Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(चतुर्दशी तिथि)
  • तिथि- वैशाख कृष्ण त्रयोदशी
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30 तक, 9:00 से 10:30 तक, 3:31 से 6:41 तक
  • व्रत/मुहूर्त-गुरु अस्त (पश्चिम), शिव चतुर्दशी
  • राहुकाल-प्रात: 7:30 से 9:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

कश्मीर में है ईसा मसीह के जीवन से जुड़े 4 स्थान?

हमें फॉलो करें कश्मीर में है ईसा मसीह के जीवन से जुड़े 4 स्थान?

अनिरुद्ध जोशी

पाम संडे को ईसा मसीह का नगर प्रवेश हुआ था। गुड फ्राइडे को उन्हें सूली पर लटका दिया गया था और ईस्टर को वे पुन: जीवित हो गए थे। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि भारत के कश्मीर में जिस बौद्ध मठ में उन्होंने 13 से 29 वर्ष की उम्र में शिक्षा ग्रहण की थी उसी मठ में पुन: लौटकर अपना संपूर्ण जीवन वहीं बिताया। आओ जानते हैं कि कश्मीर में वे कहां कहां रुके थे। लद्दाख में भी वे कुछ जगहों पर रुके थे ऐसा भी दावा किया जाता है।
 
 
1. युसमर्ग : लगभग 7,500 फीट की ऊंचाई पर पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला के केंद्र में स्थित युसमर्ग बहुत ही खूबसूरत जगह है। इसे यीशु का मेदो भी कहते हैं। एक मान्यता के अनुसार यह वह स्थान है जहां यीशु (ईसा मसीह) एक बार रहे थे। 
 
2. पहलगाम : प्राकृतिक सौंदर्य से भूरपूर हरे-भरे खेतों से लबालब पहलगाम में लिद्दर झील में रिवर राफ्टिंग, गोल्फिंग और पारंपरिक कश्मीरी वस्तुओं की खरीददारी कर सकते हैं। कहते हैं कि यहां पर भी ईसा मसीह एक बार आए थे।
 
3. श्रीनगर : कश्मीर के श्रीनगर शहर के एक पुराने इलाके खानयार की एक तंग गली में 'रौजाबल' नामक पत्थर की एक इमारत में एक कब्र बनी है जहां एक मान्यता के अनुसार ईसा मसीह का शव रखा हुआ है। कई लोग यहां इस कब्र को देखने आते हैं। आधिकारिक तौर पर यह मजार एक मध्यकालीन मुस्लिम उपदेशक यूजा आसफ का मकबरा है, लेकिन बड़ी संख्या में लोग यह मानते हैं कि यह नजारेथ के यीशु यानी ईसा मसीह का मकबरा या मजार है, क्योंकि इसकी दिशा भिन्न है। मुस्लिमों की कब्र इस तरह से नहीं बनती है।

अहमदिया आंदोलन के संस्थापक मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ने 1899 में दावा किया था कि यह कब्र अपेक्षाकृत अज्ञात है, यह वास्तव में यीशु की कब्र है।
 
ओशो रजनीश ने अपने एक प्रवचन में कई तथ्‍यों के आधार पर कहा कि जीसस और मोजेज (मूसा) दोनों की मृत्यु भारत में ही हुई थी। पंटियास जिसने ईसा को सूली पर चढ़ाने के आदेश दिए थे वह यहूदी नहीं था वह रोम का गवर्नर था और उसके मन में ईसा के प्रति हमदर्दी थी। उसने सूली ऐसे मौके पर दी कि सांझ के पहले, सूरज ढलने के पहले जीसस को सूली से उतार लेना पड़ा। बेहोश हालत में वे उतार लिए गए। वे मरे नहीं थे। फिर उन्हें एक गुफा में रख दिया गया और गुफा उनके एक बहुत महत्वपूर्ण शिष्य के जिम्मे सौंप दी गई। मलहम-पट्टियां की गईं, इलाज किया गया और जीसस सुबह होने के पहले वहां से निकल लिए और फिर रविवार की सुबह मरियम मग्दलिनी ने उन्हें एक ऐसी कब्र के पास देखा जिसके बारे में कहा गया कि यह ईसा की कब्र है। बाद में ईसा मसीह श्रीनगर पहुंच गए। वहां वे कई वर्षों तक रहे और वहीं रौजाबल में उनकी कब्र है। कहते हैं कि वे 100 वर्ष से ज्यादा जिए थे।
 
4. बौद्ध विहार : लोगों का यह भी मानना है कि सन् 80 ई. में हुए प्रसिद्ध बौद्ध सम्मेलन में ईसा मसीह ने भाग लिया था। श्रीनगर के उत्तर में पहाड़ों पर एक बौद्ध विहार का खंडहर हैं जहां यह सम्मेलन हुआ था। एक रूसी अन्वेषक निकोलस नोतोविच ने भारत में कुछ वर्ष रहकर प्राचीन हेमिस बौद्ध आश्रम में रखी पुस्तक 'द लाइफ ऑफ संत ईसा' पर आधारित फ्रेंच भाषा में 'द अननोन लाइफ ऑफ जीजस क्राइस्ट' नामक पुस्तक लिखी है। इसमें ईसा मसीह के भारत भ्रमण के बारे में बहुत कुछ लिखा हुआ है। 
 
ईसा के भारत में रहने का प्रथम वर्णन 1894 में रूसी निकोलस लातोविच ने किया है। वे 40 वर्षों तक भारत और तिब्बत में भटकते रहे। इस दौरान उन्होंने पाली भाषा सीखी और अपने शोध के आधार पर एक किताब लिखी जिसका नाम है, 'दी अननोन लाइफ ऑ जीसस क्राइस्ट' जिसमें उन्होंने ये प्रमाणित किया कि हजरत ईसा ने अपने गुमनाम दिन लद्दाख और कश्मीर में बिताए थे।...उपरोक्त किए गए दावे का हम समर्थन नहीं करते हैं क्योंकि यह शोध का विषय है। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Laxmi Chalisa : मार्गशीर्ष माह में पढ़ें लक्ष्मी माता का यह पावन चालीसा