लखनऊ। सांस्कृतिक गतिविधियों और गीत-संगीत की महफिलों के लिए मशहूर लखनऊ शहर में संगीत नाटक अकादमी, भारतेन्दु नाट्य अकादमी, राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह और भातखंडे संस्थान जैसी जगहें सूनी पड़ी हैं। नुक्कड़ चौराहे सूने हैं, जहां कभीं संगीत और नाटक पर घंटों बहस हुआ करती थी। लॉकडाउन की पाबंदियां भले ही कम हो गई हों लेकिन रंगमंच कलाकारों का कहना है कि उन्हें अभी भी खाने के लाले पड़े हुए हैं और निकट भविष्य में भी उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आ रही है।
संगीत अकादमी चलाने वाले बांसुरी वादक चिरंजीव मिश्रा ने कहा, कोरोना संक्रमण के खिलाफ लड़ाई लंबी चलनी है और इधर जैसे सब कुछ थम गया है। सीखने वालों का आना बंद है और मंच, नुक्कड़ तथा सिनेमा जैसी गतिविधियों के लिए अभी किसी के पास वक्त नहीं है।
रंगकर्मी रिषी श्रीवास्तव ने कहा कि आज कलाकारों के पास काम नहीं है। बड़े कलाकार जमा पूंजी पर गुजारा कर ले रहे हैं, लेकिन परदे के पीछे के कलाकारों का हाल बदहाल है। वे कहते हैं कि लोक कलाकारों के परिवारों पर इसका असर नजर आने लगा है। त्यौहार, शादियां, धार्मिक उत्सव, मेले आदि इन कलाकारों की रोजी-रोटी का साधन होते थे लेकिन अब घरों का चूल्हा जलना मुश्किल हो गया है।
अवधी लोकगीतों से समां बांध देने वाली ज्योति बाला की तकलीफ कुछ और है। उनका कहना है कि लोक कलाकारों को लेकर कोई ठोस नीति नहीं होना हम कलाकारों के संकट की सबसे बड़ी वजह है। समाज के निचले तबके के प्रतिभाशाली कलाकारों को मंच प्रदान करने वाली ज्योति कहती हैं कि किसी तरह की सांस्कृतिक गतिविधियां न होने के कारण इन कलाकारों के लिए पेट पालने का संकट खड़ा हो गया है।
गरीब बच्चों, झुग्गी बस्तियों और समाज के कमजोर तबके के लोगों को रंगमंच से जोड़ने वाले प्रवीण सिंह कहते हैं कि नौटंकी के कलाकार बहुत बुरी स्थिति से गुजर रहे हैं। गीत-संगीत की तमाम गतिविधियों की इस खामोशी से वाद्य यंत्रों के कारोबारी भी परेशान हैं। पुराने लखनऊ की अधिकांश दुकानें बंद हैं।
मोहम्मद रियाज का कहना है कि कुछ इलाके हॉटस्पाट में आ गए हैं। कारीगर आ नहीं रहे हैं। नए वाद्य यंत्र बना नहीं पा रहे हैं और जो पहले से स्टोर में रखे हैं, उनके खरीदार भी नहीं मिल रहे हैं।
संगीत, थिएटर, खेल और नृत्य क्षेत्र में शहर का जाना माना नाम डॉ. सुधा वाजपेई कहती हैं, हम अपनी ओर से तो कुछ ना कुछ मदद कर रहे हैं और संगीत-थिएटर से जुडे संपन्न साथियों से मदद करा भी रहे हैं लेकिन इतना नाकाफी है। अभी जीवन में रफ्तार आना मुश्किल है।(भाषा)