हर साल क्रिसमस का पर्व 25 दिसंबर मनाया जाता है जिसके लिए तैयारी भी जोर-शोर से की जाती है। होली (शूलपर्णी), मिसलटो (वांदा), लबलब (आइव) यह कुछ सदाबहार चीजें और हैं, जिन्हें हमेशा ही पवित्र माना जाता है। इन सभी का अपना एक अलग अर्थ है।
होली माला - परंपरागत रूप से होली माला घरों तथा गिरजाघरों में लटकाई जाती है। इसे सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। भारत में इन होली मालाओं में मोमबतियां लगाई जाती हैं।
मिसलटो - आम तौर पर यह बेर के आकार की सफेद रचनाएं होती हैं जो सेबफल के वृक्षों की शाखाओं पर पाई जाती हैं। इसका सर्वाधिक प्रचलित और लोकप्रिय अर्थ यह है कि इसके नीचे खड़ा रहने वाला किसी का भी चुंबन ले सकता है।
परंपरागत रूप से यह माना जाता है कि मिसलटो के नीचे मिलने वाले दो मित्रों पर भाग्य हमेशा मुस्कुराता रहता है और यदि दो दुश्मन इसके नीचे मिल जाएं तो दुश्मनी दोस्ती में बदल जाती है यानि कि यह मित्रता और प्रेम का प्रतीक है।
आइव - यह मित्रता का प्रतीक है। ऐसा प्रेम जो स्थायी तथा अटूट होता है।
संत निकोलस (सांता क्लॉज) - सांता क्लाज शब्द की उत्पत्ति डच सिंटर क्लाज से हुई है। यह संत निकोलस का लोकप्रिय नाम है। दिलचस्प बात तो यह है कि संत निकोलस की कहानी का येसु के जन्मोत्सव से कोई लेना-देना नहीं है। निकोलस पर्व 6 दिसंबर को मनाया जाता है तथा इस दिन परंपरानुसार बच्चों को फलों तथा मिठाइयों के तोहफे दिए जाते हैं।
ऐसी धारणा है कि संत निकोलस एक ईसाई पादरी थे जो एशिया माइनर में कोई डेढ़ हजार साल पहले रहते थे। वे बहुत उदार तथा दयालु थे तथा हमेशा जरूरतमंदों की सहायता करते रहते थे।
बच्चों से उनके संबंधों के बारे में एक किंवदंती प्रचलित है कि एक बार वे ऐसे मकान में ठहरे थे, जहां तीन बच्चों की हत्याएं कर उनके शवों को अचार की बरनियों में छिपा दिया गया था।
संत निकोलस ने चमत्कार द्वारा उन बच्चों को जीवित कर दिया। तभी से उन्हें बच्चों का संत कहा जाने लगा। एक अन्य किंवदंती के अनुसार संत निकोलस क्रिसमस की रात को गलियों में घूमकर गरीब व जरूरतमंद बच्चों को चॉकलेट-मिठाई आदि वितरित करते थे जिससे वे भी क्रिसमस को हर्षोल्लास से मना सकें। इस तरह क्रिसमस व बच्चों के साथ सांता क्लॉज के रिश्ते जुड़ गए।