नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोविड-19 के खिलाफ जंग में संयुक्त वैश्विक प्रयासों की वकालत करते हुए मंगलवार को कहा कि इस महामारी ने दुनिया में एक ऐसी व्यवस्था विकसित करने का अवसर दिया जिससे मौजूदा समस्याओं और भावी चुनौतियों का निराकरण किया जा सके।
भारत के प्रमुख वैश्विक सम्मेलन, रायसीना डायलॉग को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर कोविड-19 से लड़ाई में भारत के प्रयासों का जिक्र किया और साथ ही बताया कि कैसे उसने आपदा की इस मुश्किल घड़ी में भी विनम्रता से दुनिया के अन्य देशों तक मदद पहुंचाई। 4 दिन का यह सम्मेलन डिजिटल माध्यम से आयोजित किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि रायसीना डायलॉग का यह संस्करण मानव इतिहास के एक ऐतिहासिक क्षण में आयोजित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वर्ष भर से यह महामारी दुनियाभर में तबाही मचा रही है। उन्होंने कहा कि ऐसी महामारी करीब एक सदी पहले आई थी।
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर यह भी कहा कि जब तक सभी देश कोविड-19 के खिलाफ एकजुट नहीं होंगे, तब तक मानवजाति इसे पराजित करने में समर्थ नहीं होगी। उन्होंने कहा कि भारत ने इन विषम परिस्थितियों के बीच अपने 130 करोड़ नागरिकों को कोविड-19 से बचाने का प्रयास किया और महामारी से मुकाबला करने में दूसरे देशों की भी सहायता की।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने दुनिया में एक ऐसी व्यवस्था विकसित करने का अवसर दिया, जिससे मौजूदा समस्याओं और भावी चुनौतियों का निराकरण किया जा सके। उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी ने हमें अवसर दिया है कि हम वैश्विक व्यवस्था में बदलाव कर सकें और अपनी सोच में परिवर्तन ला सकें। हमें ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे आज की समस्याओं और आगामी चुनौतियों का निराकरण हो सके।
मोदी ने कहा कि हम अच्छी तरह समझते हैं कि मानव जाति इस महामारी को तब तक नहीं हरा पाएगी, जब तक हम सभी इसके खिलाफ एकजुट नहीं हो जाते। इसलिए कई बाधाओं के बावजूद हमने 80 से अधिक देशों को कोविड-19 रोधी टीके उपलब्ध कराए। उन्होंने कहा कि इस महामारी के खिलाफ जंग से मिले अनुभवों, विशेषज्ञता और संसाधनों को भारत दुनिया भर से साझा करता रहेगा।
प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब कई विपक्षी नेताओं ने भारत में कोरोनावायरस के मामलों में तेजी से हो रही वृद्धि के बावजूद कोविड-19 रोधी टीकों की विश्व के अन्य देशों में आपूर्ति किए जाने को लेकर सरकार की आलोचना की है। मोदी से पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी इस सम्मेलन में भारत की टीका मैत्री कूटनीति का उल्लेख किया था।
प्रधानमंत्री ने कहा कि वैज्ञानिकों, अनुसंधानकर्ताओं और उद्योग जगत ने वायरस से संबंधित महत्वपूर्ण सवालों के जवाब खोजे हैं। रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कैगमे और डेनमार्क के प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सेन ने मुख्य अतिथियों के रूप में उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। कार्यक्रम का आयोजन विदेश मंत्रालय और आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन ने मिलकर किया है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हम जानते हैं कि टीकों की आपूर्ति हमने विनम्रता से की है। हमें यह भी पता है कि इनकी मांग बहुत अधिक है। हम जानते हैं कि पूरी मानव जाति के टीकाकरण में लंबा वक्त लगेगा। इसके साथ ही उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि दुनिया ने पहले और दूसरे विश्वयुद्ध की तबाही देखी और इसकी वजह से एक नया विश्व सामने आया।
उन्होंने कहा कि दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद कई दशकों तक संस्थाओं और अन्य ढांचों के निर्माण हुए लेकिन इनका लक्ष्य तीसरा विश्वयुद्ध रोकना मात्र रहा। उन्होंने कहा कि यह गलत था और कुछ वैसा ही था जैसा बिना कारण समझे किसी मरीज का इलाज करना। (भाषा)