लॉकडाउन की यादों ने फिर किया बेचैन, कोरोना पर सख्ती के लिए कितना तैयार हम?
साल 2020 में 22 मार्च को जनता कर्फ्यू और 24 मार्च को लगा था लॉकडाउन
कोरोना वायरस की दूसरी लहर की दस्तक देने के साथ कई राज्यों में स्थिति विस्फोटक होती जा रही है। कोविड-19 संक्रमण की खतरनाक रफ्तार के बाद अब बिगड़ती स्थिति को काबू में करने के लिए एक बार फिर राज्य सरकारें लॉकडाउन का सहारा ले रही है। महाराष्ट्र के कई जिलों में लॉकडाउन लगाने के बाद अब मध्यप्रदेश के भोपाल, इंदौर और जबलपुर में अगले आदेश तक हर रविवार को लॉकडाउन लगाने का फैसला किया गया है।
कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए भले ही अभी छोटे-छोटे एरिया और कम समय के लिए लॉकडाउन लगाया जा रहा हो लेकिन लोग एक बड़े लॉकडाउन की आहट से बैचेन दिखाई दे रहे है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्वीटर पर लॉकडाउन-2021 टॉप ट्रैंड कर रहा है। लोग पिछले साल 22 मार्च को पहले लगाए गए जनता कर्फ्यू और फिर 24 मार्च से हुए देशव्यापी लॉकडाउन की चर्चा करते हुए दिखाई दे रहे है। ऐसे में वेबदुनिया ने लॉकडाउन को लेकर ICMR के पूर्व साइंटिस्ट पद्मश्री डॉक्टर रमन गंगाखेडकर से कोरोना को रोकने के लिए लॉकडाउन कितना प्रभावी है के मुद्दें पर और मनोचिकित्सक डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी से लॉकडाउन का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसको लेकर खास बातचीत की।
लॉकडाउन का कोरोना पर नहीं पड़ेगा कोई इफेक्ट-वेबदुनिया से बातचीत में डॉक्टर रमन गंगाखेडकर कहते हैं कि भले ही सरकारें कोरोना को रोकने के लिए लॉकडाउन लगा रही हो लेकिन मैं इस बात कर देना चाहता हूं कि अब कोरोना की दूसरी लहर को लॉकडाउन से नहीं रोका जा सकता है। डॉक्टर रमन गंगाखेडकर कहते हैं कि जब पिछले साल 24 मार्च को देश में लॉकडाउन लगाया गया था तब कोरोना वायरस के केस देश में बहुत कम स्थानों पर ही दिखाई दिए थे और तब लॉकडाउन इसलिए लगाया गया था कि लोग देश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं जा सके और कोरोना वायरस को फैलने से रोक सके लेकिन आज की परिस्थितियां एक दम अलग है।
आज चारों तरफ कहीं कम,कहीं ज्यादा कोरोना वायरस के संक्रमित केस मौजूद है ऐसे में लॉकडाउन लगाना मुनासिब नहीं है। मेरे विचार से लॉकडाउन लगाने का असर इसका उलटा होगा और कोरोना वायरस की दूसरी लहर का लोगों के स्वास्थ्य से ज्यादा हमारी इकोनॉमी पर पड़ेगा और अब लॉकडाउन से इकोनॉमी फिर से दो से तीन साल पीछे चली जाएगी।
लॉकडाउन के लिए मानसिक रुप से नहीं तैयार-वेबदुनिया से बातचीत में मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि मुझे तो नहीं लगता कि लोग एक बार फिर एक लंबे लॉकडाउन के लिए मानसिक रुप से तैयार होंगे। पिछले बार के लॉकडाउन के कारण बहुत सारी समस्याएं हुई थी और लोगों की के अंदर आशंकाएं और डर सा बन गया था। लॉकडाउन और उसके बाद लोगों को काफी बड़े पैमाने पर आर्थिक समस्याओं से जूझना पड़ा था,लॉकडाउन के चलते लोगों की नौकरियां चली गई थी। इसकी वजह से मानसिक रोगों में भी काफी तेजी से बढ़ोतरी हुई थी। अभी जब पहले ही इन समस्याओं से और कई तरह की आशंकाओं से लोग खराब मानसिक स्वास्थ्य और एक तरह से मानसिक रोगों से जूझ रहे है। तब ऐसे में एक बार फिर लॉकडाउन काफी नकारात्मक प्रभाव डालेगा और लोगों के व्यवहार पर इसका बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
लेकिन इसके साथ में यह भी कहना चाहूंगा कि जब हमको कोरोना से जूझते हुए एक साल हो चुके हैं फिर भी अगर हम नहीं समझ रहे हैं तो यह कहीं ना कहीं हमारी हमारी विकृत मनोदशा को दर्शाता है और यह बताता है कि हम सब कितने लापरवाह हैं। हम अपने सारे अच्छे स्वास्थ्य की जिम्मेदारियों को सरकार से चाहते हैं जबकि होना यह चाहिए कि मेरा स्वास्थ्य मेरी जिम्मेदारी मुझे मुझे स्वयं को कोरोना से बचाना है।
लोगों को समझना होगा कि उन्हें वैक्सीनेशन के साथ मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन अपने स्वास्थ्य के लिए करना है और उसके लिए खुद के विवेक की आवश्यकता है ना कि सरकार के इंस्ट्रक्शन किए और अगर सरकार इस तरीके की इंस्ट्रक्शंस बार-बार देना पड़ रहा है तो कहीं ना कहीं यह दिखा रहा है कि हम अपनी जिंदगी का मूल्य खुद नहीं समझ रहे है।