शामली। लॉकडाउन के दौरान ध्वनि, जल और वायु प्रदूषण का स्तर गिरने से आम लोगों के साथ-साथ पक्षियों को भी सुकून मिला है, नतीजन आज के दौर में दुलर्भ पक्षियों में गिनी जाने वाली गौरैया घर-आंगन में फिर से फुदकती दिखाई देने लगी है।
सालों बाद इस तरह चिड़ियों की चहचहाहट लोगों के दिलों को काफी सुकून पहुंचा रही है। लोगों का मानना है कि प्रदूषण का स्तर गिरने के चलते पक्षियों को नया जीवनदान मिला है। हालांकि मोबाइल फोन टॉवर से पैदा रेडिएशन को गौरैया समेत अन्य पक्षियों के लिए सर्वाधिक नुकसानदेह माना गया है।
सुबह के समय चिड़ियों की चहचहाहट से लोग प्रसन्न दिखाई दे रहे हैं और लोग इनके लिए दाना-पानी का इंतजाम करते नजर आ रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पक्षियों की चहचहाहट तो सुनाई दे रही थी, लेकिन शहरी इलाकों में गौरैया समेत अन्य पक्षियों की तादाद में हाल के वर्षों में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही थी। कई लोग तो चिड़ियों को देखने के लिए सुबह के समय अपने घरों की छतों पर पहुंच जाते हैं।
नगर में एक गृहणी गीता ने कहा कि सालों बाद चिड़ियों की चहचहाहट सुनने को मिल रही है, इनकी आवाज सुनकर दिल को काफी सुकून मिल रहा है। प्रदूषण और मोबाइल टॉवरों के रेडिएशन ने चिड़ियों की कई प्रजातियों को पूरी तरह समाप्त कर दिया है। सालों से चिड़िया देखने को नहीं मिल रही थी, लेकिन लॉकडाउन ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
लॉकडाउन के कारण देश में ऐसी सभी फैक्ट्रियां जो प्रदूषण फैलाने का काम करती हैं, पूरी तरह बंद हैं, इससे हमारा वातावरण साफ हुआ है और पक्षियों को भी नया जीवन मिला है। सरकार को चाहिए कि लॉकडाउन के बाद प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों पर कार्रवाई करे ताकि लुप्त हो रहे इन पक्षियों को नया जीवन मिल सके।
कारोबारी सुधीर कुमार ने कहा कि निसंदेह कोरोना वायरस लोगों के जीवन के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के लिए घातक है, लेकिन शायद मौजूदा हालात हमें प्रकृति से अधिक छेड़छाड़ नहीं करने की चेतावनी दे रहे हैं। प्रदूषण को कम करने में सहायक कई पंछी आज हवा में घुलती विषैली गैस और मोबाइल टॉवरों के रेडिएशन से विलुप्ति की कगार पर हैं।
व्यवसायी सुखचैन वालिया ने कहा कि गुरसल के नाम से मशहूर चिड़िया भी अब दिखाई नहीं देती। इनका सबसे बड़ा दुश्मन मनुष्य ही बना हुआ है, उसने अपने आरामदायक जीवन के लिए ऐसी नन्ही जानों को मौत के मुंह में धकेल दिया है। सरकार को पक्षियों की प्रजाति को बचाने के लिए कठोर कदम उठाने होंगे अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब लोग पक्षियों की आवाज सुनने के लिए भी तरस जाएंगे। (वार्ता)