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सृष्टि

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जब एक बढ़ई मेज बनाने की इच्छा करता है तो उसे पूर्व विद्यमान वस्तुओं जैसे लकड़ी, कीलें, आरी, हथौड़ी आदि की आवश्यकता पड़ती है, तब ही वह मेज बना सकता है। वह मेज बनाता है... सृष्टि नहीं करता, क्योंकि केवल ईश्वर ही सृष्टि कर सकता है। अर्थात्‌ बिना कुछ के, किसी भी वस्तु को बनाना और ईश्वर ने ऐसा ही किया।

ईश्वर ने ऐसा क्यों किया? ईश्वर ने स्वेच्छा से संसार और जो कुछ इसमें है, की रचना की, कि हम उसकी अच्छाई और दयालुता के भागीदार बन सकें। हम बाइबिल की प्रथम पुस्तक से जानते हैं कि ईश्वर ने संसार और जो कुछ भी इसमें है, सबकी छह कालखंडों में रचना की, जिन्हें दिन भी कहते हैं।

पहले दिन ईश्वर ने प्रकाश बनाया।
दूसरे दिन उसने आकाश की रचना की और उसे स्वर्ग कहा।
तीसरे दिन ईश्वर ने पानी को जमीन से अलग किया और आज्ञा दी कि पृथ्वी घास, फूल, पौधे आदि उत्पन्न करें।
चौथे दिन ईश्वर ने सूर्य, चंद्रमा और तारों को बनाया।
पाँचवें दिन उसने पक्षियों और मछलियों की सृष्टि की।
छठवें दिन उसने दूसरे जानवरों को बनाया और अंत में मनुष्य की रचना की।
सातवें दिन ईश्वर ने विश्राम किया।

सृष्टि के विभिन्न भाग हैं-
खनिज जगत- जैसे पत्थर, आदि। इनका केवल अस्तित्व है, जीवन, विकास और चेतना नहीं होती।
वनस्पति जगत- खनिज पदार्थ के समान अस्तित्व होता है, साथ ही जीवन और विकास।
प्राणी जगत- खनिज पदार्थ के समान अस्तित्व होता है, वनस्पति के सदृश जीवन और विकास, इसके अतिरिक्त संवेदना होती है।
मानव जगत- खनिज पदार्थ के समान इनका भी अस्तित्व होता है। वनस्पति जगत के समान इनमें जीवन होता है, प्राणी जगत के जैसे संवेदना होती है। इनके अतिरिक्त बुद्धि और स्वतंत्र इच्छा होती है।
दूतों का राज्य- सृष्टि का श्रेष्ठतम स्वरूप, खाली आत्मा, भौतिक शरीर नहीं, बीमारी, उम्र और मृत्यु से पीड़ित नहीं। श्रेष्ठतम बुद्धि और स्वतंत्र इच्छा से पुरस्कृत। वे अब और अनन्त काल तक ईश्वर की उपस्थिति में आनंद मनाते हैं।

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