नॉर्विच (ब्रिटेन)। चीन फिलहाल कोविड संक्रमण और इससे होने वाली मौतों की गंभीर लहर का सामना कर रहा है। इसके बारे में समय-समय पर आधिकारिक जानकारी नहीं मिलने के कारण हम यह नहीं जानते कि यह लहर कितनी गंभीर है। लेकिन सभी संकेतों को देखते हुए ऐसा लगता है कि स्थिति भयावह है। खबरों से पता चलता है कि अस्पताल और शवगृह भरे हुए हैं।
चीन में यह नौबत कैसे आई और इससे कैसे निकला जा सकता है? : कहा जा रहा है कि चीन में 'जीरो कोविड पॉलिसी' के तहत लगी पाबंदियां दिसंबर की शुरुआत में हटाए जाने के कारण ही संक्रमण की यह मौजूदा लहर आई है, लेकिन यह पूरी तरह से सही नहीं है। पाबंदियों में ढील दिए जाने से पहले ही चीन में मामले बढ़ रहे थे।
मुझे लगता है कि टीकाकरण होने के बाद लंबे समय तक 'जीरो कोविड रणनीति' जारी रखना मामलों में बेतहाशा वृद्धि होने का कारण था। हम जानते हैं कि टीकाकरण से मिली प्रतिरक्षा कुछ महीने बाद खत्म हो जाती है। एक अप्रकाशित अध्ययन में पता चला है कि पहली बूस्टर खुराक लेने के 8 महीने बाद संक्रमण से मिली हर तरह की सुरक्षा खत्म हो जाती है। गंभीर बीमारियों से मिली सुरक्षा लंबी चलती है, लेकिन उसका भी अंत हो जाता है।
चीन में फरवरी 2022 में टीकाकरण लगभग पूरा हो चुका था। लिहाजा शरद ऋतु के बाद संक्रमण से मिली सुरक्षा मोटे तौर पर खत्म होने लगी होगी। वैसे तो गंभीर बीमारियों से मिली सुरक्षा लंबी चलती है, लेकिन फिर भी यह खत्म हो ही जाती है। इसके विपरीत न्यूजीलैंड ने टीकाकरण अभियान पूरा होने के बाद कोविड नियंत्रण नीति खत्म कर दी। जैसी आशंका थी, पाबंदियां हटाए जाने से मामलों में तेज वृद्धि होने लगी लेकिन मृत्यु दर कई देशों से काफी कम रही।
कोविड से बचाव का सबसे सुरक्षित उपाय भले ही टीकाकरण हो, लेकिन अध्ययन बताते हैं कि प्राकृतिक संक्रमण के बाद मिली सुरक्षा ज्यादा समय तक कायम रहती है। ये उन लोगों में ज्यादा समय तक बनी रहती है, जो 'हाईब्रिड प्रतिरक्षा' वाले होते हैं। 'हाईब्रिड' प्रतिरक्षा वाले लोग वे होते हैं, जो संक्रमित हो चुके हैं और उन्होंने टीकाकरण भी कराया है।
मौजूदा लहर शुरू होने के समय चीन में कुछ लोगों में 'हाईब्रिड प्रतिरक्षा' कुछ हद तक कम हुई होगी लेकिन पूरी तरह खत्म हो गई होगी, ऐसा नहीं लगता। इसके अलावा खबरों से पता चलता है कि चीन में वृद्ध लोगों में टीकाकरण की दर युवाओं की तुलना में कम है। अगर यह सच है, तो इससे संक्रमण के साथ-साथ गंभीर बीमारी और मौतें भी हुई होंगी।
कैसे लगाई जा सकती है प्रकोप पर लगाम? : चीन की मौजूदा लहर आने वाले समय में चरम पर पहुंचेगी और फिर कमजोर होगी। लेकिन यह चरम पर कब पहुंचेगी, और कितनी गंभीर होगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वास्तव में संक्रमण के कितने मामले सामने आ रहे हैं- लेकिन हम आंकड़ों के बारे में सचमुच कुछ नहीं जानते।
स्वास्थ्य के बारे में आंकड़े देने वाली ब्रिटिश संस्था 'एयरफिनिटी' ने अनुमान लगाया है कि 1 दिसंबर से अब तक संक्रमण के 3 करोड़ 32 लाख मामले आए और 1,92,400 मौतें हुई हैं। लेकिन चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग की एक बैठक से लीक हुई जानकारी के अनुसार अनुमान है कि दिसंबर के पहले 20 दिन में करीब 25 करोड़ लोग (जनसंख्या का 18 फीसदी हिस्सा) संक्रमित हुए थे।
अगर वास्तविक संक्रमण दर अनुमान से ज्यादा हैं तो लहर की चरम अवस्था बहुत ज्यादा रहेगी, लेकिन यह ज्यादा समय तक नहीं रहेगी और हम उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले हफ्तों में मामलों में तेजी से गिरावट होगी। अगर संक्रमण दर अनुमान से कम हैं तो लहर की चरम अवस्था ज्यादा रहेगी और कुछ समय के लिए यह और गंभीर हो सकती है।
चीन को अब क्या करना चाहिए? : वास्तव में इस प्रकोप की दिशा के बदलने में बहुत देर हो सकती है। इस प्रकोप के दौरान 'आरओ' 10 से ज्यादा और अधिक से अधिक 18 रहा है। 'आरओ' का अर्थ होता है कि एक संक्रमित व्यक्ति कितने लोगों में वायरस फैला सकता है।
'आरओ' इतना अधिक होने पर लॉकडाउन, स्कूल बंद करना और मास्क पहनना संक्रमण के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त नहीं होता। चीन फिलहाल जो सबसे महत्वपूर्ण काम कर सकता है, वह है अपनी वृद्ध और अधिक संवेदनशील आबादी के बीच टीके के उपयोग को बढ़ावा देना।
बाकी दुनिया के लिए क्या खतरा है? : इस लहर की शुरुआत में चीन के विपरीत अधिकांश देश के लोगों को वायरस से उच्च प्रतिरक्षा मिल चुकी थी। यूरोपियन सेंटर फॉर डिजीज प्रिवेंशन एंड कंट्रोल के अनुसार चीन में कोविड मामलों में होने वाली वृद्धि से यूरोप में कोविड की स्थिति पर फर्क पड़ने की आशंका नहीं है। इसके अलावा चीन में सामने आए अधिकांश स्वरूप बीए.5.2 और बीएफ.7 के उपस्वरूप हैं।
ये उपस्वरूप पिछली गर्मियों में यूरोप में चरम पर थे और इनमें गिरावट जारी है। इसलिए यूरोप में चीन के जरिए बड़े पैमाने पर संक्रमण फैलने की आशंका नहीं है। इस तरह दूसरे महाद्वीप के देश चीन से प्रभावित होंगे, इसकी आशंका भी कम ही नजर आ रही है।(भाषा)
Edited by: Ravindra Gupta