लंदन। कोरोनावायरस (Coronavirus) कोविड-19 से बचाव के लिए विकसित ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका टीके का संबंध खून में प्लेटलेट की कमी होने से हो सकता है लेकिन यह खतरा बेहद कम है। इसका खुलासा हाल में पूरे ब्रिटेन में किए गए एक अध्ययन में हुआ। भारत में इस टीके को कोविशील्ड के नाम से जाना जाता है।
अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि इस बढ़े हुए खतरे को आइडियोपैथिक थ्रोम्बोसाइटोपिनक प्यूप्यूरा (आईटीपी) के नाम से जानते हैं और आकलन है कि यह स्थिति प्रति 10 लाख खुराक में 11 मामलों में हो सकती है जो फ्लू, खसरा, मम्प रुबेला टीके लगाने पर आने वाले मामलों के बराबर ही है।
उन्होंने बताया कि प्लेटलेट की संख्या कम होने (रक्त कोशिकाएं जो नसों के क्षतिग्रस्त होने पर खून गिरने से रोकती हैं) से कोई लक्षण सामने नहीं आ सकते हैं या फिर स्राव या कुछ मामलों में खून का थक्का जमने की स्थिति उत्पन्न होने का खतरा बढ़ सकता है।
ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के अनुसंधानकर्ताओं के नेतृत्व में हुए अध्ययन में पाया गया कि आईटीपी होने का खतरा अधिक उम्र के (करीब 69 साल के आसपास) लोगों को है जो कम से कम एक गंभीर बीमारी जैसे दिल की बीमारी, मधुमेह या गुर्दे की बीमारी से ग्रस्त हैं।
हालांकि अनुसंधानकर्ता टीकाकरण कराने वाले लोगों में खून का थक्का जमने के मामलों की संख्या कम होने की वजह से टीके का सीधा संबंध अन्य तरह के खून के थक्के जमने के प्रकारों- जैसे अति दुर्लभ सेरेब्रेल वेनोस साइनस थ्रोम्बोसिस या सीवीएसटी (दिमाग में खून का थक्का जमने की घटना) से स्थापित नहीं कर पाए।
अध्ययन में स्कॉटलैंड में टीका लगवा चुके 54 लाख लोगों के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया जिनमें से 25 लाख लोगों को टीके की पहली खुराक मिली थी। अनुसंधानकर्ताओं ने राष्ट्रव्यापी टीकाकरण के बाद इन लोगों में आईटीपी, खून के थक्के जमने और रक्त स्राव की घटनाओं का विश्लेषण किया। यह अनुसंधान पत्र बुधवार को जर्नल नेचर मेडिसिन में प्रकाशित हुआ।(भाषा)