क्रिसमस तथा सांता का व्यावसायिक स्वरूप भी उन्नीसवीं सदी के मध्य में ही उभरने लगा था। अमेरिका में 1820 से ही दुकानदार क्रिसमस के विशेष ऑफर्स का विज्ञापन करने लग गए थे। 1840 के दशक के आते-आते अखबारों में क्रिसमस संबंधी विज्ञापनों के अलग खंड होने लगे।
चूंकि इस वक्त तक सांताक्लॉज का क्रिसमस के साथ संबंध जुड़ चुका था और वे लोकप्रिय भी हो रहे थे, सो क्रिसमस संबंधी कई विज्ञापनों में सांता क्लॉज के भी दर्शन होने लगे। 1841 में फिलाडेल्फिया की एक दुकान पर सांता क्लॉज का आदमकद मॉडल खड़ा किया गया, जिसे देखने के लिए हजारों बच्चे टूट पड़े।
देखते ही देखते अन्य दुकानों ने भी ग्राहकों को लुभाने का यह तरीका अपनाया। फिर सांता के मॉडल का स्थान लिया हाड़-मांस के सांता ने, जब दुकान के ही किसी कर्मचारी अथवा किसी अन्य व्यक्ति को सांता की वेशभूषा में दुकान पर बैठाया जाने लगा।
यह परंपरा अमेरिका से योरप होते हुए दुनिया भर में फैल गई और सांता प्रतीक बन गए क्रिसमस की खरीददारी के।
इस पर्व की मूल बात है अपनों-परायों सबमें खुशियां बांटना। जब तक खुशियां बांटने की यह भावना रहेगी, क्रिसमस का तिलस्म भी बरकरार रहेगा।