नई दिल्ली, देश में लगातार बढ़ रहे कोरोना संक्रमण की रफ्तार को रोकने के लिए समय पर कोरोना संक्रमित मरीज की पहचान कर उसे आइसोलेट करना बेहद जरूरी है।
वर्तमान समय में देश में कोरोना संक्रमण की जांच के लिए दो प्रकार के टेस्ट, रैपिड और आरटी-पीसीआर टेस्ट मौजूद है। जिसमे आरटी-पीसीआर टेस्ट के परिणामों की सटीकता दूसरे टेस्ट की अपेक्षा अधिक है। लेकिन इस टेस्ट के नतीजों को आने में एक से दो दिन का समय लगता है। इस अवधि में संक्रमित व्यक्ति से अन्य को कोरोना संक्रमण का खतरा बना रहता है।
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की हैदराबाद स्थित प्रयोगशाला कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र (सीसीएमबी) ने 'ड्राई स्वैब आरटी-पीसीआर' प्रणाली विकसित की है। जिसको हाल ही में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इसके इस्तेमाल की मंजूरी दी है।
जिसके बाद इस तकनीक के उपयोग में आने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। इसके साथ ही सीसीएमबी ने 'ड्राई स्वैब वाले आरटी-पीसीआर' जांच को ठीक तरीके से करने के लिए स्वास्थ्यकर्मियों को आवश्यक तकनीकी परीक्षण देने की पेशकश भी की है।
सीसीएमबी के निदेशक राकेश मिश्रा ने जानकारी देते हुए कहा है कि कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच कोरोना संक्रमण के नमूनों की जांच के लिए ड्राई स्वैब आरटी-पीसीआर जांच अत्यंत उपयोगी है। उन्होने बताया कि इस तकनीक को वर्ष 2020 में ही विकसित कर लिया गया था और पिछले कुछ महीनों में इस तकनीक का बड़े पैमाने पर विभिन्न प्रयोगशालाओं और अस्पतालों में परीक्षण किया गया है और साथ ही इसकी नियामक मंजूरी का इंतजार हो रहा था।
ड्राई स्वैब आरटी-पीसीआर टेस्ट कोरोना संक्रमण का पता लगाने के लिए मौजूदा मानक आरटी-पीसीआर का ही एक सरल रूप है। ड्राई स्वैब आरएनए-निष्कर्षण-मुक्त परीक्षण विधि है। इस विधि में डाइग्नोसिस के लिए वायरल ट्रांसपोर्ट मीडियम (वीटीएम) में सैंपल कलेक्ट करना और उसके बाद आरएनए आइसोलेट करने वाला चरण नही है। यह तकनीक नॉर्मल आरटी-पीसीआर से करीब 30 से 40 प्रतिशत तक सस्ती है। साथ ही इसके परिणाम काफी तेजी से आते हैं।
इस संदर्भ में राकेश मिश्रा ने बताया है कि डाइग्नोसिस के लिए सीएसआईआर की लैब सीसीएमबी ने जो प्रणाली विकसित की है, इसमें वीटीएम में सैंपल कलेक्ट करने वाला स्टेप और फिर उसके बाद आरएनए आइसोलेट करने वाले स्टेप को भी हटा दिया है। इसलिए ये तरीका बेहद सरल और एक्यूरेसी वाला है, जितना की एक स्टैंडर्ड आरटी पीसीआर वाला मेथड है।
इस विधि को आईसीएमआर समेत देश के कई संस्थानों ने मान्यता दी है। ये विधि अभी किए जा रहे जांच के मानकों के अनुरूप है। नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी संस्थान ने इस विधि का उपयोग करते हुए 50 हजार से अधिक नमूनों की जांच की है। यह तकनीक अपोलो अस्पताल और मैरी लाइफ जैसे कई सेवा प्रदाताओं के साथ साझा की गई है। यह उम्मीद जताई जा रही है कि इस तकनीक से देश में नमूनों की जांच तेजी से करने में मदद मिलेगी। (इंडिया साइंस वायर)