मुंबई। कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में अग्रिम मार्चे पर डटे स्वास्थ्यकर्मी मरीजों को संभालने का चुनौतीपूर्ण काम तो कर ही रहे हैं, वहीं दूसरी ओर वे एक और लड़ाई लड़ रहे हैं, जो है अपनी चिंताओं और भावनात्मक तनाव को दूर रखने की कोशिश।
मुंबई के एक अग्रणी अस्पताल के एक चिकित्सक ने बताया कि यह वक्त चिकित्सा क्षेत्र के पेशेवरों समेत सभी के लिए चुनौतीपूर्ण है। उक्त चिकित्सक अपने एक सहयोगी के संपर्क में आने के बाद से घर में पृथक हैं जिसमें कोरोना वायरस संक्रमण के लक्षण दिखे थे। उनका सहयोगी संक्रमणरहित पाया गया है लेकिन वे कोई शंका नहीं बनी रहने देना चाहते।
उक्त चिकित्सक ने बताया कि मैंने बीते 1 महीने से अपने 6 माह के बेटे को छुआ तक नहीं है। मैं अपने घर के एक कमरे में अलग-थलग हूं। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में अग्रिम मार्चे पर डटे कई लोग थक चुके हैं और उनका सब्र का बांध टूट रहा है।
डॉक्टर ने बताया कि शुरुआत में हमें लगा था कि हम इस संकट से पार पा लेंगे लेकिन अब अप्रैल भी खत्म होने को आया है और कोरोना वायरस के मामले कम होने के कोई आसार नहीं हैं। मेरे सहयोगियों ने बीते 1 महीने से अपने परिजन से मुलाकात नहीं की है। जूनियर डॉक्टर, नर्सें और अर्द्ध चिकित्साकर्मियों ने इस समय को चुनौती की तरह लिया है।
उन्होंने यह भी बताया कि निजी सुरक्षा उपकरण और मास्क आदि लंबे समय तक पहनना भी कोई आसान काम नहीं है, इनमें घुटन होती है और यह भी सुरक्षा की गारंटी नहीं है।
एक अस्पताल में वार्ड प्रभारी एक नर्स ने बताया कि जब उन्हें पहली बार पता चला कि उन्हें कोविड-19 के मरीजों की देखरेख करना है तो उन्हें शुरुआत में चिंता हुई। उन्होंने कहा कि कई बार चिंता होती है, यह लगता है कि कहीं मैं अपने परिवार और टीम के लोगों को खतरे में तो नहीं डाल रही। नर्स ने बताया कि मैंने अपने 15 वर्षीय बेटे को उसके नाना-नानी के पास भेज दिया है और हम पति-पत्नी ने दूरी कायम कर रखी है।
लेकिन इस महीने की शुरुआत में उक्त नर्स को भी घर में पृथक कर दिया गया, क्योंकि वह एक संक्रमित वार्डब्वॉय के संपर्क में आई थीं तथा वह संक्रमित नहीं पाई गई है। (भाषा)