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ईश्वर की नवीं और दसवीं आज्ञा

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ईश्वर की नवीं और दसवीं आज्ञा

'यदि तुम मुझसे प्यार करते हो, तो मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे।' (योहन 14:15)

नवीं आज्ञा कहती है- ' अपने पड़ोसी की स्त्री की कामना मत कर' (निर्ग. 20:17), जबकि छठवीं आज्ञा विशेष रूप से अनैतिक कर्म करना मना करती है। यह उससे और आगे जाती है.... यह अनैतिक विचारों एवं इच्छाओं को भी मना करती है

येसु ने इसे और भी स्पष्ट कर दिया जब उसने सिखाया, 'मैं तुमसे कहता हूँ कि जो कोई बुरी इच्छा से स्त्री पर दृष्टि डाले, वह अपने मन में उसके साथ व्यभिचार कर चुका।' (मत्ती 5: 28)

और एक दूसरे अवसर पर उसने सिखाया, 'तुम सब मेरी बात सुनो और समझो। मनुष्य के बाहर ऐसी कोई वस्तु नहीं जो उसमें प्रवेश करके उसे अशुद्ध कर सके, लेकिन मनुष्य के भीतर से निकलने वाली बातें, मनुष्य को अशुद्ध करती हैं। जिसे सुनने के कान हो, सुन ले।' मनुष्य में जो कुछ बाहर से प्रवेश करता है वह उसे अशुद्ध नहीं कर सकता, क्योंकि वह उसके मन में नहीं उसके पेट में जाता है और शौच द्वारा बाहर निकल जाता है। ( इस प्रकार उन्होंने सब खाद्य पदार्थ को शुद्ध ठहराया।)

ईसा ने फिर कहा, 'जो मनुष्य में से निकलता है, वही उसे अशुद्ध करता है, क्योंकि बुरे विचार भीतर से, अर्थात मनुष्य के मन से निकलते हैं। व्यभिचार, चोरी, हत्या, परगमन, लोभ, विद्वेष, छल, कपट, लम्पटता, ईर्षा, झूठी निन्दा, अहंकार और मूर्खता- ये सब बुराइयाँ भीतर से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध कर देती हैं।' ( मार. 7:14-16,20-23)

हमेशा याद रखो कि एक हजार प्रलोभनों से भी कोई पाप नहीं होता। अशुद्ध विचार और इच्छाएँ सिर्फ उस समय पाप हैं यदि हम जान-बूझकर उनसे आनन्द लेते हैं। नहीं तो, उनके विषय में यही सोचो कि वे प्रलोभन हैं।

एक पवित्र जीवन व्यतीत करने के लिए, हमें ईश्वर से सहायता माँगनी चाहिए और व्यक्तिगत त्याग कर स्वयं को वश में रखना चाहिए।

ईश्वर की दसवीं आज्ञा

'यदि तुम मुझसे प्यार करते हो, तो मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे।' (योहन 14:15)

यह आज्ञा कहती है- 'अपने पड़ोसी के धन पर लालच मत कर।' (निर्गमन 20:18) यह आज्ञा हमें दूसरों की धन, संपत्ति का आदर करने का आदेश देती है।

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