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साहित्य और सोशल मीडिया: ‘कोरोना’ ने बदला ‘साहित्य' का मंच और उसका नजरिया भी

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नवीन रांगियाल

प‍िछले कुछ महीनों से महामारी ने जीवन, समाज, साहि‍त्‍य दर्शन और व्‍यापार सभी पर असर डाला है। बहुत सी चीजें और व‍िषय पूरी तरह से बदल चुके हैं। व्‍यापारी अपने धंधे और मुनाफे के ल‍िए परेशान है। लेखक अपनी रचना और साह‍ित्‍य के ल‍िए आशंक‍ित है। एक आध्‍यात्‍मिक आदमी की दुन‍िया, उसका नजर‍िया और उसकी आस्‍था भी बहुत हद तक प्रभाव‍ित हुई है। ये सारा असर सोशल मीडिया पर साफ नजर आ रहा है। खैर, फ‍िलहाल बात हो रही है साह‍ित्‍य और सोशल मीड‍िया की।

कोरोना महामारी के संकट ने दूसरी चीजों की तरह ही साहि‍त्‍य को भी प्रभाव‍ित क‍िया है। कई प्रकाशन बंद पड़े हैं। कई क‍िताबें छपने की प्रतीक्षा में हैं। कई साह‍ित्‍यि‍क मंच सूने हो गए हैं। लाइब्रेरी धूल खा रही हैं। इसके साथ ही इस वक्‍त ने साह‍ित्‍यकारों के सोचने का तरीका और नजर‍ियां भी बदल द‍िया है। अब महामारी पर कव‍िताएं और कहान‍ियां ल‍िखी जा रही हैं। अपनी न‍िजी डायरी को ‘कोरोना डायरी’ या ‘लॉकडाउन डायरी’ कहा जा रहा है।
कहा जा सकता है क‍ि अब बहुत सी साह‍ित्‍य रचनाओं में कोरोना ही उसका केंद्र या उसका बिंब होगा।

खैर, यह अलग बात है लेक‍िन साह‍ित्‍य की अभि‍व्‍यक्‍ति‍ शायद कभी रुकती नहीं है। ज‍िस तरह से एक व्‍यापारी की क‍िराना की शॉप फि‍लहाल बंद है वैसे साह‍ित्‍य की अभि‍व्‍यक्‍त‍ि बंद नहीं हुई है। ऐसे में सोशल मीड‍िया की भूम‍िका बेहद अहम हो जाती है। सोशल मीड‍िया चाहे वो फेसबुक हो या ट्व‍िटर। साह‍ित्‍य के ल‍िए एक बड़े मंच के तौर पर उभरकर सामने आया है।

आलेख और कवि‍ता या कहानी के अंश पहले भी फेसबुक पर पोस्‍ट क‍िए जाते रहे हैं। लेक‍िन अब ज‍िस तरह से अब इसे एक अवसर के तौर पर इस्‍तेमाल क‍िया जा रहा है यह बेहद ही अच्‍छी बात है। कोरोना टाइम में फेसबुक के माध्‍यम से साह‍ित्‍य का संप्रेषण बेतहाशा तौर पर बढ़ा है। जो लोग पहले शेयर नहीं करते थे अब वे भी अपनी कव‍िता और कहानी को शेयर कर रहे हैं।

साह‍ित्‍य व‍ि‍मर्श के ल‍िए ज्‍यादातर लेखक और कव‍ि अब फेसबुक पर लाइव आ रहे हैं। ज‍िसे बहुत लोग देख रहे हैं और चर्चा कर रहे हैं। गद्य से लेकर पद्य तक की अभिव्‍यक्‍त‍ि हो रही है। यहां सबसे अहम है क‍ि क‍िसी मंच की जरुरत नहीं। क‍िसी क‍िताब की जरुरत नहीं। खासतौर से नए और अप्रकाशि‍त लेखकों के ल‍िए सोशल मीड‍िया वरदान ही साबि‍त हो रहा है। इसमें हाथों हाथ अच्‍छी और बुरी प्रत‍िक्रि‍याएं सामने आ जाती हैं।

एक और अच्‍छी बात यह भी है क‍ि साह‍ित्‍य की बोझ‍िल और उबाऊ महफि‍लों और गोष्‍ठ‍ियों से लोगों को न‍िजात भी म‍िली है। यहां स्‍वतंत्रता भी म‍िली है क‍ि कौन क‍िसे पढ़े या देखे यह उसकी मर्जी है। इसमें साह‍ित्‍यिक पाठ के दौरान क‍िसी बंद कमरे में फंस जाने का डर नहीं क‍ि कोई एक बार कहानी सुनने बैठ गया तो वह बीच में उठ नहीं सकता। जहां अच्‍छा ल‍िखा जा रहा है वहां यूसर्ज ठहरते हैं और उसे आगे शेयर करते हैं। जहां ठीक नहीं है वहां बगैर प्रति‍क्रि‍या द‍िए ही आगे बढ़ जाने की सुव‍िधा है। कुल म‍िलाकर यह साह‍ित्‍य की तरह ही एक आजाद ख्‍याल बात है।

हालांक‍ि कई पुराने और स्‍थाप‍ित लेखक और कवि सोशल मीड‍िया पर चल रहे साह‍ित्‍य की गंभीरता पर सवाल उठा सकते हैं लेक‍िन बावजूद इसके उसके रचना धर्म पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। क्‍योंक‍ि कई ऐसे नए लेखक हैं ज‍िन्‍होंने इस प्‍लेटफॉर्म का बेहतर उपयोग कर के कुछ हद तक अपनी जगह बनाई है। ऐसे कई नाम हैं ज‍िनके लेखन और कविता को नकारा नहीं जा सकता है।

इस बात को भी बेहतर तरीके से समझ ल‍िया गया है क‍ि ज‍िस सोशल मीड‍िया प्‍लेटफॉर्म को अब तक हलके में ल‍िया जा रहा था इस कोरोना काल में वही सबसे ज्‍यादा कारगर साब‍ित हुआ है। चाहे वो सूचना हो, खबर हो, सोशल गेदर‍िंग हो या साहि‍त्‍य का कोई ह‍ि‍स्‍सा। अब और बेहतर होगा सोशल मीड‍िया का इस्‍तेमाल करने वाला यूजर्स इसका बेजा इस्‍तेमाल।

खासतौर से साह‍ित्‍य ने अपना नया मंच खोज ल‍िया है। वैसे भी संप्रेषण का मतलब ही मेरे ख्‍याल से यह होता है क‍ि दुन‍िया के क‍िसी अज्ञात कोने में बैठकर अपनी जेब से मोबाइल न‍िकालकर आप अपनी बात ल‍िखे और वह दुन‍िया के हर कोने तक पढ़ी जाए।

नोट: इस लेख में व्‍यक्‍त व‍िचार लेखक की न‍िजी अभिव्‍यक्‍त‍ि है। वेबदुन‍िया का इससे कोई संबंध नहीं है।

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