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LockDown : अंतिम समय में प्रियजनों को अलविदा कहने को तरसे लोग, अंत्येष्टि के सामान की भी किल्लत

हमें फॉलो करें LockDown : अंतिम समय में प्रियजनों को अलविदा कहने को तरसे लोग, अंत्येष्टि के सामान की भी किल्लत
, गुरुवार, 2 अप्रैल 2020 (18:46 IST)
नई दिल्ली। कोरोना वायरस के रूप में देश-दुनिया में ऐसी महामारी फैली है कि लोग अंतिम समय में अपने परिजनों को अलविदा तक कहने को तरस गए हैं, अंत्येष्टि तक में शामिल नहीं हो पा रहे हैं और कई जगह अंतिम संस्कार के लिए जरूरी सामान की भी किल्लत शुरू हो गई है।
 
दरअसल, इस महामारी को फैलने से रोकने के लिए सामाजिक मेलजोल से दूर रहने के बारे में कई दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं और लोग इनका पालन करने की भी पूरी कोशिश कर रहे हैं।
 
सामाजिक मेलजोल से दूरी का असर अंत्येष्टि पर भी दिख रहा है जहां दोस्त, रिश्तेदार या यहां तक कि पड़ोसी भी दु:ख की इस घड़ी में पीड़ित परिवार को ढांढस बंधाने के लिए चाहकर भी पास नहीं आ रहे हैं। 
 
लोग अंत्येष्टि कार्यक्रम में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शामिल हो रहे हैं, वहीं गांव-देहात में प्रौद्योगिकी से वंचित लोग खुद को अकेला महसूस कर रहे हैं। 
 
दिल्ली की पत्रकार रीतिका जैन के 85 वर्षीय दादाजी का 24 मार्च से शुरू हुए 21 दिनों के लॉकडाउन के दौरान गुजरात के पलीताना में निधन हो गया, लेकिन वे उनके अंतिम दर्शन नहीं कर पाईं।
 
रीतिका के पिता लॉकडाउन लागू होने से पहले मुंबई से भावनगर के लिए आनन-फानन में अंतिम उड़ान से पहुंचे, लेकिन दूर रह रहे परिवार का कोई सदस्य नहीं पहुंच सका और वे लोग जूम मोबाइल ऐप के जरिए अंत्येष्टि कार्यक्रम में शामिल हुए।

रीतिका ने बताया कि शाम के वक्त पूरा परिवार जूम पर मिला, मेरे दादाजी को अंतिम विदाई दी और एक दूसरे का ढांढस बंधाया। 
 
अभिनेता संजय सूरी को भी इन्हीं परेशानियों का सामना करना पड़ा जब उनकी पत्नी की दादी मां का निधन हो गया।  सूरी ने ट्विटर पर लिखा- जूम के जरिए अंत्येष्टि में शामिल होना बहुत ही अजीब-सा था। अजीब वक्त!’’
 
सरकार ने अंत्येष्टि में शामिल होने वाले लोगों की संख्या सीमित कर 20 या इससे कम निर्धारित कर दी है, वहीं एक शहर से दूसरे शहर  जाने की भी इजाजत नहीं है। 
 
इससे चीजें और जटिल हो गई हैं। इस परिस्थिति में अपनों को खोने के बाद अपनी भावनाओं पर काबू रख 
पाने में लोगों को बहुत ही मुश्किल हो रही है। 
 
चेन्नई के उपनगर में रहने वाले केसवन (77) को अपनी 94 वर्षीय मां के निधन की सूचना शहर के एक दूर-दराज के कोने में स्थित अपने  सहोदर भाई के घर पर मिली। उन्होंने सबसे पहली चिंता यही हुई कि जाएंगे कैसे।  उन्होंने बताया कि वे पास का इंतजार किए बगैर घर के लिए रवाना हो गए।
 
चेन्नई निवासी के. वीरराघवन ने कहा कि कोरोना वायरस का प्रकोप इस कदर है कि जो लोग इससे पीड़ित नहीं हैं उन्हें भी इसका असर  झेलना पड़ रहा है। 
 
वीरराघवन के पिता की हाल ही में मृत्यु हो गई थी, लेकिन अंत्येष्टि में उनके परिवार का कोई सदस्य शामिल नहीं हो सका। हालांकि भारतीय समाज में अंत्येष्टि हमेशा से ही सामाजिक जुड़ाव के लिए एक महत्वपूर्ण समय रहा है। लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ, जब  शवदाह स्थलों या कब्रिस्तानों में लोगों के सीमित संख्या में पहुंचने की इजाजत दी गई हो।
 
पंजाब के लुधियाना शहर के शमशान घाट (मुक्ति धाम) के संरक्षक राकेश कपूर के मुताबिक वहां जनाजे में पहुंचने वाले लोगों की संख्या  100 से घटकर महज 20 रह गई है। 
 
हरियाणा में भी दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन किया जा रहा है।  राज्य के गोरखपुर गांव निवासी सुखबीर सिंह के चाचा की हाल ही में मृत्यु हो गई थी। उन्होंने कहा कि परिवार ने सभी दिशा-निर्देशों का  पालन किया।
 
उन्होंने कहा कि किसी अपने को खोने के बाद दोस्तों, पड़ोसियों और रिश्तेदारों से इस मुश्किल घड़ी में जो ढांढस मिलता है वह पाबंदियों के  चलते इन दिनों नहीं मिल पा रहा है। 
 
ओडिशा में हिन्दू समुदाय के कई लोगों का मानना है कि पुरी के स्वर्गधार में जिनकी अंत्येष्टि की जाती है उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है।

पुरी नगर पालिका के बिजय कुमार दास ने बताया कि सामान्य दिनों में वहां करीब 60 शवों की अंत्येष्टि की जाती है, लेकिन इन दिनों यह  संख्या घटकर 10 से भी कम रह गई है।  चर्च के पादरी भी दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन कर रहे हैं। 
 
भुवनेश्वर स्थित चर्च ऑफ क्राइस्ट के परेश दास ने कहा कि हमारे समुदाय के किसी सदस्य की अंत्येष्टि के दौरान सामान्य दिनों में 100 से अधिक लोग उपस्थित होते थे। हालांकि 21 दिनों के लॉकडाउन के दौरान यह संख्या 20 से भी कम हो गई है। 
 
बांद्रा- खेरवाड़ी शवदाह गृह के मृत्यु पंजीयन कार्यालय के भास्कर गौरव ने बताया कि हर कोई लॉकडाउन के नियमों का पालन नहीं कर रहा है। 

उन्होंने कहा कि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए एक पुलिस कांस्टेबल की हम तैनाती चाहते हैं क्योंकि वे लोग दूसरों की जान भी खतरे में डाल रहे हैं। 
 
मुंबई के सबसे बड़े कब्रिस्तान की देखरेख करने वाले जुमा मस्जिद ट्रस्ट के न्यासी शोएब खातिब ने कहा कि हर माह बड़ा कब्रिस्तान में करीब 120 शव लाए जाते हैं।
 
खातिब ने कहा कि हमने ऐसे तीन स्थानों की पहचान की है जहां सिर्फ कोरोना वायरस से संक्रमित शवों को ही दफनाया जा रहा है। 15 साल तक उस कब्र को कोई नहीं छुएगा।
 
केरल की पालयम जुमा मस्जिद ने भी किसी मृतक की अंत्येष्टि के दौरान उपस्थित होने वाले परिवार के सदस्यों की संख्या में कटौती कर दी है। मस्जिद के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी।

तिरुवनंतपुरम में सरकार संचालित शांति कवदम शवदाह गृह में अंत्येष्टि के दौरान सिर्फ 6 से 8 लोगों के आने की ही इजाजत दी जा रही है। 
 
तेलंगाना में यह संख्या अधिकतम 20 रखी गई है। ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी।

कर्नाटक के चामराजपेट स्थित हरिश्चंद्र घाट में अंत्येष्टि का प्रबंधन करने वाले किरन कुमार ने बताया कि हमें लकड़ियां, घी या डीजल आदि नहीं मिल पा रहा है। नतीजतन, हम लोगों को शवों को विद्युत शवदाहगृह ले जाने को कह रहे हैं। 
 
बिहार की राजधानी पटना में गंगा नदी के तट पर स्थित बांस घाट स्थित कई दुकानें बंद हैं। कोलकाता से ऐसी खबरें हैं कि कई परिवारों को पर्याप्त संख्या में लोग या वाहन शवों को शवदाह गृह या कब्रिस्तान पहुंचाने के लिए नहीं मिल पा रहे हैं।
 
उत्तरप्रदेश के पीलीभीत जिले में पिछले हफ्ते मरने वाले 70 वर्षीय अजीज के परिजनों ने बताया कि वे सामाजिक मेलजोल से दूरी के दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन करते हुए कब्रिस्तान तक शव को एक ठेले पर लेकर गए। (भाषा)

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