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बीसीसीआई बनाम आईसीएल

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-शराफत खा
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने एस्सल ग्रुप द्वारा प्रस्तावित इंडियन क्रिकेट लीग (आईसीएल) को मान्यता न देकर एक नए विवाद के लिए रास्ता खोल दिया है। वैसे तो एस्सेल ग्रुप सहित क्रिकेट के जानकारों को अंदाजा था कि बीसीसीआई कभी भी उसके समानांतर क्रिकेट तंत्र को स्वीकार नहीं करेगा।

अगर बीसीसीआई आईसीएल को मंजूरी देता तो निश्चय ही कुछ ही समय में आईसीएल के प्रोमोशन प्रोग्राम के जरिए बीसीसीआई की कमजोरियाँ उजागर हो जाती। आईसीएल वह सब करता जो, बीसीसीआई नहीं कर पाया। ऐसा इसलिए भी होता, क्यों‍कि आईसीएल राजनैतिक द्वंद से दूर है, जबकि बीबीसीआई में राजनीति इस कदर छाई हुई है कि वह क्रिकेट के हित में काम करना ही भूल गया है।

बीसीसीआई अपनी सत्ता किसी के साथ बाँटना नहीं चाहता। बीसीसीआई के प्रोग्राम में नयापन नहीं है। वर्षों पहले जो ढाँचा भारत में प्रथम श्रेणी क्रिकेट के लिए था, आज भी वही है। हमारा घरेलू क्रिकेट बदलाव बर्दाश्त नहीं कर पाता। यही वजह है कि हम क्रिकेट की महाशक्ति होते हुए भी उसके आधुनिक रूप ट्‍वंटी-20 क्रिकेट में नौसिखिए हैं।

वर्तमान बीसीसीआई अध्यक्ष शरद पवार को क्रिकेट की कितनी समझ है, यह बात कई बार उनके बयानों से साबित हो जाती है। हाल ही में पवार साहब ने आईसीएल का विरोध करते हुए कहा कि आईसीएल से जुड़े पुराने और गैर मशहूर खिलाड़ियों को देखने कौन आएगा, लोग केवल उन्हीं खिलाड़ियों का खेल देखेंगे, जो राष्‍ट्रीय टीम का हिस्सा होंगे। इस बयान पर पूर्व कप्तान कपिल देव ने चुटकी लेते हुए कहा कि अगर पवार साहब ऐसा मानते हैं तो बीसीसीआई को घरेलू क्रिकेट के तहत होने वाले सारे क्रिकेट टूर्नामेंट बंद करा देने चाहिए।

समय-समय पर बीसीसीआई ने क्रिकेट की बेहतरी के लिए कई घोषणाएँ की, लेकिन वे महज कागजी खानापूर्ती ही साबित हुईं। ऐसे कई अवसर आए हैं,जब भारतीय क्रिकेट की कमजोरियाँ जाहिर हुईं, उन पर विचार हुआ मंथन हुआ, लेकिन उनके लिए कोई कदम नहीं उठाए गए।

मसलन जब भी हमारी टीम उपमहाद्वीप के बाहर दौरे पर जाती है तो उछाल भरे विकेट और स्विंग हमारे बल्लेबाजों के लिए समस्या बनती है। बीते वर्षों में बोर्ड ने इस पर कई बार विचार किया, कमेटी बनाई, लेकिन इसके नतीजे के रूप में भारत में कोई एक भी उछाल भरी विकेट नहीं बना। आईसीएल से इस बाबत उम्मीद की जा सकती है कि वह उछाल भरे विकेट का निर्माण करे।

हमारे पास स्पिन गेंदबाजी खेलने वाले कई आलातरीन बल्लेबाज हैं, लेकिन कोई बताए कि हमारे बल्लेबाज तेज गेंदबाजों को खेलने में क्यों दिक्कत महसूस करते हैं। इस ओर बीसीसीआई ने क्या कदम उठाए। बीबीसीआई को नेशनल क्रिकेट अकादमी के अलावा भी प्रमुख शहरों में क्रिकेट अकादमी की स्थापना करनी चाहिए थी। बीसीसीआई के पास धन की नहीं, योजनाओं की कमी है।

आईसीएल के जरिए कई विदेशी खिलाड़ियों के अनुभव और ट्रेनिंग कैंप भारतीय क्रिकेट के आधारभूत ढाँचे में सुधार ला सकते हैं। चयनकर्ता घरेलू सत्र में प्रदर्शन के आधार पर युवाओं को मौका देते हैं। यह अच्छा है, लेकिन जूनियर क्रिकेट (अंडर 13 और अंडर 16) के लिए बीसीसीआई के प्रोग्राम पर विचार जरूरी है।

आईसीएल जो क्रिकेट की बेहतरी के लिए काम करना चाहती है, उसके खिलाफ बीसीसीआई ने तो घोषणा ही कर दी कि आईसीएल से जुड़ने वाले किसी भी खिलाड़ी, अंपायर, कोच और एसोसिएशन का बोर्ड से कोई ताल्लुक नहीं होगा।

यहाँ तक कि उसने इस मामले में पूर्व खिलाड़ियों की पेंशन रोकने की भी धमकी दी है। इतना ही नहीं, बीसीसीआई ने विश्व क्रिकेट पर अपने वर्चस्व का इस्तेमाल करते हुए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट समिति (आईसीसी) सहित ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका के क्रिकेट बोर्डों से भी उनके किसी भी अनुबंधित खिलाड़ी के आईसीएल से न जुड़ने का फरमान जारी करवा दिया है।

आईसीएल की राह में रोड़े रखकर बीसीसीआई किसी और का नहीं बल्कि क्रिकेट का ही नुकसान कर रहा है। वर्चस्व की इस लड़ाई का क्या परिणाम क्या होगा, यह समय बताएगा।

दूसरी तरफ आईसीएल भी तमाम अड़चनों के बावजूद अपने टूर्नामेंटों के आयोजन को लेकर आश्वस्त है। बीसीसीआई और आईसीएल की लड़ाई में चाहे कोई जीते, लेकिन क्रिकेट नहीं हारना चाहिए।

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