मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि कोरोना वायरस के संक्रमण से मर जाने वाले व्यक्तियों के शवों के निपटारे के संबंध में बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) की ओर से जारी संशोधित परिपत्र अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति के पार्थिव शरीर को दफनाने पर कोई रोक नहीं लगाता है।
न्यायमूर्ति एए सैयद ने 3 अप्रैल को एक याचिका पर राहत देने से इनकार कर दिया। इस याचिका में बीएमसी द्वारा 30 मार्च को जारी किए गए परिपत्र पर रोक लगाने की मांग की गई है।
मुम्बई के निवासी रियाज अहमद मोहम्मद अयूब खान ने इस परिपत्र को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी और दावा किया था कि उसमें कोरोना वायरस के चलते मर जाने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्तियों के शवों को दफनाने पर रोक लगाई गई है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि प्रथम दृष्टया परिपत्र से ऐसा जान पड़ता है कि कोविड-19 से संक्रमित होकर मरने वाले अल्संख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति के पार्थिव शरीर को दफनाने पर कोई रोक नहीं है, जैसा कि याचिका में कहा गया है।
अदालत ने कहा कि याचिका में ऐसा कोई उदाहरण नहीं दिया गया है कि कोविड-19 संक्रमित होकर मरे किसी अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति को दफनाने की जगह उसका दाह संस्कार किया गया।
न्यायमूर्ति सैयद ने कहा कि ऐसे में अंतरिम राहत देने का कोई मामला नहीं बनता है।
बीएमसी ने 30 मार्च को परिपत्र जारी कर कहा था कि कोविड-19 की वजह से मर जाने वाले व्यक्तियों, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, का दाह संस्कार किया जाएगा और यदि उसे दफनाया जाना हो तो उसे शहर के बाहर ले जाया जाए।
इस परिपत्र को लोगों के विरोध के बाद कुछ घंटों के अंदर ही वापस ले लिया गया और संशोधित परिपत्र जारी किया।
संशोधित परिपत्र में ऐसे शवों को दफनाने की अनुमति दी गई बशर्ते कब्रगाह में पर्याप्त जगह हो ताकि इलाके के बाशिंदों में संक्रमण का खतरा न हो।
खान ने यह दावा करते हुए संशेाधित परिपत्र को चुनौती दी कि नगर निकाय कोरोना वायरस से मर जाने वाले व्यक्तियों को दफनाने की इजाजत नहीं दे रहा है। (भाषा)