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अनुबंध का यह कैसा खेल

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- प्रदीप कुमा
भारतीय टेस्ट टीम जिस वक्त चेन्नई में एक जोरदार जीत का जश्न मना रही थी, ठीक उसी वक्त बीसीसीआई ने भारतीय खिलाड़ियों के लिए नए साल का अनुबंध जारी किया। मीडिया की नजरें भारत की ऐतिहासिक जीत पर ज्यादा रही इसलिए अनुबंध की चर्चा मीडिया में ठीक से जगह नहीं बना सकी, हालाँकि इसमें चौंकाने वाली कई बातें मौजूद थीं।

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सबसे ज्यादा अचरज हो रहा है कि किस आधार पर बीसीसीआई ने सुब्रमण्यम बद्रीनाथ के ग्रेड को प्रोन्नति दे दी है। बद्रीनाथ डी ग्रेड से अब सी ग्रेड के खिलाड़ी बन गए हैं। बोर्ड की नजर में रोहित शर्मा और बद्रीनाथ का प्रदर्शन एक समान रहा है, यह कईयों को अचरज में डाल सकता है।

बद्रीनाथ के अलावा भी कई नाम हैं, जिन्हें ग्रेड में शामिल किए जाने को लेकर सवाल उठ रहे हैं। तमिलनाडु के 22 साल के स्पिनर हैं रविचंद्रन अश्विन। अत तक 14 रणजी मैच खेल चुके हैं पर रणजी मुकाबलों में भी इनका नाम ठीक से नहीं सुना गया है लेकिन अब वे ग्रेड डी के क्लब में आ चुके हैं।

दिल्ली के लेग स्पिनर चैतन्य नंदा को भी इसमें शामिल किया गया है। पिछले दो सालों में ये दिल्ली की ओर से खेलते रहे हैं और कई बार बेहतरीन प्रदर्शन भी किया है लेकिन किसी ने इनके भविष्य में टीम इंडिया में शामिल होने के कयास नहीं लगाए हैं। नंदा अभी 29 साल के हो चुके हैं लेकिन बीसीसीआई को लग रहा है कि नंदा आने वाले दिनों में टीम इंडिया के लिए खेल सकते हैं इसलिए उन्हें ग्रेड डी में जगह दी गई है।

बंगाल के विकेटकीपर बल्लेबाज हैं ऋद्धिमान साहा। इन्हें 14 रणजी मैचों के आधार पर ग्रेड डी में जगह दी गई है। साहा अभी महज 24 के हैं इसलिए इनके चयन को बीसीसीआई तर्कसंगत ठहरा सकती है लेकिन जानकारों की राय में साहा को कई बेहतर खिलाड़ियों पर तरजीह दी गई है।

कोलकाता के ही मनोज तिवारी, आईपीएल से लेकर रणजी मुकाबलों में आलराउंड खेल दिखाते रहे हैं लेकिन उन्हें डी ग्रेड से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। बहरहाल सबसे ज्यादा अचरज इस बात की है कि पिछले सीजन में 1700 से ज्यादा रन बनाने वाले आकाश चोपड़ा को इस बार डी ग्रेड में शामिल नहीं किया गया है।

वे इस पर अफसोस जाहिर किए बिना नहीं रहे। उन्होंने कहा कि अनुबंध देने का आधार बीते साल का प्रदर्शन होता है तो मुझे इस में जगह मिलनी चाहिए थी लेकिन अब क्या हो सकता है। हालांकि बोर्ड के इस फैसले से मैं बहुत निराश महसूस कर रहा हूँ।

आकाश चोपड़ा अकेले नहीं हैं। गोवा के 24 साल के कप्तान स्वप्निल असनोडकर ने ३८ प्रथमश्रेणी रणजी मैच में ७ शतकीय पारियाँ खेली हैं और रणजी में उनके नाम दोहरे शतक भी हैं पर वे बीसीसीआई के अधिकारियों को प्रभावित नहीं कर सके, बोर्ड को भी इन खिलाड़ियों की ज्यादा चिंता नहीं है।

लेकिन भविष्य को देखते हुए बोर्ड के खिलाफ खिलाड़ी ज्यादा बोलने को तैयार नहीं होते। हालाँकि निराशा भी छुपा नहीं पाते हैं। वैसे कुछ मामलों में बोर्ड ने खिलाड़ियों के प्रदर्शन को जरूर ध्यान में रखा है।

ईशांत और लक्ष्मण जैसे खिलाड़ियों को बेहतर ग्रेड दिया गया है। गंभीर भी अब भारत के ग्रेड ए खिलाड़ी बन गए हैं। इसके अलावा बीते एक साल में लगातार लचर प्रदर्शन करने वाले द्रविड़ का ग्रेड ए बरकरार रखा गया हालाँकि उनके जैसे कद के खिलाड़ी के लिए इसका बना रहना जरूरी ही था।

वैसे कई जानकार ये भी आरोप लगा रहे हैं कि टीम के चुनाव की तरह अनुबंध का रुझान भी दक्षिण भारत की ओर बना हुआ है। जाहिर है जब बोर्ड के उच्च पदों पर दक्षिण भारतीयों का कब्जा हो तो उनके फैसलों को नाप तोलकर देखा ही जाएगा। बेहतर तो यही होगा कि ऐसे मामलों में बोड कहीं ज्यादा गंभीरता से काम ले।

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