उमाशंकर मिश्र,
नई दिल्ली, कोविड-19 परीक्षण करने में हिमालय जैव-संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) हिमाचल प्रदेश की मदद कर रहा है।
राज्य के टांडा, चंबा और हमीरपुर मेडिकल कॉलेजों को परीक्षण के लिए आवश्यक उपकरण और लॉजिस्टिक सहायता प्रदान करने में आईएचबीटी सहयोग कर रहा है। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने ये बातें कही हैं। वह आईएचबीटी के 38वें स्थापना दिवस पर एक ऑनलाइन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
मुख्यमंत्री ने कहा है कि संस्थान ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशा-निर्देशों के अनुसार अल्कोहल आधारित हैंड सैनिटाइजर एवं हर्बल साबुन की तकनीक विकसित की है। आईएचबीटी की पहल पर स्थानीय उद्यमियों के माध्यम से व्यापक स्तर पर इन उत्पादों का उत्पादन करके लोगों तक उपलब्ध कराया जा रहा है, जो इस महामारी के दौर में एक सराहनीय कार्य है।
इस अवसर पर जयराम ठाकुर ने आईएचबीटी में प्रोटीन प्रसंस्कण केंद्र का उद्घाटन वर्चुअल रूप से किया है। इसके साथ ही, एक टिश्यू कल्चर प्रयोगशाला एवं अत्याधुनिक बांस पौधशाला का शिलान्यास भी किया गया है। इस मौके पर ‘हींग फोल्डर’, ‘सीएसआईआर-आईएचबीटी की बांस संपदा’ तथा ‘सीएसआईआर-आईएचबीटी के चाय जर्म-प्लाजम’ पुस्तिका का विमोचन भी किया गया है।
जयराम ठाकुर ने कहा है कि आईएचबीटी द्वारा शुरू की गई हींग और केसर की खेती से विकास के नये द्वार खुल सकते हैं। उन्होंने बताया कि हिमालय के बांस संसाधनों के उपयोग से लकड़ी के बोर्ड, फाइबर यार्न, लकड़ी का कोयला और अन्य औद्योगिक उत्पादों के निर्माण के लिए तकनीकें विकसित की जा रही हैं, जिससे रोजगार के नये अवसर उभर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि महामारी के कारण वापस आए लोगों की आजीविका सुनिश्चित करने में संस्थान द्वारा विकसित ऐसी प्रौद्योगिकियां सहायक हो सकती हैं।
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की पालमपुर स्थित घटक प्रयोगशाला आईएचबीटी के निदेशक डॉ संजय कुमार ने बताया कि संस्थान द्वारा सुगंधित फसलों की खेती; विशेषकर जंगली गेंदे के उत्पादन एवं प्रसंस्करण को प्रोत्साहित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण कार्यक्रमों के जरिये किसानों, युवाओं एवं उद्यमियों में क्षमता निर्माण संस्थान के कार्यों का एक महत्वपूर्ण आयाम रहा है।
आईएचबीटी विटामिन-डी से समृद्ध शिटाके मशरूम और प्राकृतिक रंगों एवं रंजक विकसित करने की दिशा में भी कार्य कर रहा है। शहद उत्पादन को लोकप्रिय बनाने के लिए संस्थान द्वारा विकसित फ्लो-हाइव को ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण बताया जा रहा है। फलों एवं सब्जियों की फसलोपरांत हानि एक गंभीर राष्ट्रीय समस्या है। संस्थान ने रेडी-टू-ईट क्रिस्पी फ्रूट और सब्जियों को अधिक समय तक ताजा रखने तथा पोषकता बनाए रखने की तकनीक विकसित की है।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग की पहल भारतीय जैवसंपदा सूचना नेटवर्क के तहत आईएचबीटी को पश्चिमी हिमालय के पुष्प संसाधनों के लिए ‘जैवसंपदा सूचना केंद्र’ के रूप में मान्यता दी गई है। संस्थान को हिमालयी क्षेत्र में संकटग्रस्त प्रजातियों को संरक्षित करने के लिए एक परियोजना के समन्वय की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है। आईएचबीटी ‘भारतीय हिमालयन सेंट्रल यूनिवर्सिटीज कंसोर्टियम’ का सदस्य भी बना है।
डॉ कुमार ने बताया कि आईएचबीटी ने कुपोषण से निपटने के लिए एनर्जी बार, प्रोटीन मिक्स, आयरन से भरपूर कैंडी इत्यादि खाद्य उत्पादों की एक श्रृंखला विकसित की है। उन्होंने बताया कि अपशिष्ट प्रबंधन की दिशा में कार्य करते हुए संस्थान ने मंदिर के अपशिष्ट फूलों से अगरबत्ती बनाने की पहल की है, जिससे नदियों में फूलों के बहाए जाने से होने वाले प्रदूषण से बचा जा सकता है। (इंडिया साइंस वायर)