नई दिल्ली। पिछला अकादमिक सत्र इतिहास में एक ऐसे दौर के रूप में याद किया जाएगा जिसमें पढ़ने लिखने के तौर तरीकों में नए बदलाव की शुरुआत हुई। कोरोनावायरस महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन के दौरान 'स्मार्टफोन क्लासरूम' से लेकर 'व्हाट्सऐप' माध्यम से परीक्षा आयोजित की गई और 'जूम' पर प्लेसमेंट होने से लेकर 'स्क्रीन' के सामने बैठने का समय तक निर्धारित किया गया, जो पहले कभी नहीं हुआ था।
गत वर्ष लॉकडाउन की घोषणा होने के 1 सप्ताह बाद ही 2020-21 का अकादमिक सत्र शुरू होने वाला था और ऐसे में स्कूल के पहले दिन बच्चों को न बस्ता तैयार करना पड़ा, न 'स्पोर्ट्स डे' हुआ, न कोई 'फेयरवेल' और न ही दोस्तों के साथ अपना टिफिन साझा करने का मौका मिला। इसके अलावा डिजिटल माध्यम से पढ़ने के लिए 'स्क्रीन' के सामने उपस्थित होने का समय बढ़ा दिया गया था। आमतौर पर स्कूल और घरों में बच्चों को स्मार्टफोन तथा लैपटॉप के इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी जाती लेकिन पूरे 1 साल तक यह उपकरण पठन-पाठन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बने रहे।
इस दौरान कोविड-19 महामारी के कारण कक्षाओं में पढ़ाई नहीं हुई जिसके चलते यूट्यूब पर व्याख्यान, जूम कक्षाएं, व्हाट्सऐप परीक्षाएं और ऑनलाइन माध्यम से प्रश्नोत्तरी आयोजित की गई। हालांकि छात्रों को अपने स्कूलों और कॉलेजों की याद सताती रही, विशेषज्ञों का मानना है कि बीते 1 साल में सीखने के तरीकों में जो बदलाव आया वह भविष्य में भी जारी रहेगा और यह केवल विशेष परिस्थिति में उपजी एक व्यवस्था नहीं है।
इस नए बदलाव से देश में डिजिटल विभाजन की खामियां भी उजागर हुईं जहां छात्रों, माता पिता और शिक्षकों ने उन लोगों के लिए पढ़ने के तरीके तलाशे जिनके पास इंटरनेट या डिजिटल उपकरण उपलब्ध नहीं थे। सॉफ्टवेयर इंजीनियर प्रगति देव जैसे लोग 1 साल से घर पर काम रहे हैं। देव ने कहा कि मेरे बेटे को इस साल प्राथमिक स्कूल में दाखिला लेना था। उसके साथ हम भी उत्साहित थे लेकिन हम उसे स्कूल के पहले दिन छोड़ने नहीं जा सके क्योंकि सब कुछ ऑनलाइन हो गया था। रंगने से लेकर मिट्टी की चीजें बनाने तक सब कुछ ऑनलाइन हो रहा है और हम उसकी मदद कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि लेकिन हमें चिंता इस बात की है कि जब वह अगले साल या उसके अगले साल स्कूल जाएगा तब वह अपने सहपाठियों के साथ कैसे घुलमिल सकेगा। स्मार्टफोन, लैपटॉप और इंटरनेट का अचानक से अधिक इस्तेमाल जहां माता पिता के लिए चिंता का कारण है, वहीं शिक्षा मंत्रालय ने ऑनलाइन कक्षा के लिए स्कूलों को दिशा निर्देश जारी किए जिसमें बताया गया कि किस आयु वर्ग के छात्रों के लिए स्क्रीन के सामने कितनी देर बैठना उचित होगा।
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जब पहली बार लॉकडाउन लगा था, स्कूलों ने ऑनलाइन कक्षाओं को स्कूल में बिताए घंटों के मुताबिक चलाना शुरू कर दिया। इसमें उनकी गलती भी नहीं थी क्योंकि देश में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था इसलिए उन्हें पता ही नहीं था कि ऐसी व्यवस्था कैसे संचालित की जानी चाहिए। उनका ध्एय केवल कक्षाओं को चलाना था। इसके बाद हमने एक समिति का गठन किया और ऐसी कक्षाओं के लिए दिशा निर्देश तैयार किए जिसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना था कि पढ़ने की प्रकिया के बाधा न आए और छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर न पड़े।
आईआईटी और आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों ने भी चुनौती का सामना किया और प्लेसमेंट प्रक्रिया को बाधित नहीं होने दिया। आईआईटी (मंडी) के एक प्रोफेसर ने कहा कि पढ़ने की बदली हुई रणनीति से यह लाभ हुआ कि समय की बचत हुई और यह पारंपरिक कक्षाओं से अधिक किफायती रहा। ऑनलाइन पढ़ाई से स्थान की बाध्यता नहीं होती और यात्रा का खर्च बचता है। हमने नए सबक सीखे हैं और हमारा मानना है कि इस प्रक्रिया को महामारी के बाद भी चालू रखना चाहिए और इसे केवल एक अस्थायी व्यवस्था मानकर नहीं चलना चाहिए। (भाषा)