी सन 52 में पहुंचे थे। कहते हैं कि उन्होंने उस काल में सर्वप्रथम कुछ ब्राह्मणों को ईसाई बनाया था। इसके बाद उन्होंने आदिवासियों को धर्मान्तरित किया था। दक्षिण भारत में सीरियाई ईसाई चर्च सेंट थॉमस के आगमन का संकेत देता है।
 
 
ईसाई प्रचारक सेंट फ्रांसिस :
इसके बाद सन् 1542 में सेंट फ्रांसिस जेवियर के आगमन के साथ भारत में रोमन कैथोलिक धर्म की स्‍थापना हुई जिन्होंने भारत के गरीब हिन्दू और आदिवासी इलाकों में जाकर लोगों को ईसाई धर्म की शिक्षा देकर ईसाई बनाने का कार्य शुरू किया। कुछ लोग उन पर सेवा की आड़ में भोलेभाले लोगों को ईसाई बनाने का आरोप लगाते रहे हैं।
 
 
मुस्लिम काल में ईसाई प्रचार :
16वीं सदी में पुर्तगालियों के साथ आए रोमन कैथोलिक धर्म प्रचारकों के माध्यम से उनका सम्पर्क पोप के कैथोलिक चर्च से हुआ। परन्तु भारत के कुछ इसाईयों ने पोप की सत्ता को अस्वीकृत करके 'जेकोबाइट' चर्च की स्थापना की। केरल में कैथोलिक चर्च से संबंधित तीन शाखाएठ दिखाई देती हैं। सीरियन मलाबारी, सीरियन मालाकारी और लैटिन- रोमन कैथोलिक चर्च की लैटिन शाखा के भी दो वर्ग दिखाई पड़ते हैं- गोवा, मंगलोर, महाराष्ट्रियन समूह, जो पश्चिमी विचारों से प्रभावित था, तथा तमिल समूह जो अपनी प्राचीन भाषा-संस्कृति से जुड़ा रहा। काका बेपतिस्टा, फादर स्टीफेंस (ख्रीस्ट पुराण के रचयिता), फादर दी नोबिली आदि दक्षिण भारत के प्रमुख ईसाई धर्म प्रचारक थे।
 
 
उत्तर भारत में अकबर के दरबार में सर्व धर्म सभा में विचार-विमर्श हेतु जेसुइट फादर उपस्थित थे। उन्होंने आगरा में एक चर्च भी स्थापित किया था। भारत में प्रोटेस्टेंट धर्म का आगमन 1706 में हुआ। बी. जीगेनबाल्ग ने तमिलनाडु के ट्रंकबार में तथा विलियम केरी ने कलकत्ता के निकट सेरामपुर में लूथरन चर्च स्थापित किया।
 
 
अंग्रेज काल में धर्म प्रचार : भारत में जब अंग्रेजों का शासन प्रारंभ हुआ तब ईसाई धर्म का व्यापक प्रचार प्रसार हुआ। अंग्रेजों के काल में दक्षिण भारत के अलावा पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर में ईसाई धर्म के लाखों प्रचारकों ने इस धर्म को फैलाया। उस दौरान शासन की ओर से ईसाई बनने पर लोगों को कई तरह की रियायत मिल जाती थी। बहुतों को बड़े पद पर बैठा दिया जाता था साथ ही ग्रामिण क्षेत्रों में लोगों को जमींदार बना दिया जाता था। अंग्रेजों के काल में कॉन्वेंट स्कूल और चर्च के माध्यम से ईसाई संस्कृति और धर्म का व्यापक प्रचार और प्रसार हुआ।
 
ईसाई प्रचारक मदर टेरेसा : ऐसा व्यापकर रूप से प्रचारित है कि भारत की आजादी के बाद 'मदर टेरेसा' ने सेवा की आड़ में बड़े पैमाने पर गरीब लोगों को ईसाई बनाया। इस संबंध में ओशो रजनीश ने कहा था कि उन्होंने लोगों के दुखों का शोषण कर उन्हें ईसाई बनाया। मदर टेरेसा और अधिक गरीब लोग चाहती है। ताकि वह उनका धर्मांतरण कैथोलिक धर्म में कर सके। यह शुद्ध राजनीति है। सभी धर्म शोषण कर रहे है।
 
 
मदर टेरेसा का असली नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू था। मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कॉप्जे (अब मसेदोनिया में) में एक अल्बेनीयाई परिवार में हुआ। उनके पिता निकोला बोयाजू एक साधारण व्यवसायी थे। मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं। मदर टेरेसा ने भारत में 'निर्मल हृदय' और 'निर्मला शिशु भवन' के नाम से आश्रम खोले जहां वे अनाथ और गरीबों को रखती थी। 1946 में गरीबों, असहायों, बीमारों और लाचारों के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। 1948 में स्वेच्छा से उन्होंने भारतीय नागरिकता ले ली और व्यापकर रूप से ईसाई धर्म की सेवा में लग गई।
 
 
7 अक्टूबर 1950 को उन्हें वैटिकन से 'मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी' की स्थापना की अनुमति मिल गयी। इस संस्था का उद्देश्य समाज से बेखर और बीमार गरीब लोगों की सहायता करना था। मदर टेरेसा को उनकी सेवाओं के लिए विविध पुरस्कारों एवं सम्मानों से सम्मनित किया गया था। 1983 में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने के दौरान उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा। 1989 में उन्हें दूसरा दिल का दौरा पड़ा और उन्हें कृत्रिम पेसमेकर लगाया गया। साल 1991 में मैक्सिको में उन्हें न्यूमोनिया और ह्रदय की परेशानी हो गयी। 13 मार्च 1997 को उन्होंने 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' के मुखिया का पद छोड़ दिया और 5 सितम्बर, 1997 को उनकी मौत हो गई।
 
 
प्रचारक तेजी कर रहे हैं भारत का धर्मान्तरण :
भारत में वर्तमान में प्रत्येक राज्य में बड़े पैमाने पर ईसाई धर्मप्रचारक मौजूद है जो मूलत: ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय हैं। अरुणालच प्रदेश में वर्ष 1971 में ईसाई समुदाय की संख्या 1 प्रतिशत थी जो वर्ष 2011 में बढ़कर 30 प्रतिशत हो गई है। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि भारतीय राज्यों में ईसाई प्रचारक किस तरह से सक्रिय हैं। इसी तरह नगालैंड में ईसाई जनसंख्‍या 93 प्रतिशत, मिजोरम में 90 प्रतिशत, मणिपुर में 41 प्रतिशत और मेघालय में 70 प्रतिशत हो गई है। चंगाई सभा और धन के बल पर भारत में ईसाई धर्म तेजी से फैल रहा है।
 
 
भारत सरकार ने 2015 में छह धर्मों-हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन के जनसंख्या के आंकड़े जारी किए थे। इन आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2011 में भारत की कुल आबादी 121.09 करोड़ है। जारी जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक देश में ईसाइयों की आबादी 2.78 करोड़ है। जो देश की कुल आबादी का 2.3% है। ईसाइयों की जनसंख्या वृद्धि दर 15.5% रही, जबकि सिखों की 8.4%, बौद्धों की 6.1% और जैनियों की 5.4% है। देश में ईसाई की जनसंख्या हिंदू और मुस्लिम के बाद सबसे अधिक है।
 
 
भारत में 96.63 करोड़ हिंदू हैं, जो कुल आबादी का 79.8% है। मुस्लिम 17.22 करोड़ है जो कुल आबादी का 14.23% है। दूसरे अल्पसंख्यकों में ईसाई समुदाय है। एक दशक में देश की आबादी 17.7% बढ़ी है। आंकड़ों के मुताबिक देश की आबादी 2001 से 2011 के बीच 17.7% बढ़ी। मुस्लिमों की 24.6%, हिंदुओं की आबादी 16.8%, ईसाइयों की 15.5%, सिखों की 8.4%, बौद्धों की 6.1% तथा जैनियों की 5.4% आबादी बढ़ी है।
 
 
साल 2001 से 2011 के बीच कुल आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी 0.7%, सिखों की आबादी 0.2% और बौद्धों की 0.1% घटी है जबकि मुस्लिमों की हिस्सेदारी में 0.8% वृद्धि दर्ज की गई है। ईसाइयों और जैनियों की कुल जनसंख्या में हिस्सेदारी में कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं दर्ज की गई। (एजेंसियां)

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