जम्मू। कोरोना काल में भी जम्मू संभाग के साथ भेदभाव नहीं रूक पाया। नतीजा सामने है। इसी भेदभाव ने प्रदेश की सबसे बड़ी राजनीकि पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस के भीतर भी परिसीमन आयोग का बहिष्कार करने के पार्टी के फैसले के विरुद्ध विरोध स्वर उठने लगे तो नतीजा यह हुआ कि अब नेकां ने आयोग की बैठक में शिरकत करने को हामी भर दी है।
कोरोना काल में परिसीमन के विरोध के मुद्दे पर पार्टी में विरोध की आवाज उठने लगी तो स्थिति को संभालने और परिसीमन प्रक्रिया का हिस्सा बनने के लिए पार्टी नेतृत्व ने अब एक समिति बनाने का फैसला किया है। नेकां का एक बड़ा वर्ग परिसीमन प्रक्रिया का हिस्सा बनने के पक्ष में है। यह वर्ग चाहता है कि परिसीमन आयोग की अगली सभी बैठकों में तीनों सांसद शामिल होकर पार्टी के राजनीतिक व सामाजिक हितों के संरक्षण को सुनिश्चित बनाएं।
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत जम्मू कश्मीर राज्य दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर व लद्दाख में पुनर्गठित हुआ है। इस अधिनियम के तहत जम्मू-कश्मीर में विधानसभा का प्रविधान है। विधानसभा के गठन से पूर्व प्रदेश में परिसीमन किया जाना है। इसके लिए केंद्र सरकार ने छह मार्च, 2020 को सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में परिसीमन आयोग का गठन किया था।
बीते दिनों पार्टी की केंद्रीय कार्यकारिणी (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में इस मुद्दे पर बातचीत हुई थी, जिसके बाद नेकां ने परिसीमन प्रक्रिया का हिस्सा बनने से पूर्व इस पर विचार करने के लिए एक समिति का गठन किया है। डॉ. फारूक अब्दुल्ला परिसीमन का खुलकर विरोध करते आ रहे हैं तो वहीं पार्टी का एक धड़ा इसका हिस्सा होने पर बल दे रहा है।
प्रदेश में सियासी गतिविधियों को भांपते हुए यह धड़ा परिसीमन का हिस्सा होने पर विचार कर रहा है। पार्टी नेताओं की मांग के बाद नेकां प्रधान ने अब यह फैसला लिया है कि परिसीमन प्रक्रिया में शामिल होने से पहले समिति का गठन होगा।
दरअसल नेशनल कॉन्फ्रेंस पहले ही दिन से परिसीमन आयोग के खिलाफ है। वह जम्मू कश्मीर में पांच अगस्त, 2019 से पहले की संवैधानिक स्थिति की बहाली की मांग कर रही है। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने परिसीमन आयोग को जम्मू कश्मीर के हितों के खिलाफ करार दिया है और मार्च, 2020 से लेकर अब तक इसकी एक भी बैठक में हिस्सा नहीं लिया है।
बीते आठ माह के दौरान नेशनल कॉन्फ्रेंस में परिसीमन को लेकर पार्टी की घोषित नीति को लेकर विरोध के स्वर लगातार उभर रहे हैं। जिला विकास परिषद के चुनावों के बाद यह स्वर तेज होने लगे हैं। हालांकि यह स्वर अभी सार्वजनिक नहीं हुए हैं, लेकिन पार्टी बैठक में अक्सर कश्मीर और जम्मू संभाग के कई नेता बहिष्कार के फैसले पर पुनर्विचार पर जोर देने लगे हैं।