नई दिल्ली, भारत में कोरोना की दूसरी लहर की आशंकाओं के बीच इसकी जांच की संख्या बढ़ाने की चुनौती बनी हुई है। ऐसे में एक अच्छी खबर आ रही है। हैदराबाद स्थित कौंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) की घटक प्रयोगशाला सेंटर फॉर सेलुलर एंड मोलकुलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) द्वारा विकसित कोरोना जांच की डायरेक्ट ड्राई स्वाब आरटी-पीसीआर विधि को इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की मंजूरी मिल गयी है।
यह परीक्षण विधि बिना किसी नए या अतिरिक्त संसाधन के जांच की संख्या को दो से तीन गुना बढ़ा देने में सक्षम है।
सीसीएमबी द्वारा विकसित की गयी यह जांच पद्धति, कोरोना के सबसे सटीक और मानक माने जाने वाली आरटी-पीसीआर परीक्षण विधि का सरल रूपांतरण है। ड्राई स्वाब पद्धति पारम्परिक आरटी- पीसीआर जांच के मुक़ाबले कहीं अधिक किफ़ायती और शीघ्रता से परिणाम देने वाली जांच है।
उल्लेखनीय है की सीसीएमबी प्रयोगशाला अप्रैल 2020 से ही सार्स-कोव-2 की जांच में जुटी हुई है। महीनो तक सैम्पल्स जांचने के क्रम में किये गए अनुभवों के आधार पर प्रयोगशाला ने उन कारकों को चिन्हित करने में सफलता पायी जो परिक्षण की गति को सुस्त करने के लिए जिम्मेदार थे। पारम्परिक आरटी- पीसीआर परीक्षण की धीमी गति का सबसे बड़ा कारण है आरएनए को अलग करने की लम्बी प्रक्रिया में लगने वाला समय।
सीसीएमबी के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित डायरेक्ट ड्राई स्वाब आरटी- पीसीआर विधि आरएनए के निष्कर्षण से मुक्त परीक्षण है।
इस जांच विधि में नाक से लिए गए स्वाब सैंपल का संचालन शुष्क अवस्था में ही किया जाता है। इससे परीक्षण की पूरी प्रक्रिया में सैंपल के स्राव की सम्भावना और इन्फेक्शन का खतरा बहुत बड़ी सीमा तक कम हो जाता है।
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि ड्राई स्वाब विधि में आरएनए को अलग करने के चरण की आवश्यकता समाप्त हो जाने के कारण सैंपल का सामान्य प्रसंस्करण सीधे आईसीएमआर द्वारा अनुमोदित आरटी- पीसीआर किट के प्रयोग से कर लिया जाता है। आरएनए को अलग करने की प्रक्रिया से मुक्ति का सबसे बड़ा लाभ यह है कि परीक्षण में लगने वाले समय, जांच की कीमत और प्रशिक्षित कर्मी की आवश्यकता, तीनो में भारी कमी आ जाती है।
ऐसे में ड्राई स्वाब विधि द्वारा उपलब्ध संसाधनों से ही बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के कहीं अधिक सैम्पल्स की जांच की जा सकती है और जांच की संख्या को तत्काल प्रभाव से दोगुने से भी अधिक बढ़ाया जा सकता है।
सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ शेखर सी मांडे का मानना है कि "ड्राई स्वाब आरटी-पीसीआर पद्धति बिना किसी अतिरिक्त खर्च या प्रशिक्षण के देश की कोरोना जांच क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि लाने में मददगार हो सकती है। इसके लिए किसी नए किट की भी आवश्यकता नहीं है"।
उल्लेखनीय है कि सीसीएमबी के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित की गयी इस परीक्षण पद्धति का अनुमोदन सेंटर फॉर डीएनए फ़िंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नॉस्टिक्स (सीडीएफडी), आईआईएसईआर- बरहामपुर, सीएसआईआर-नीरी, जीएमसीएच-नागपुर, जेनपेथ पुणे, आईजीजीएमएसएच और एमएएफएसयू, नागपुर और अपोलो अस्पताल, हैदराबाद जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा भी स्वतंत्र रूप से किया जा चुका है।
सतत मूल्यांकन एवं समीक्षा के बाद 96.9% की समग्र सहमति से डायरेक्ट ड्राई स्वाब आरटी-पीसीआर परीक्षण पद्धति को आईसीएमआर की मंजूरी मिल जाने से अब इसके व्यापक उपयोग का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
सीसीएमबी निदेशक डॉ राकेश मिश्रा कहते हैं- "स्वचालित पद्धति से भी 500 सैम्पल्स के लिए आरएनए निष्कर्षण में लगभग 4 घंटे का समय लगता है। वीटीएम और आरएनए निष्कर्षण दोनों कोरोनोवायरस के लिए बड़े पैमाने पर परीक्षण के लिए आवश्यक धन और समय के मामले में महत्वपूर्ण बोझ डालते हैं।
हमारा मानना है कि इस तकनीक की योग्यता सभी प्रकार की सेटिंग्स के लिए है और इसमें परीक्षण की लागत और समय में 40-50% तक कमी लाने की क्षमता है"। (इंडिया साइंस वायर )