एक्सप्लेनर: कोरोनाकाल में बेकाबू बेरोजगारी, सिर्फ मई में एक करोड़ लोगों के बेरोजगार होने का अनुमान
मई में डबल डिजिट 12 फीसदी के करीब पहुंची बेरोजगारी दर
भारत में कोरोना को दूसरी लहर ने पहली लहर से कही अधिक कोहराम मचाया है। कोरोना की दूसरी लहर को काबू में करने के लिए भले ही कोई देशव्यापी लॉकडाउन नहीं लगाया गया हो लेकिन संक्रमण को काबू में करने के लिए राज्यों ने जिस तरह से लॉकडाउन किया है उसका सीधा आम आदमी पर पड़ा है। कोरोना की दूसरी लहर में जहां रिकॉर्ड तोड़ महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ दी है वहीं एक साल के भीतर दूसरे लॉकडाउन ने अब बेरोजगारी का बड़ा संकट खड़ा कर दिया है।
सेंटर फॉर मॉनिटिरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के मुताबिक देश में बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है और बेरोजगारी दर एक बार फिर डबल डिजिट में पहुंचते हुए 28 मई तक 11.58 फीसदी के आंकड़े तक पहुंच गई है जो कि इस महीने की शुरुआत में 7 फीसदी के आसपास थी। CMIE के एक अनुमान के मुताबिक कोरोना संकट और राज्यों में लगातार लंबे लॉकडाउन के चलते अकेले मई महीने में ही 1 करोड़ लोग बेरोजगार हो जाएंगे।
वहीं CMIE की ही रिपोर्ट बताती है कि अप्रैल महीने में पहले ही 73 लाख लोगों का रोजगार छिन चुका है। आंकड़ों के मुताबिक कोरोना के चलते शहरों के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित हुई है और ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी दर की रफ्तार अधिक हो गई है। इस बार गांव में कोरोना के पहुंचने के चलते मनरेगा जैसा काम भी बंद कर दिए गए जिससे कि गांव में भी लोगों के सामने रोजागार का संकट खड़ा हो गया।
CMIE की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश की अर्थव्यवस्था अब पर्याप्त मात्रा में रोजगार नहीं दे सकती है। कोरोना की दूसरी लहर में नौकरी गंवाने वालों लोगों में अंसगठित क्षेत्र के कामगारों की संख्या अधिक है। इंदौर के विजय नगर में रेस्टोरेंट चलाने वाली स्मिता सिंह कहती हैं कि लॉकडाउन में लगभग 50 दिन से रेस्टोरेंट बंद होने से मजबूरन उन्हें काम करने वाले 10 कर्मचारियों में से 7 को हटाना पड़ा। वह कहती है कि लॉकडाउन से पहले भी रेस्टोरेंट्स की टेक होम डिलीवरी की व्यवस्था के चलते काराबोर 70 फीसदी तक कम हो गया था वहीं अब अगर सरकार अनलॉक में भी रेस्टोरेंट को खोलने की अनुमति नहीं देती है तो उनके सामने रेस्टोरेंट को बंद करने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचेगा।
लॉकडाउन की मार छोटे कारोबारियों पर इस तरह पड़ी है कि अब उनके सामने व्यवसाय चलाने का संकट खड़ा हो गया है। दोपहिया वाहन के सब डीलर विनीत श्रीवास्तव कहते हैं कि कोरोना से अधिक लॉकडाउन की मार छोटे कारोबारियों पर पड़ी है। लगातार शोरूम बंद होने से उनके सामने अब कर्मचारियों की सैलरी देने का संकट खड़ा हो गया है।
भोपाल में एक सैलून में काम करने वाले मनीष सेन उन लोगों में से एक है जिन्होंने लॉकडाउन में अपनी नौकरी गंवाई है। वेबदुनिया से बातचीत में मनीष कहते हैं कि 10 अप्रैल से ही सैलून बंद होने से अब उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। वह कहते हैं कि पिछले साल तीन महीने से अधिक समय तक सैलून बंद होने से पहले ही उनकी सारी जमापूंजी खत्म हो गई वहीं अब एक बार फिर दो महीने से लॉकडाउन के चलते दुकान बंद है और वह बेरोजगार घर में बैठे है।
अर्थशास्त्री आदित्य मानियां जैन कहते हैं कि आज छोटे कारोबारियों के सामने पूंजी का संकट खड़ा हो गया है। सरकार को छोटे कारोबारियों की मदद के लिए जल्द ही किसी पैकेज का एलान करना चाहिए। वह कहते हैं कि बाजार में डिमांड खत्म से सप्लाई की चेन बेक्र हो गई है और अंसगठित सेक्टर से जुड़े लोगों को बड़े पैमाने पर अपनी नौकरी खोनी पड़ी है।
कोरोना की पहली लहर को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के बाद अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए केंद्र सरकार ने कई बड़े राहत पैकेज का एलान किया था। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के बूस्टर पैकेज का असर भी हुआ था और इकोनॉमी फिर से पटरी पर आने लगी थी। कोरोना की दूसरी लहर में जब केंद्र की ओर से सीधे तौर पर किसी भी तरह के लॉकडाउन का एलान नहीं किया गया है तब क्या केंद्र सरकार अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए उद्योग जगत के लिए किसी बड़े राहत पैकेज का एलान करेगी,यह बड़ा सवाल बना हुआ है।
इसके साथ ही पहले ही कर्ज के बोझ तले दबी राज्य सरकारें क्या छोटे कारोबारियों को बिजली के बिल और स्थानीय स्तर पर वसूले जाने वाले टैक्स में छूट देने का साहसिक कदम उठा पाएगी यह भी एक सवाल बना हुआ है। मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्योंं में सरकार ने फुटकर विक्रेताओं को जो सहायता दे भी रही है वह भी ऊंट में मुंह में जीरा के सामान है।