नई दिल्ली। कोरोना वायरस महामारी और इसकी रोकथाम के लिए लागू किए गए लॉकडाउन (Lockdown) का उद्योग-धंधों पर बेहद बुरा असर पड़ा है। कुछ माह पहले तक सफलता की बुलंदिया छू रहे फैशन उद्योग की भी हालत खस्ता है और अब अपने भविष्य को लेकर आशंकित है। उद्योग के जानकारों का कहना है कि कोरोना महामारी ने उन्हें एक दशक पीछे धकेल दिया है।
लॉकडाउन लागू रहने के कारण आमदनी में कमी आई है। फैशन के ट्रेंड का अनुसरण करने वाले ग्राहकों की प्राथमिकता सूची से डिजाइनर गाउन, फैंसी सूट समेत लाखों रुपए की कीमत वाले महंगे परिधान बाहर हो गए हैं।
प्रतिबंध हटने के बाद भी ग्राहकों की पसंद और प्राथमिकताओं के बारे में अनुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन कई डिजाइनरों का मानना है कि अब उनका ध्यान सरल साज-सज्जा और शिल्पकारी पर होगा जो उनके व्यवसाय की रीढ़ है।
प्रसिद्ध फैशन डिजाइनर रितू कुमार ने बताया कि दुनिया भर में फैशन उद्योग कभी भी इतनी बुरी तरह प्रभावित नहीं हुआ है। कई बार अलग-अलग देशों में अलग-अलग समय पर मंदी आई है, लेकिन पूरी दुनिया में एक साथ पूर्ण बंदी अभूतपूर्व है।
उन्होंने कहा कि अभी से भविष्य के बारे में कयास लगाना जल्दबादी होगा, लेकिन वह मानती हैं कि जिस तरह से हम कपड़े और फैशन के बारे में सोचते हैं उसके अनुसार यह महामारी उद्योग को एक या दो दशक पीछे धकेल देगा।
उन्होंने कहा कि इससे समूचे फैशन उद्योग में आर्थिक मंदी आएगी। यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि लॉकडाउन हटाए जाने के बाद क्या होगा। इतने समय से खरीददारी से वंचित रहे ग्राहक तुरंत कपड़े खरीदना भी शुरू कर सकते हैं या फिर आने वाले कुछ समय तक सब में वायरस का डर भी बना रह सकता है। उन्होंने कहा कि लोगों की प्राथमिकता सूची में विलासिता की चीजें अब शायद अंतिम स्थान पर होंगी।
फैशन डिजाइनरों ने कहा कि वे लॉकडाउन के दिनों का उपयोग वर्ष 2020 की दूसरी छमाही में व्यापार की निरंतरता को योजना बनाने में कर रहे हैं। साथ ही अपने कर्मचारियों और कारीगरों की भलाई का खयाल रखने में कर रहे हैं, जिनका काम उत्पादन और निर्यात बंद होने से ठप हो गया है।
फैशन उद्योग को लेकर अलग से कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ के अनुमान के अनुसार वस्त्र और कपड़ा उद्योग में 105 मिलियन से ज्यादा लोग कार्यरत हैं और यह करीब 40 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा अर्जित करता है। (भाषा)