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संत प्रेत्रुस

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अपने जीवन काल ही में प्रभु येसु ख्रीस्त ने संत पेत्रुस को वचन दिया था कि मैं तुझे ही अपने धर्मसमाज का आधार बनाऊँगा और तू ही इस धर्म साम्राज्य का प्रथम और सर्वोच्च अधिकारी होगा॥ (मत्ती 18:18) अतः पुनरुत्थान के पश्चात प्रभु येसु ने संत पेत्रुस को ही अपने भक्तों का मुखिया नियुक्त किया, जैसा कि संत योहन के सुसमाचार से ज्ञात होता है (योहन 21-15-17)।

सर्वप्रथम पेन्तेकोस्त उत्सव के दिन संत पेत्रुस ने ही बड़े साहस के साथ ख्रीस्त धर्म का प्रचार किया था। इसके बाद येसु की आज्ञानुसार यहूदिया तथा समारिया प्रान्त में भी उसने प्रचार करना आरम्भ कर दिया और अल्प काल में ही बहुत से यहूदियों को ख्रीस्तीय समाज में सम्मिलित कर लिया।

इससे अप्रसन्न हो यहूदी पंडितों ने उसे सताना आरम्भ किया और एक दिन उसे यह कठोर आदेश दिया कि ख्रीस्त धर्म का प्रचार बिल्कुल बन्द कर दो। जब यहूदियों के अत्याचार अपनी चरम सीमा पर पहुँच गए तो पेत्रुस पहिले यहूदिया से अंतिओख और फिर वहाँ से रोम नगर की ओर प्रस्थान कर गया।

उन दिनों रोम, महान रोमन साम्राज्य की राजधानी थी। अतः वहाँ से प्रचार करते हुए पेत्रुस ने अपने लिए इसी स्थान को अधिक पसन्द किया, क्योंकि यहाँ से वह सम्पूर्ण संसार के ख्रीस्त भक्तों पर सरलतापूर्वक शासन कर सकता था।

सम्राट नेरो के क्रूर एवं अत्याचारी शासनकाल में ख्रीस्त भक्तों पर घोर अत्याचार हुआ और संत पेत्रुस भी उनका सर्वोच्च अधिकारी होने के नाते पकड़ लिया गया और सन्‌ 69 में उसे क्रूर का दंड दिया गया।

वेटिकन नामक पहाड़ की तराई में संत पेत्रुस की मृत्यु हुई और इसी स्थान पर उसकी समाधि भी बनाई गई। वहाँ आजकल उसके स्मरणार्थ एक बड़ा गिरजा मौजूद है और उसके निकट ही वर्तमान संत पापा के प्रासाद बने हैं जो संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी और सब काथलिकों के महान गुरु हैं।

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