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ऑस्ट्रेलिया का गिरता ग्राफ

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- प्रवीण सिन्हा

ऐसा कम ही होता है जब भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच कोई मुकाबला चल रहा हो और विवाद न उठे। इस बार भी भारतीय दौरे पर आई ऑस्ट्रेलियाई टीम मोहाली में हुए दूसरे टेस्ट मैच के दौरान विवाद में फँसती नजर आई, लेकिन यह विवाद विपक्षी खिलाड़ियों के बीच नहीं, बल्कि ऑस्ट्रेलियाई कप्तान रिकी पोंटिंग और तेज गेंदबाज ब्रेट ली के बीच उभरा। यह हैरतअंगेज था।

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ऑस्ट्रेलियाई खिला़ड़ी मैदान जीतने के लिए विपक्षी खिलाड़ियों से छेड़खानी या गाली-गलौज करने के लिए विख्यात रहे हैं, लेकिन इस बार उनके आपस में भिड़ते देखने से इतना तय है कि ऑस्ट्रेलियाई टीम के अंदर सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है।

हो सकता है ब्रेट ली पर अपनी पत्नी से संबंध टूट जाने का कोई असर पड़ा हो, लेकिन रिकी पोंटिंग की खीझ में उनकी हताशा साफ झलक रही थी। भारत के हाथों उन्हें पहले भी शिकस्त झेलनी पड़ी है, लेकिन मोहाली में रिकी पोंटिंग एक तरह से आत्मसमर्पण वाली स्थिति में थे और अपनी हताशा अपने खिलाड़ियों पर निकालते दिखे।

मोहाली में ऑस्ट्रेलिया की 320 रन से करारी शिकस्त और कप्तान पोंटिंग का अंदाज उस ऑस्ट्रेलियाई टीम की याद दिलाता है जब 80 के दशक में क्रिम ह्यूज के नेतृत्व में उनकी कमजोर और अनुभवहीन टीम को लगातार हार की जलालत झेलने को मजबूर होना पड़ा था। उस समय ग्रेग चैपल, रोडनी मार्श और डेनिस लिली की स्टार तिकड़ी के संन्यास ले लेने से ऑस्ट्रेलियाई टीम पंगु हो गई थी।

इस बार ग्लेन मैग्राथ, एडम गिलक्रिस्ट और शेन वॉर्न की स्टार तिकड़ी भारत दौरे पर नहीं है। इसका असर उनकी टीम पर साफ तौर पर दिख रहा है। विश्व चैंपियन और विश्व की नंबर एक ऑस्ट्रेलियाई टीम इतनी कमजोर और लाचार दिख रही है कि उसका सिंहासन डोलता नजर आ रहा है। हालाँकि दुनिया की अन्य दिग्गज टीमें अभी भी ऑस्ट्रेलिया से पार नहीं पा सकी हैं, लेकिन भारत और इंग्लैंड ने उसे शिकस्त देकर साबित कर दिया है कि कंगारू टीम अजेय नहीं है।

  1995 में वेस्टइंडीज को हराकर शीर्ष पर पहुँची ऑस्ट्रेलियाई टीम को पहली बार इस साल अहसास हुआ है कि उनका नंबर वन का 'ताज' खतरे में हैं। इस साल उन्हें आठ मैंचों में से महज तीन जीत मिली, जबकि भारत ने उसे दो बार मात दी। उनकी जीत का प्रतिशत 37.50 है      
1995 में वेस्टइंडीज को हराकर शीर्ष पर पहुँची ऑस्ट्रेलियाई टीम को पहली बार इस साल अहसास हुआ है कि उनका नंबर वन का 'ताज' खतरे में हैं। इस साल उन्हें आठ मैंचों में से महज तीन जीत मिली, जबकि भारत ने उसे दो बार मात दी। उनकी जीत का प्रतिशत 37.50 है। इस औसत के साथ कोई टीम शीर्ष पर बने रहने का दावा नहीं कर सकती।

हालांकि वर्ष 2006 और 2007 में ऑस्ट्रेलिया ने 14 टेस्ट मैच खेले और उन्हें सभी में जीत मिली, लेकिन इस दौरान उनके दो मैच विनर मैग्राथ और शेन वॉर्न 2006 की शुरुआत की एशेज सीरीज तक टीम में बने हुए थे। उनके संन्यास लेने के बाद एडम गिलक्रिस्ट भारत के खिलाफ पिछली सीरीज तक ऑस्ट्रेलिया ई टीम का हिस्सा रहे।

लेकिन इन तीनों दिग्गजों के संन्यास लेते ही ऑस्ट्रेलियाई टीम लड़खड़ाने लगी। अब वे जीतने के लिए नहीं, बल्कि मैच बचाने के लिए मैदान पर उतरती दिखती है।

  दरअसल, मैग्राथ और शेन वॉर्न इतने चतुर और सटीक गेंदबाज थे कि उनके सामने विपक्षी टीम पनाह माँगती दिखती थी। ठीक उसी तरह इतिहास गवाह है कि जब-जब गिलक्रिस्ट के बल्ले से रनों की बरसात हुई, तब-तब ऑस्ट्रेलिया ने सहज जीत दर्ज की      
दरअसल, मैग्राथ और शेन वॉर्न इतने चतुर और सटीक गेंदबाज थे कि उनके सामने विपक्षी टीम पनाह माँगती दिखती थी। ठीक उसी तरह इतिहास गवाह है कि जब-जब गिलक्रिस्ट के बल्ले से रनों की बरसात हुई, तब-तब ऑस्ट्रेलिया ने सहज जीत दर्ज की।

इसके अलावा, इन तीनों दिग्गजों को स्टीव वॉ और रिकी पोंटिंग जैसे आक्रामक कप्तान व बल्लेबाज मिले। यही नहीं, डेमियन मार्टिन, डेरेन लेहमैन और एंड्रयू सायमंड्स जैसे उपयोगी मध्यक्रम के बल्लेबाज भी टीम में शामिल थे जो पहाड़ सा स्कोर खड़ा करने में खासा योगदान देते थे। जब बोर्ड पर रन टँगे हों तो मैच जिताने का जिम्मा गेंदबाजों पर आ जाता है।

मैग्राथ और शेन वॉर्न अपनी-अपनी विधा के सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज थे। उन्होंने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई और ऑस्ट्रेलिया को लगातार जीत दिलाते हुए शिखर पर पहुँचा दिया, लेकिन जीत के घमंड में चूर ऑस्ट्रेलियाई टीम मैग्राथ, वॉर्न या गिलक्रिस्ट के मुकम्मल विकल्प का तलाश नहीं कर पाई।

आज ऑस्ट्रलियाई टीम के पास ब्रेट ली, मिशेल जॉनसन और स्टुअर्ट क्लार्क जैसे प्रतिभाशाली गेंदबाज तो हैं, लेकिन इनमें से किसी का स्तर मैग्राथ जैसा नहीं रहा। इसी तरह अंरराष्ट्रीय क्रिकेट में 1000 से ज्यादा विकेट अपने नाम कर चुके शेन वॉर्न जैसा फिरकी का जादूगर ऑस्ट्रेलिया पैदा नहीं कर सका। भारत दौरे पर आए स्पिनरों में से कैमरून व्हाइट को अंतिम एकादश में जगह मिली जो भारतीय बल्लेबाजों पर रत्ती भर असर नहीं डाल सके।

सच्चाई तो यह है कि व्हाइट जैसे दर्जनों स्पिनर भारत में घरेलू मैच खेल रहे हैं जिन्हें टेस्ट टीम में जगह बनाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ेगा। बहरहाल, विकल्पों के अभाव में ऑस्ट्रेलियाई टीम की सफलता का ग्राफ लगातार नीचे आ रहा है। भारतीय टीम उसको पछाड़कर शीर्ष की ओर मजबूती से कदम बढ़ा रही है।

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